(देश भर की चुंनीदा महिलाओं ने भाग लिया गोष्ठी में, )

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अंतर्राष्ट्रीय महिला काव्य मंच ‘ मन से मंच तक’ के तत्वाधान में अल्मोड़ा इकाई के आयोजन अंतर्गत दिनांक 26 अक्टूबर 2025 ( रविवार) को सायं 7:00 बजे से 8:30 बजे तक ऑनलाईन मासिक काव्य गोष्ठी गूगल मीट पर आयोजित की गई.कार्यक्रम में मुख्य अतिथि स्वरुप वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. (डॉ)ज्योति राज (राष्ट्रीय महासचिव महिला काव्य मंच)प्रतिष्ठित रहीं, विशिष्ट अतिथि मुन्नी पांडे, उपाध्यक्ष( पिथौरागढ़ इकाई) एवं अध्यक्षता सुप्रसिद्ध साहित्यकार हेमा आर्या ‘शिल्पी ‘ अल्मोड़ा द्वारा की गई..इनके अलावा गोष्ठी में आमंत्रित रचनाकारों के रूप में नीलम नेगी,वीणा चतुर्वेदी,चंद्रा उप्रेती, मीनू जोशी,प्रेमा गड़कोटी, गीता जोशी, कमला बिष्ट ‘कमल ‘सोनू उप्रेती ‘साँची ‘, विनीता जोशी ‘वीनू ‘ अनु पपनै आदि ने सुंदर काव्यपाठ द्वारा गोष्ठी को साहित्यिक भव्यता प्रदान की.गोष्ठी का सुंदर संचालन चंद्रा उप्रेती सुप्रसिद्ध कवयित्री (अल्मोड़ा) द्वारा किया गया…

  • सर्वप्रथम अध्यक्ष (अल्मोड़ा इकाई) हेमा आर्या जी द्वारा सभी मंचासीन अतिथियों व कवयित्रियों का परिचय कराते हुए सभी का औपचारिक स्वागत अभिनंदन किया।,मुख्य अतिथि डॉ ज्योति राज विलक्षण प्रतिभा की धनी जो साहित्यिक ज्ञान की रसधारा लेकर आईं,अनेक राज्य /राष्ट्रीय पुरस्कार/सम्मानों से अलंकृत हैं..उन्होंने ‘सपनों के पैर नहीं होते’ सहित अनेकों पुस्तकों का लेखन किया है, का स्वागत परिचय दिया।मीनू जोशी द्वारा रमा वर्मा द्वारा लिखी सरस्वती वंदना से गोष्ठी का पारंपरिक शुभारंभ हुआ…
    जै सरस्वती माँ तू वीणा बजै दे ज्ञान को प्रकाश घर घर मै जगै दे वीणा वादिनी माँ तू वीणा बजै दे ज्ञान की रसधारा स्वर अमृत बगै दे…। मुख्य अतिथि सम्बोधन में प्रो. ज्योति राज जी ने सभी को अपनी शुभकामनायें व साधुवाद प्रेषित किया, प्रस्तुत सभी गीतों व काव्य पाठ की सराहना की,उन्होंने अल्मोड़ा इकाई के सभी कलमकारों की प्रशंसा करते हुए तहे दिल से बधाई दी, आनंद का अनुभव किया उन्होंने आशीर्वाद देते हुए कहा कि मंच पर प्रस्तुत सभी रचनाएं साहित्यिक दृष्टि से परिपक्वता लिये है,अंत में सभी का आभार व्यक्त किया,तत्पश्चात अपना सुंदर हरियाणवी भाषा में काव्यपाठ प्रस्तुत किया…
  • विशिष्ट अतिथि सम्बोधन में मुन्नी पांडे जी ने लगभग सभी प्रस्तुत रचनाओं की गहन विश्लेक्षणात्मक समीक्षा की, रचनाओं के भाव पक्ष के आलोक में विषय वस्तु की विवेचना की,उन्होंने सभी को बधाई देते हुए मंच की उत्तरोत्तर प्रगति उन्नति हेतु शुभकामनायें प्रेषित की.तत्पश्चात अपना सुंदर काव्यपाठ प्रस्तुत किया…

👉 कुछ सुंदर गीतकाव्यों व काव्यपाठ की झलकियाँ—
(मुखड़ा पंक्तियाँ )

  • ईजा ने हमें दिया आपसदारी का सबक
    च्युड़े सिर में रखने से पहले…
    — प्रेमा गड़कोटी
  • दीपोत्सव दीपों का हर्षित महापर्व मनायें
    आओ पहले अंतर्मन का अंधकार मिटायें…
    — नीलम नेगी
  • मुहब्बत जिंदगी जीने की इक तहज़ीब होती है
    कहीं रांझा सी होती है कहीं से हीर होती है
    न वादे से फिसलती है न शिकवे से मचलती है
    ये खुद को बांधती सी इक हसीं जंज़ीर होती है…
    — मीनू जोशी
  • अब कहाँ खो गई माँ की वो साड़ीयाँ
    फूल सी जो खिली माँ की साड़ीयाँ
    धूप बनकर कभी गुनगुनी सी लगीं
    बोलती थीं कभी माँ की वो साड़ीयाँ…
    — विनीता जोशी’वीनू’
  • जिस रस्ते से होता है प्रतिदिन मेरा आना जाना
    उस रस्ते के ठीक किनारे किलमोड़ी की एक झाड़ी है..
    — कमला बिष्ट
  • ये कैसी दीवाली आई चारों ओर दीप जगमग हैं
    मेरे घर अँधियारा छाई, ये कैसी दीवाली आई….
    — वीणा चतुर्वेदी
  • जीवन डगर में मैंने देखा डगर डगर झुण्ड में बच्चे
    बोल रहे थे धीरे धीरे कुछ तो पूर्ण डूब चुके थे…
    –गीता जोशी
  • कि दादी रोटी पोया करती
    कि लुगाई मिलकर नहाया करतीं
    गीतों के बुलावे में जाया करतीं
    भजन और जकड़ी गाया करते
    इब डी जे की मची है धूम
    हाय तरक्की ना भावे…
    — डॉ. ज्योति राज
  • इजा खड़ी रहती है पहाड़ सी इन पहाड़ों में
    जहाँ उसका दिल बसता है
    खड़ी है इजा आज भी हिमाल सी उन पहाड़ों में
    अपनी थाती बचाने को बन पहाड़ सी….
    — सोनू उप्रेती ‘ साँची’
  • जाने कहाँ गुम हो गए वो सादगी भरे दिन
    छोटे छोटे घरों में रहते थे बड़े परिवार
    रहता था फिर भी जहाँ दिलों में प्यार
    — अनु पपनै
  • इक आंसू ही तो है बह जाने दो
    उसकी याद ही तो है दिल से निकल जाने दो
    मैं मुस्कुराउंगी फिर से पहले की तरह
    पर उसके अक्स को जरा मिट जाने दो..
    — चंद्रा उप्रेती
  • माँ तू ख़ुदा के जन्नत की वो हूर है
    जो कहीं जा न सके तू वो नूर है
    सितारों की महफिल की तू चांदनी है
    ज़मीं पर बिछी है तू वो चांदनी है…
    — मुन्नी पांडे
  • मैंने अक्सर खुद को खुद में खोते देखा है
    सुबह समर्पित शाम थकी सी रात को स्वप्न सजाते देखा…
    — हेमा आर्या ‘ शिल्पी
    ( आख्या फोटो सहयोग नीलम नेगी अल्मोड़ा)
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