( जानी-मानी साहित्यकार कवित्री नीलम नेगी ने हिंदी की वर्तमान स्थिति को कविता के माध्यम से पेश किया)”व्यथा हिंदी की””😔😔

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मैं ‘हिंदी’ हूँ..भारत के माथे की बिंदी हूँव्यथा है मेरी हर वर्ष जागृति के नाम से मेरे अस्तित्व को जगाया जाता है कई प्रांतों में स्वेच्छा से न अपनाकर मुझे थोपा हुआ सा समझा जाता है क्या किसी देश में उसी के अस्तित्व का स्मरण कराया जाता है??हिंदी राष्ट्र और राजभाषा हो जिसकी वहीं हर वर्ष ‘हिंदी दिवस’ मनाया जाता है….

जब अंग्रेज थे तब मैं भारतीयों का स्वाभिमान थी हिंदी…हिंदू…हिंदुस्तान का पर्याय समृद्ध भारत का अभिमान थी 🇮🇳 आज जब देश आज़ाद है तो हर जगह अंग्रेजी की खान है…दो पंक्ति हिंदी के साथ चार शब्द अंग्रेजी सबकी शान है माता पिता…भाई बहन की जगह ‘मम्मी पापा’…’मॉम डैड’…’अंकल आंटी’और ‘सिस’ बन गये हैं…गुरुजी का स्थान ‘सर’…’मैडम’ ने ले लिया तो कहीं ‘मैम’ और ‘मिस’ बन गये हैं….

भारतीय व्यंजनों की जगह ‘बर्गर’..’मोमो’..’पिज्जा”चाउमीन’ और ‘मैक्रोनी’ की बात होती है तो धर्म और संस्कार के संवाहक भजनों की जगह ‘रॉक’ और ‘पॉप’ जैसे वेस्टर्न म्यूजिक से रंगीन रात होती है….

अंग्रेजी की अंधी दौड़ में कहीं खो सी गई हूँ मैं भाषाई प्रदूषण के चलते देशवासियों के मनों में कहीं सो सी गई हूँ मैं 😢

बचा लो मुझको वरना पछताओगे हिंदी बचेगी तभी बच पायेगा हिंदुस्तान अंग्रेजी की गुलामी से बाहर निकल समृद्ध संस्कॄति के मूल में बनूंगी सबकी शान वरना मातृभूमि तो रहेगी पर अस्मिता की संरक्षक हिंदी भाषा ही न रही तो अपने भावों की अभिव्यक्ति के लिये शब्द कहाँ से लाओगे…!!!

भारत भूमि की शान और गुणगान के गीत कहाँ से गाओगे..शब्द कहाँ से लाओगे…!!!

— नीलम नेगी अल्मोड़ा (उत्तराखंड)

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