(त्रिभुवन गिरी महाराज गोष्ठी के अध्यक्ष, नीरज संचालक रहे)

छंजर सभा की मासिक काव्य गोष्ठी में शहर के चुनिंदा लब्धप्रतिष्ठित कवियों ने अपनी कविताओं का सस्वर पाठ किया ।

गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्री त्रिभुवन गिरि महाराज ने की तथा संचालन सेवा निवृत्त प्रधानाचार्य नीरज पंत ने किया। गोष्ठी की शानदार शुरुआत प्रकाश पांडेय के इस भजन से हुयी।

बहुतै लीला करे हो श्याम

तुम बहुतै नाच नचायो ।

तत्पश्चात प्रकाश जी ने गज़ल प्रस्तुत की

यूं ही जलते हैं जमाने में जलने वाले ,

सच को खामोश हवाओं में बदलने वाले ।

बिपिन चंद्र जोशी जी “कोमल” ने अपनी प्रस्तुति से शमा बांध दिया …

पर्वत से महान हो तुम

सागर से गहरे हो तुम ।

दूसरी कविता कुछ यूं

जीवन का सार हो तुम

तुमसे ही सब जाना हमने ।

श्रीमती कमला बिष्ट जी अपने मन के उद्गार कुछ यूं बयां किए ….

आज खाली पड़ी हैं क्यों ये बखलियां

वीरानी की दास्तां सुना रहे ये जंग लगे ताले।

कमला जी ने एक कुमाउनी कविता भी सुनाई

2–ओ बाबू मिकें स्कूल पढ़े दियो

पढ़े लिखे बेर ठुल सैप बणै दियो ।

सेवानिवृत्त अधिकारी श्री मोहन लाल टम्टा जी ने कुमाउनी में सशक्त रचना प्रस्तुत की —

1– पाखा का पाथर हराण

लिपिया भितैर हराण ।

वर्तमान में पहाड़ों की खिसकती जमीन पर उन्होंने कटाक्ष किया …

2–उजड़ते हुए पहाड़

सिसकती हुई चट्टान ।

डॉ धाराबल्लभ पांडे जी ने कुमाऊनी गीत सुनकर महफिल लूट ली ….

1–उत्तराखंड धन्य हमर छ हिमाला

ऊंची नींची चोटी जैक वरफा ढकिया ।

डॉ डी एस बोरा जी ने कुमाउनी व्यंग से वर्तमान में रुपए की भूख पर वार किया ।

1–आजि ऐगो त रूपैं ,

सुदै शनियात में एरौ त रूपैं ,

कदुकनाक नामल पचकैं हालौ त रूपैं ।

डॉ हेम चंद्र तिवारी जी ने एक बेहतरीन रचना प्रस्तुत कर महाराज जी से बधाई प्राप्त की।

1– वेदने ! तू क्यों न रोई,

मौन निःस्पृह क्यों न खोई ।

नीरज पंत जी ने एक ग़ज़ल प्रस्तुत की …

1–कतरा कतरा तमाम हो जाए

वो न आएं ओ शाम हो जाए ।

एक गीत सुनाकर उन्होंने सभी को ताली बजाने के लिए विवश कर दिया ….

2–तुमसे जो मिले तो दिल का क्या

वो तो चुपचाप धड़कता है ,

हम जाएं कहीं फिर भी लेकिन

ये तो चुपचाप महकता है ।

अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार श्री त्रिभुवन गिरि महाराज ने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि आज की गोष्ठी कई मायने में अविष्मरणीय रही एक से बढ़ कर एक रचनाएं आईं ,बहुत आनंद आया ।

उन्होंने सभी कवियों को बधाई व शुभकामनाएं दी और एक कुमाउनी रचना सुनकर सभा समाप्ति की घोषणा भी की ….

1–मेरी काखीक, काखिक,चुचिक नान भौल,मेरि इजै पुन्यूकि पुजै थाई में टिकैदे खुट।

काखील भौ कैं एक चट्टैक लगै दे। कूण लागी रनकरा त्यर है जो नष्ट। त्वील दीदी भ्रष्ट्यै दे बर्त।

काखियो !आजा दिन त्यारा ठुल च्यालोंल‌ पुन्यू में साधि है आसन। आ्ब लगा ठुल भौ मुखन फच्चैक।

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