( समाज के समाजसेवियों को लेनी चाहिए बिट्टू कर्नाटक से सीख ,प्रतिदिन कुछ न कुछ कर समाज सेवा में लगे रहते हैं, बिट्टू कर्नाटक गणतंत्र दिवस व माघ माह के मौके पर समाजिक कार्यकर्ता,व कांग्रेस नेतापूर्व दर्जामंत्री बिट्टू कर्नाटक ने अपने कार्यालय में माघी खिचड़ी का आयोजन किया जिसमें सैकड़ों की संख्या में लोगों ने पहुंच कर खिचड़ी का प्रसाद ग्रहण किया।श्री कर्नाटक ने कहा कि आज बेहद आवश्यकता है कि अपनी संस्कृति को सहेजकर हम अपने परम्परागत त्यौहारों को उत्साह के साथ मनाएं।

उन्होंने कहा कि माघ के पवित्र महीने को त्यौहार के रूप में भारत के सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों में मनाया जाता है।धार्मिक दृष्टिकोण से माघ मास का बहुत अधिक महत्व है। यही वजह है कि प्राचीन पुराणों में भगवान नारायण को पाने का सुगम मार्ग माघ मास के पुण्य स्नान को बताया गया है।माघ मास में खिचड़ी, घृत, नमक, हल्दी, गुड़, तिल आदि का दान करने से महाफल प्राप्त होता है।माघ मास का हर दिन है पवित्र है जो समस्त पापों से छुटकारा देता है।यह माघ माह भगवान श्रीहरि नर रूप में माधव अर्थात श्रीकृष्ण को समर्पित है।इस माह में स्नान,ध्यान,उपासना आदि से इंसान के पाप नष्ट होते हैं और पुण्य बढ़ता है।

भगवान विष्णु को व्रत,तपस्या आदि से उतनी प्रसन्नता नहीं होती जितनी इस माह में इंसान के पवित्र जल में विधिपूर्वक स्नान करने से होती है।इस पूरे माह में भगवान नारायण की उपासना करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है।इस पूरे माह प्रसाद के रूप में उरद,चावल आदि की खिचड़ी का प्रसाद उत्तम माना जाता है और भगवान को भी यही खिचड़ी का भोग लगता है।खिचड़ी के साथ कुछ ऐसा है कि आप इसे पसंद कर सकते हैं, बीमारू भोजन कहकर नकार भी सकते हैं, लेकिन किसी भी रसोई से आप इसे बेदखल नहीं कर सकते हैं ।जगन्नाथ धाम में प्रभु का पावन प्रसाद ही खिचड़ी है।जिन गौतम ऋषि के तपोवन में गाय और शेर एक साथ जल पीते थे,एक बार अकाल पड़ने पर उन्होंने 7 वर्ष तक खिचड़ी खिलाकर लोगों का भरण-पोषण किया था।

इतिहास और पुराण गवाह है कि जब मनुष्य को तेज भूख लगी है,दिमाग कुंद होने लगा है और कुछ नहीं रहा है तो खिचड़ी इंस्टेंट भोजन के तौर पर सामने प्रकट हुई है।इतिहास में खिचड़ी तकरीबन 3000 साल पुरानी है।खिचड़ी की एक कड़ी महाभारत से भी जुड़ती है।एक दिन द्रौपदी को हस्तिनापुर का अपमान याद आ गया और फिर उनका युधिष्ठिर से कुछ विवाद हो गया।इसके बाद किसी ने भोजन नहीं किया।भीम ने दोनों छोटे भाइयों को भूखा जाना और इन सबके कारण उन्हें कौरवों के कृत्य याद आ गए।इससे वह और क्रोधित हो गए। भूख और क्रोध की इसी मिली-जुली प्रक्रिया में उन्होंने इसी बीच भीम भी क्रोधित हो गए।क्रोध में उन्होंने पकाने के बर्तन में सारे अनाज और सब्जियां एक साथ ही डाल दिए।इस तरह खिचड़ी बन कर सामने आई।ये कहानी जितनी अधिक खिचड़ी की है उतनी ही अधिक पारिवारिक प्रेम और समरसता की है।जिसमें लोग नाराजगी और नोकझोक के बाद भी एक-दूसरे का ख्याल रखते हैं। कार्यक्रम में मुख्य रूप से रमेश चंद्र जोशी,देवेन्द्र कर्नाटक,हेम जोशी, दिनेश चंद्र जोशी अमर बोरा,सन्तोष जोशी,हंसा दत्त कर्नाटक , प्रदीप जोशी,सुधीर कुमार,भगवत आर्या,कृष्णा चिलवाल,नीरज सिंह,अशोक सिंह,मनोज कुमार,प्रकाश मेहता,रश्मि काण्डपाल, आशा मेहता, सीमा कर्नाटक,खष्टी गोस्वामी, गीतांजलि पाण्डे, मेघना पाण्डे, शोभा जोशी, कविता पाण्डे, कंचन पाण्डे, गीता तिवारी, रेखा पवार, सुनीता बगडवाल,सुमन बोरा,नीरू अस्वाल,रेखा जोशी, मीनाक्षी जोशी, रीता पाण्डे, सीमा रौतेला सहित सैकड़ों स्थानीय लोग उपस्थित रहे।

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