उत्तराखंड के कुमाऊँ इलाके में खतड़वा एक बहुत खास और पुराना त्योहार है। यह त्योहार हर साल 17 सितंबर को मनाया जाता है, जो जानवरों, खेती-बाड़ी और बदलते मौसम से जुड़ा है। इसे बारिश के मौसम की विदाई और ठंड की शुरुआत का प्रतीक भी माना जाता है।
त्योहार के पीछे की कहानी
इस त्योहार को लेकर एक पुरानी कहानी बहुत मशहूर है। कहा जाता है कि बहुत पहले कुमाऊँ के एक राजा ने गढ़वाल के एक क्रूर सेनापति ‘खतर सिंह’ को युद्ध में हरा दिया था। उस जीत का जश्न मनाने के लिए लोगों ने मशालें जलाईं। माना जाता है कि तभी से उस जीत की याद में ‘खतड़वा’ का पुतला जलाने की परंपरा शुरू हुई।
हालांकि, कुमाऊं के इतिहासकारों का मानना है कि यह एक काल्पनिक कथा है और ऐसी किसी भी लड़ाई का इतिहास में जिक्र नहीं है। उनके अनुसार, यह त्योहार पूरी तरह से खेती-बाड़ी और जानवरों की सलामती के लिए ही मनाया जाता है।
कैसे मनाते हैं खतड़वा?
इस दिन जानवरों की बहुत सेवा की जाती है। सुबह-सुबह लोग उनके रहने की जगह (गोठ) को साफ करते हैं, उन्हें नहलाते हैं और अच्छा खाना खिलाते हैं। महिलाएं अपने पशुओं के लिए प्यार जताते हुए गीत भी गाती हैं:
”औँसो ल्यूलो, बेटुलो ल्योलों, गरगिलो ल्यूंलों, गाड़-गधेरान है ल्यूंला, तेरी गुरौं बची रओ, तैं बची रये एक गोरु बटी गोठ भरी जाओ, एक गुसैं बटी त्येरो भितर भरि जौ”
इसका आसान मतलब है: “हे गाय! मैं तुम्हारे लिए नदियों-नालों से सबसे अच्छी और मुलायम घास ढूंढकर लाऊंगी। तुम्हारा मालिक लंबी उम्र जिए, तुम्हारा वंश बढ़े और एक गाय से पूरा गोठ भर जाए। तुम्हारे मालिक के घर में हमेशा खुशहाली रहे।”
शाम को घास का एक पुतला (जिसे बूढा-बूढी कहते हैं )बनाकर जलाया जाता है। लोग आग के चारों ओर घूमते हैं और उसमें अनाज डालते हैं। ककड़ी का प्रसाद बांटा जाता है और लोग इसकी राख से तिलक भी लगाते हैं।
त्योहार का महत्व
’खतड़वा’ शब्द का मतलब ‘जानवरों का बिस्तर’ होता है।
ठंड के दिनों में जानवरों को ठंड से बचाने के लिये जो सूखी घास बिछायी जाती है, उसे ‘खतर’ कहते हैं।
पुतला जलाते समय लोग नारे लगाते हैं – “गाई की जीत, खतड़ुआ की हार!” इसका मतलब है कि अच्छाई की जीत हो और जानवरों की बीमारियां खत्म हों। ऐसा माना जाता है कि इस आग में जानवरों के सारे रोग-दोष जलकर खत्म हो जाते हैं।
कुल मिलाकर, कहा जा सकता है कि खतड़वा त्योहार कुमाऊँ के लोगों का जानवरों और प्रकृति के प्रति सम्मान दिखाने का एक अनोखा पर्व है।


