(विपिन जोशी “कोमल”संयोजक, त्रिभुवन गिरि महाराज, अध्यक्ष, नीरज पंत ने संचालन किया)
ऐतिहासिक माँ नंदा सुनंदा महोत्सव अल्मोड़ा के पारंपरिक मेले में आकर्षक सांस्कृतिक कार्यक्रमों के मध्य मेला आयोजन समिति के तत्वाधान में कल 25 सितंबर की देर सायं तक एक भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया, कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार एवं रंगकर्मी श्री त्रिभुवन गिरि महाराज द्वारा की गई,कार्यक्रम के संयोजक श्री बिपिन चंद्र जोशी ‘कोमल ‘एवं संचालन श्री नीरज पंत ने किया. कवि सम्मेलन में स्थानीय एवं बाहर से आये लगभग 17 लब्ध प्रतिष्ठित कवि साहित्यकारों द्वारा प्रतिभाग किया गया.कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ धाराबल्लभ पांडे जी द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ.तत्पश्चात उपस्थित कवियों ने अनेक सम सामयिक विषयों पर आधारित गीत काव्य,ग़ज़ल,हास्य व्यंग सहित अन्य अनेक सामजिक सरोकारों से जुड़े एवं संवेदनशील विषयों से जुड़ी स्तरीय रचनाओं का हिंदी व कुमाउनी भाषाओं में पाठ किया.कार्यक्रम के प्रारम्भ में संयोजक बिपिन चंद्र जोशी ‘कोमल’जी द्वारा सभी मंचासीन अतिथि साहित्यकारों एवं उपस्थित विशाल जन समूह का स्वागत किया, कार्यक्रम के समापन पर अध्यक्षीय उदबोधन में त्रिभुवन गिरि महाराज द्वारा प्रस्तुत रचनाओं की सराहना करते हुए समयबद्धता के कारण संक्षिप्त बिश्लेक्षणात्मक समीक्षा, तत्पश्चात काव्यपाठ एवं कार्यक्रम समापन की औपचारिक घोषणा की.मेला समिति के सम्मानित अध्यक्ष श्री मनोज सनवाल जी ने सभी साहित्यकारों का आभार व्यक्त करते हुए सभी को नंदा सुनंदा मेले का प्रतीक चिह्न भेंट किया.आयोजक मंडल का हृदयतल से साधुवाद !
कुछ रोचक प्रस्तुतियों की एक झलक (मुखड़ा पंक्तियाँ)
–
किसी की कैद में रह लूं मगर मुमकिन नहीं है ये
मोहबत प्यार की डोरी से मैं बंधकर चली आई — बीना चतुर्वेदी*
जब कभी बुढापे में स्लेटी बाल नींद से बोझल आँखों से
तुम आतश्दान के पास बैठकर इस किताब को धीरे धीरे पढ़ोगे
तब तुम्हें याद आयेगी वह नर्म निगाहें और उनमें गहरे सायेजो कभी तुम्हारे हुआ करते थे…
— सैय्यद अली हामिद*
हिमालयी राज्य मै रुणु तोहमार हिमालय है
उच्च बिचार हुन चानी देव भूमि मै रौनू तो
द्यापतन है लै भल आचरण हुन् चानी…
—बिपिन चंद्र जोशी’ कोमल‘*
कुंण के चाछी जाणि के कै गईं
मनकी बात मन मै जि रै
नि कौनू तू कौलि कौनू तू नि कौली
चैन पराणि कै याँ कसिकै नि भै…
— महेंद्र माहरा’ मधु’*
जब से तेरी आँखें देखी हमने पीना छोड़ दिया
अब ना खिलेंगे फूल ओ सजनी
तुमने जो हंसना छोड़ दिया…
— नीरज पंत*
माँ की आँखे अनवरत सावन सी बरसती रहीं
और उधर भीगी पलकों में स्वर्णिम जीवन की
अनगिनत आस विश्वास लिए माँ का आँचल छोड़
रानी बेटी खुशी खुशी विदा हो गई…
— नीलम नेगी*
मैं गीतों में दिल का अमन ढूंढती हूं,
संगीत में नव सृजन ढूंढती हूं।
फूलों में,कलियों में गुंजित भंवर में,
नुपुर की रुनझुन, रूनित झांझरों में,
शीतल मलय की सरर -सर – सरर में,
बहती नदी की कल कल छलल में।
तिनके जुटाकर सजाते जो घर हैं,
पक्षी के कलरव में कोयल के स्वर में।
ईश्वर की सुंदर झलक देखती हूं।
— मीनू जोशी*
म्यर कुमाऊं की बात निराली,
बात निराली, बात निराली ।
चारों तरफ छु यां हरियाली ।
बोट-डाव छन शान हमारा
बांज,बुरांश,काफल,देवदारा ।
वार-पार छन धुर जंगवा
ठंडी -ठंडी सुंर-सुंर हावा ।
— कमला बिष्ट*
ये खूबसूरत फ़िज़ा है महब्बत हंसीं
दिल ये कहता है बचके निकल जाइये
ये सदाएं न उलझा के छोड़ें कहीं
दिल ये कहता है बच के संभल जाइये..
— वीना चतुर्वेदी।
समाचार कवरेज में साहित्यकार नीलम नेगी का सराहनीय सहयोग रहा।