क्या हम शिक्षक …..आचार्य हैं…..?(प्रोफेसर मंजू वर्मा, चंडीगढ़ विश्व विद्यालय )

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स्वामी दयानन्द सरस्वती ने राष्ट्र के उद्धार के लिए सूत्र बताते हुए कहा कि ” ब्रह्मचर्य का नाश होने से भारतवर्ष का नाश हुआ है और ब्रह्मचर्य का उद्धार करने से ही फिर देश का उद्धार होगा l “

 स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अपने जीवन के आखिरी वर्ष राजपुताना में व्यतीत किए I उक्त शब्द उन्होंने तब कहे जब वह    1 881 में चित्तौड़ के प्रसिद्ध ऐतिहासिक किले में अपने शिष्यों के साथ थे l लार्ड रिपन ने चित्तौड़ में एक दरबार का आयोजन किया था जिस में सारे राजस्थान के राजा- महाराजा इकट्ठे हुए थे l इसी अवसर पर महर्षि दयानंद को भी निमंत्रित किया गया था I उस समय वह उदयपुर रियासत के अतिथि थे l 

वहाँ वीर क्षत्रियों की संतानों को मांस -मदिरा, अफीम तथा विषय वासना में फंसे देख ऋषि की अंतर्वेदना आँखों में आंसू बन और जिह्वा पर यह शब्द आए I
पंडित रघुवीर सिंह जी शास्त्री वेदवाचस्पति ने जब नवम्बर 1958 में ” देशोद्धार का सूत्र ” नाम का आलेख आर्य नाम के समाचार पत्र में प्रकाशित करवाया तो उस लेख में स्वामी जी के विचारों का भी जिक्र किया l

स्वामी जी के विचारों में भारतीय राष्ट्र तथा समाज के उद्धार की रूपरेखा स्पष्ठ झलकती है I वे एक सिद्धहस्त चिकित्सक की तरह समाज की नाड़ी पर हाथ रख कर यह जान गए कि समाज रूपी शरीर कैसे रूढ़िवादी विचारों से जर्जर और अंधविश्वास से कलुषित है l उन्हें यह समझने में देर ना लगी कि नैतिकता का पतन ही समाज के ह्रास का कारण है l और इस का मूल रोग ब्रह्मचर्य का नाश है और ब्रह्मचर्य के उद्धार से ही देश का उद्धार हो सकता है l
राष्ट्र निर्माण के लिए संतानों के चरित्र का निर्माण भी आवश्यक है ।

जिसके लिए उन्होंने अध्यापक को सिद्ध हस्त शिल्पी मान कर अपनी विचारधारा दी I उस युग में अध्यापन कराने वाले को आचार्य कहा जाता था जिसके बहुत से कर्तव्य होते थे I केवल भूगोल, गणित, इतिहास, विज्ञान, साहित्य और धर्मशास्त्र आदि विषयों को पढ़ाने वाले गुरु को आचार्य नहीं कहा जाता था अपितु आचार्य उसे कहते थे जो ” आचारंग्राहयति ” होता भाव जो आचार का ग्रहण कराए I

जो शिक्षा के विषयों के साथ साथ पग पग पर अपने शिष्यों को सदाचार का क्रियात्मक प्रशिक्षण दे जो स्वंय सदाचारी हो I ऐसे आचार्यों के निर्देशन में शिक्षा के साथ साथ शिष्यों के चरित्र का निर्माण भी किया जा सकता है जो कि राष्ट्र निर्माण के लिए अति आवश्यक है l
साभार सोशियल मिडिया फेसबुक
प्रो. (डॉ. ) मंजू वर्मा , रिटायर्ड प्रोफेसर पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ (c)

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