( “ये दर्द का मौसम है ,जरा संभल कर रहिये। कोई ज़ालिम जख्म कुरेद न दे, संभलकर रहिये। वीणा चतुर्वेदी ने खूब तालियां बटोरी)
उत्तराखंड के साहित्यकारों की जानी-मानी संस्था छंजर सभा कीप्रत्येक माह के अंतिम शनिवार को आयोजित होने वाली काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ शिक्षाविद एवं साहित्यकार नीलम नेगी द्वारा की गई, मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार श्री जनार्दन उप्रेती ‘जन्नू दा’ पिथौरागढ़ प्रतिष्ठित रहे तथा संचालन वरिष्ठ साहित्यकार एवम् शिक्षाविद् नीरज पंत जी द्वारा किया गया। गोष्ठी में उपस्थित कवियों ने नवरात्रि, शहर अल्मोड़ा, प्रकृति,श्रृंगार के संयोग/वियोग पक्ष, वर्तमान राजनीति,सामाजिक परिदृश्य सहित अन्य अनेक सम सामयिक विषय आधारित काव्य,गीत,व्यंग,ग़ज़ल आदि विधाओं पर हिंदी व कुमाउनी में अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं।मीनू जोशी ने सुंदर सरस्वती वंदना से काव्य गोष्ठी का पारंपरिक शुभारंभ किया–
- तुम्हें पुकारते हुए माँ शारदे तेरी शरण में आज आ रहे हैं हम
तरल हृदय से भाव कलिकायें चुन ये गीत गुनगुना रहे हैं हम..* मुख्य अतिथि ने अपने सम्बोधन में सभी प्रस्तुत काव्य पाठ, गीत,गज़लों की साहित्यिक समीक्षा व प्रशंसा की.यथासंभव छंजर सभा में उपस्थित होकर अल्मोड़ा के प्रबुद्ध रचनाकारों को अपना सानिध्ध प्रदान करने का आश्वासन दिया.साथ ही छंजर सभा को साहित्यिक रूप से सतत सृजनात्मक व और अधिक समृद्ध बनने की मंगल कामना भी की, तत्पश्चात अपना काव्य पाठ किया….👉काव्य गोष्ठी में उपस्थित कुछ प्रस्तुतियों /काव्यपाठ की झलक— (मुखड़ा पंक्तियाँ) - रोते सिसकते हुए पहाड़ के लोग,
घर में खाना नहीं ऊपर से लग गया है रोग…
— मोहन लाल गंज - जब साहिल पर रेत का बनाया घर पक्का हो जायगा
जब मीठी नदियों में मिलकर समंदर मीठा हो जायगा
तब प्रेम व्यंग नहीं रहेगा पुनः प्रेम बन जायगा…
— विपुल जोशी - समस्या समस्या रैगे कोड़ मै खाज जसि हैगे
हर बार हर साल रिटि फिर बी समस्या रैगे…
— डी. एस. बोरा - कब जाग लै कब जाग लै जाग जा ओ पहाड़ी तू कब जागलै
कब जाग लै कब जाग लै,जाग ओ उत्तराखंडी तू कब जागलै…
— दीवान कनवाल - जब यांक नेता सम दृष्टि है जाना, हमर मुलुक भलौ है जानौ
धर्म क नाम मै न लोग बाटना जब यांक नेता समान देखना….
— नारायण राम - आज फिर उनसे मुलाक़ात हुई,आँखों आँखों में बड़ी बात हुई
दिल तो कहता था कहीं और चलें, बैठे बैठे ही सुबह से रात हुई.
— नीरज पंत - बादल! तुम्हें घिरते देखा था, पहले कभी फटते नहीं देखा
तुम्हारे फटते ही चौपट हो जाती है वहां की ज़मीन जायजाद मवेशी मनुष्य और सम्पदा..तब नाम दिया जाता है आपदा…
— रमेश चंद्र लोहुमी - नहीं ठहरता एक जगह पर सचमुच मन बंजारा है
चलते चलते थक मत जाना लक्ष्य ने आज पुकारा है…
— डॉ. धाराबल्लभ पांडे - चंद्रयान हो विश्व में देश का मान हो
हर जुबां पर भारत का नाम हो
हर नागरिक का सम्मान हो किंतु ध्यान रहे
भूख का भी समाधान हो….
— विपिन जोशी ‘कोमल’ - जिस कलम से चाहा मैंने राम लिखना
आज उस कलम ने मेरा साथ न दिया
निःस्वार्थ राह छोड़ के स्वार्थो में घिर पड़ी
ना लिख सकी वो राम रावण पे चल पड़ी….
