(सावित्री बाई फुले के विचार आज भी प्रासंगिक है सुनीता पांडेय)।
अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति इकाई अल्मोड़ा ने बद्रेश्वर में सावित्री बाई फुले दिवस मनाया गया। इस दिवस पर वक्ताओं ने जाति प्रथा,अंधविश्वास , रूढ़िवादी मानसिकता, कुसंस्कार, धार्मिक पाखंड , अत्याचार, भेदभाव के खिलाफ प्रगतिशील मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए जीवन भर संघर्ष करने वाली भारत की प्रथम शिक्षिका सावित्री बाई फूलेव उनके इस कठिन काम में मजबूत सहयोगी रहीं फातिमा शेख के संघर्षों और समाज में उनके अमूल्य योगदान को याद किया गया।
देश की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले का जीवन गाँव कस्बों और शहरों की औरतों के लिए प्रेरणादायक रहा है।
सावित्रीबाई फुले के कार्यक्षेत्र और तमाम विरोध और बाधाओं के बावजूद अपने संघर्ष में डटे रहने के उनके धैर्य और आत्मविश्वास ने भारतीय समाज में स्त्रियों की शिक्षा की अलख जगाने की महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
वे प्रतिभाशाली कवयित्री, आदर्श अध्यापिका, निस्वार्थ समाजसेविका और सत्य शोधक समाज की कुशल नेतृत्व करने वालीं महान नेता थी। १८४० में ९ वर्ष की अवस्था में उनका विवाह पूना के ज्योतिबा फुले के साथ हुआ। इसके बाद सावित्री बाई का जीवन परिवर्तन आरंभ हो गया। वह समय स्त्रियों के लिए नैराश्य और अंधकार का समय था।
महिला होकर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर जिस प्रकार सावित्री बाई फुले ने काम किया वह आज के समय में भी अनुकरणीय है। वक्ताओं ने उनके आदर्शों में चलने का प्रण लिया। कार्यक्रम में एडवा राज्य अध्यक्ष सुनीता पाण्डे, ज़िला सचिव पूनम त्रिपाठी, कोषाध्यक्ष राधा नेगी, डोबानौला इकाई अध्यक्ष किरण राणा, सचिव पार्वती रावत, जया पाण्डे ने भाग लिया।