(योगेश्वर भगवान कृष्ण ने द्वापर में अन्न के कूट (पर्वत) खड़े करके अपने युग की अन्न संवर्धन क्रान्ति का अभिनव सूत्रपात किया )

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-: आधुनिक युग में न गौवंश संरक्षण, न गौवंश पालक, गोवर्धन, गौवंश पूजन के तरस रहे लोग, कहां खोजें गौवंश , कैसे करें पूजा, घरों में गौवंश पालन की जगह तो कुत्तों, बिल्लियों ने ले ली। आधुनिकता के परिवेश में कहीं विलुप्त न हो जाय , हमारी संस्कृति हमारे त्यौहार?:-

हल को धारण करने वाले भगवान श्री कृष्ण के भैय्या बलराम ने द्वापर में संसार की पहली ऐसी कृषि क्रान्ति की कि हल की नोंक के सहारे किसानों ने अन्न के ऐसे पहाड़ खड़े कर दिए कि कोई भी अन्न के अभाव में भूख से न मर सके । दूसरी ओर गोवर्धन अर्थात गौओं की बढ़ोत्तरी इतनी अधिकता से कराई कि कोई भी कंस या दुर्योधन जैसे कुशासक घी , दूध की नदियों के प्रवाह को अंतिम व्यक्ति तक पहुँचने से नहीं रोक सके । पूतनाओं के कुचक्रों को पूर्णावतार श्रीकृष्ण ने अपने पालने में ही जड़ -मूल से मिटा दिया ।देश की आम जनता जो कृषि और गौ पालन पर आधारित थी उन करोड़ो-करोड़ निर्बलों के बल सच्चे अर्थों में ‘बलराम’ बन गए । देवराज इंद्र होंगे आसमानी देवता उनसे क्या लेना -देना -ऐसी सीख बालक होते हुए भी अपनी माता यशोदा को उन्होंने सिखायी और कहा कि जिस गोवर्धन पर्वत के साए में गौएँ चरा करती हैं , पहाड़ से निकलने वाले झरनों का शीतल जल पीतीं हैं , श्रीकृष्ण की बंशी की तान सुनकर अमृततुल्य दुग्ध में वृद्धि करतीं हैं ,जो किसान हल को धारण करके खेत की कठोर मिट्टी को रैन-बेसन की तरह फेंट देती है ।

वास्तव में ये सारी प्रकृति और मनुष्य ही उस अगोचर ब्रह्म के चलते फिरते साक्षात् ईश्वर है जिनकी पूजा हमें करनी चाहिए । धन्य है अपने देश की वह पावन मिट्टी जहाँ योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के पावन चरण अंकित हुए । हम आज भी द्वापर युग की परम्परा को पूरा करते हुए गोवर्धन पूजा और अन्नकूट अर्थात अन्न के पहाड़ खड़े करके किसी को भी भूख से मरने नहीं देना चाहते हैं परंतु समसामयिक युग में जो हरित क्रांति और दूध- दही -मक्खन की श्वेत क्रांति लहलहाकर देश में पल्लवित हुई थी उससे इतना उत्पादन बढ़ा कि -अकेला पंजाब सारे देश को गेहूँ और चावल खिला सकता है और बुंदेलखंड का सबसे छोटा जिला ललितपुर मात्र कार्तिक में पैदा होने वाली उर्द की दाल से डेढ़ अरब देशवासियों की थाली को लबालब कर सकता है ।

किन्तु समस्या अन्न और घी -दूध के उत्पादन की नहीं है जितनी उपभोक्ता के मुँह से निवाले को दूर करने वाले सिस्टम की उस कुव्यवस्था से है जिसके कारण हम कौरवों और कंसों के नए संस्करणों को पहचानने की अर्जुन दृष्टि खोते चले जा रहे हैं क्योंकि हमारा निशाना सही जगह पर नहीं पड़ रहा है । वस्तुत: योगेश्वर भगवान कृष्ण ने द्वापर में पशुबलि की कुप्रथा के स्थान पर अन्न के कूट (पर्वत) खड़े करके अपने युग की अन्न संवर्धन क्रान्ति का अभिनव सूत्रपात किया ।
आधुनिक युग में न गौवंश संरक्षण, न गौवंश पालक, गोवर्धन, गौवंश पूजन के तरस रहे लोग, कहां खोजें गौवंश , कैसे करें पूजा, घरों में गौवंश पालन की जगह तो कुत्तों, बिल्लियों ने ले ली। आधुनिकता के परिवेश में कहीं विलुप्त न हो जाय , हमारी संस्कृति हमारे त्यौहार?:- यह एक सोचनीय और चिंतन का विषय है। आज गोवर्धन पूजा, गौवंश पूजा पर सोशियल मिडिया में सिर्फ फोटो युक्त बधाई संदेश ही पर्याप्त नहीं है, इसके साथ साथ यह भी आवश्यक है हम अपनी गौवंश, कृषि , पूजा अर्चना त्योहार के पीछे दर्शन को समझे, और उसी मनोवृत्ति के साथ त्योहार मनाये।


आज हम अपने घर में गौशाला तो नहीं बना पा रहे हैं, किन्तु इतना तो कर सकते हैं गौवंश संरक्षण, पालन में सहयोग करें, और इस पुनीत कार्य में संलग्न गौशाला, गौवंश संरक्षण में श्रद्धा से सामर्थ्य अनुसार दान कर जीवन सफल बनायें।

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