— जनार्दन उप्रेती ‘जन्नू दा’ - जां देखो वां बानरों डांग, कसि करनी घर खेति काम..
— दिनेश चंद्र पांडेय - अल्मोड़ा यूँ रचा बसा है हर एक दिल की धड़कन में
कतरा कतरा स्नेह भरा है माटी के हर कण कण में…
— मीनू जोशी - कह उठे गुलफाम गुलशन और हिमगिरि की तरगें
रक्त की प्यासी बनी क्यों विश्व में फ़ौजी उमंगे…
— वत्सळा चौहान - ये दर्द का मौसम है जरा संभलकर रहिये
कोई ज़ालिम जख्म कुरेद न दे संभलकर रहिये…
— वीणा चतुर्वेदी’ वीणा’ - लड़ै क भौते परकार छन, स्यैणि बैगकि लड़ै
सास ब्वारिक लड़ै, भै बैणिक लड़ै, भै भैकि लड़ै…
–कमला बिष्ट ‘कमल’ - भक्तों के मन मंदिर में माता दरबार सजाती है
देवी के नौ रूपों में हर रूप की देवी परमेश्वरी
अनंता सहस्त्रनामिनी माँ नव दुर्गा कहलाती है…
— नीलम नेगी
*आख्या /रिपोर्ट प्रस्तुति/फोटो वीडियो संकलन — नीलम नेगी
” काव्य गोष्ठी “
प्रत्येक माह के अंतिम शनिवार को आयोजित होने वाली काव्य गोष्ठी आज 27 सितंबर 2025 को सायं 5:00 बजे से श्री लक्ष्मी भंडार हुक्का क्लब में संपन्न हुई, कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ शिक्षाविद एवं साहित्यकार नीलम नेगी द्वारा की गई, मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार श्री जनार्दन उप्रेती ‘जन्नू दा’ पिथौरागढ़ प्रतिष्ठित रहे तथा संचालन वरिष्ठ साहित्यकार एवम् शिक्षाविद् नीरज पंत जी द्वारा किया गया…
- इनके अतिरिक्त गोष्ठी में वरिष्ठ साहित्यकार एवम् रंगकर्मी श्री त्रिभुवन गिरि महाराज जी(संरक्षक), डॉ.धाराबल्लभ पांडे, विपुल जोशी, विपिन चंद्र जोशी,रमेश चंद्र लोहुमी,मीनू जोशी, कमला बिष्ट,मोहन लाल टम्टा,वीणा चतुर्वेदी,दिनेश पाण्डेय, डॉ डी. एस. बोरा,वत्सला चौहान,नारायण राम जी सहित अन्य अनेक साहित्य प्रेमी व श्रोता उपस्थित रहे.उपस्थित कवियों ने नवरात्रि, शहर अल्मोड़ा, प्रकृति,श्रृंगार के संयोग/वियोग पक्ष, वर्तमान राजनीति,सामाजिक परिदृश्य सहित अन्य अनेक सम सामयिक विषय आधारित काव्य,गीत,व्यंग,ग़ज़ल आदि विधाओं पर हिंदी व कुमाउनी में अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं…
- सर्वप्रथम संचालक नीरज पंत जी ने अध्यक्ष एवं मुख्य अतिथि महोदय /महोदया को आसन ग्रहण करने के आग्रह के साथ सभी का औपचारिक स्वागत करते हुए कार्यक्रम की शुरुआत की.मीनू जोशी ने सुंदर सरस्वती वंदना से काव्य गोष्ठी का पारंपरिक शुभारंभ किया–
- तुम्हें पुकारते हुए माँ शारदे तेरी शरण में आज आ रहे हैं हम
तरल हृदय से भाव कलिकायें चुन ये गीत गुनगुना रहे हैं हम… - मुख्य अतिथि ने अपने सम्बोधन में सभी प्रस्तुत काव्य पाठ, गीत,गज़लों की साहित्यिक समीक्षा व प्रशंसा की.यथासंभव छंजर सभा में उपस्थित होकर अल्मोड़ा के प्रबुद्ध रचनाकारों को अपना सानिध्ध प्रदान करने का आश्वासन दिया.साथ ही छंजर सभा को साहित्यिक रूप से सतत सृजनात्मक व और अधिक समृद्ध बनने की मंगल कामना भी की, तत्पश्चात अपना काव्य पाठ किया….
- गोष्ठी के अंत में अपने अध्यक्षीय संबोधन में नीलम नेगी ने उपस्थित जनों को साधुवाद देते हुए विविध विधाओं में प्रस्तुत सभी रचनाओं की समीक्षा व सराहना की,पिथौरागढ़ से आये जनार्दन उप्रेती जी ‘जन्नू दा ‘ (मुख्य अतिथि ) का अभिनंदन/ आभार व्यक्त किया.सभी को शरदीय नवरात्रि की बधाई व शुभकामनायें देते हुए माँ दुर्गा अपने नौ रूपों में सभी साधकों के लिये सुख समृद्धि प्रदात्री व कल्याणकारी हो ऐसी कामना की,तत्पश्चात अपना काव्य पाठ किया..
- अंत में सभी को साधुवाद देते हुए अध्यक्ष महोदया की अनुमति से संचालक नीरज पंत जी द्वारा काव्य गोष्ठी के समापन की औपचारिक घोषणा की गई.
👉काव्य गोष्ठी में उपस्थित कुछ प्रस्तुतियों /काव्यपाठ की झलक— (मुखड़ा पंक्तियाँ)
- रोते सिसकते हुए पहाड़ के लोग,
घर में खाना नहीं ऊपर से लग गया है रोग…
— मोहन लाल गंज - जब साहिल पर रेत का बनाया घर पक्का हो जायगा
जब मीठी नदियों में मिलकर समंदर मीठा हो जायगा
तब प्रेम व्यंग नहीं रहेगा पुनः प्रेम बन जायगा…
— विपुल जोशी - समस्या समस्या रैगे कोड़ मै खाज जसि हैगे
हर बार हर साल रिटि फिर बी समस्या रैगे…
— डी. एस. बोरा - कब जाग लै कब जाग लै जाग जा ओ पहाड़ी तू कब जागलै
कब जाग लै कब जाग लै,जाग ओ उत्तराखंडी तू कब जागलै…
— दीवान कनवाल - जब यांक नेता सम दृष्टि है जाना, हमर मुलुक भलौ है जानौ
धर्म क नाम मै न लोग बाटना जब यांक नेता समान देखना….
— नारायण राम - आज फिर उनसे मुलाक़ात हुई,आँखों आँखों में बड़ी बात हुई
दिल तो कहता था कहीं और चलें, बैठे बैठे ही सुबह से रात हुई.
— नीरज पंत - बादल! तुम्हें घिरते देखा था, पहले कभी फटते नहीं देखा
तुम्हारे फटते ही चौपट हो जाती है वहां की ज़मीन जायजाद मवेशी मनुष्य और सम्पदा..तब नाम दिया जाता है आपदा…
— रमेश चंद्र लोहुमी - नहीं ठहरता एक जगह पर सचमुच मन बंजारा है
चलते चलते थक मत जाना लक्ष्य ने आज पुकारा है…
— डॉ. धाराबल्लभ पांडे - चंद्रयान हो विश्व में देश का मान हो
हर जुबां पर भारत का नाम हो
हर नागरिक का सम्मान हो किंतु ध्यान रहे
भूख का भी समाधान हो….
— विपिन जोशी ‘कोमल’ - जिस कलम से चाहा मैंने राम लिखना
आज उस कलम ने मेरा साथ न दिया
निःस्वार्थ राह छोड़ के स्वार्थो में घिर पड़ी
ना लिख सकी वो राम रावण पे चल पड़ी….
— जनार्दन उप्रेती ‘जन्नू दा’ - जां देखो वां बानरों डांग, कसि करनी घर खेति काम..
— दिनेश चंद्र पांडेय - अल्मोड़ा यूँ रचा बसा है हर एक दिल की धड़कन में
कतरा कतरा स्नेह भरा है माटी के हर कण कण में…
— मीनू जोशी - कह उठे गुलफाम गुलशन और हिमगिरि की तरगें
रक्त की प्यासी बनी क्यों विश्व में फ़ौजी उमंगे…
— वत्सळा चौहान - ये दर्द का मौसम है जरा संभलकर रहिये
कोई ज़ालिम जख्म कुरेद न दे संभलकर रहिये…
— वीणा चतुर्वेदी’ वीणा’ - लड़ै क भौते परकार छन, स्यैणि बैगकि लड़ै
सास ब्वारिक लड़ै, भै बैणिक लड़ै, भै भैकि लड़ै…
–कमला बिष्ट ‘कमल’ - भक्तों के मन मंदिर में माता दरबार सजाती है
देवी के नौ रूपों में हर रूप की देवी परमेश्वरी
अनंता सहस्त्रनामिनी माँ नव दुर्गा कहलाती है…
— नीलम नेगी
*आख्या /रिपोर्ट प्रस्तुति/फोटो वीडियो संकलन — नीलम नेगी



