उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले से करीब 90 किमी दूर पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर स्थित है। इस मंदिर का जिक्र पुराणों में भी किया गया है। जानिए इस मंदिर के बारे में रोचक बातें।

इस मंदिर के बारे में ऐसा कहा जाता है कि सूर्य वंश के राजा और त्रेता युग में अयोध्या पर शासन करने वाले राजा ऋतुपर्णा ने इस गुफा की खोज की थी, जिसके बाद उन्हें यहां नागों के राजा अधिशेष मिले थे। ऐसा कहा जाता है कि इंसानों द्वारा मंदिर की खोज करने वाले राजा ऋतुपर्णा पहले व्यक्ति थी।

अधिशेष ऋतुपर्णा को गुफा के अंदर ले गए, जहां उन्हें देवी देवताओं के साथ-साथ भगवान शिव के दर्शन करने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ।

ऐसा कहा जाता है कि फिर उसके बाद इस गुफा की चर्चा नहीं हुई और फिर द्वापर युग में पांडवों द्वारा इस गुफा को फिर से ढूंढ लिया गया। जहां वे इस गुफा के पास भगवान की पूजा करते थे स्कंदपुराण में उल्लेख है कि खुद महादेव शिव पाताल भुवनेश्वर में रहते हैं और अन्य देवी देवता उनकी यहां पूजा करने आते हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार कलियुग में मंदिर की खोज जगदगुरु आदि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में की थी, जहां उन्होंने यहां तांबे का शिवलिंग स्थापित किया था।

इस मंदिर में जाने से पहले मेजर समीर कटवाल के मेमोरियल से होकर जाना पड़ता है। कुछ दूरी तक चलने के बाद ग्रिल गेट गेट आपको दिखेगा, जहां से पाताल भुवनेश्वर मंदिर की शुरुआत होती है। ये गुफा 90 फीट नीचे है, जहां बेहद ही पतले रास्ते से होकर इस मंदिर तक प्रवेश किया जाता है।

जब आप थोड़ा आगे चलेंगे तो आपको यहां की चट्टानों की कलाकृति हाथी जैसी दिखाई देगी। फिर से आपको चट्टानों की कलाकृति देखने को मिलेगी जो नागों के राजा अधिशेष को दर्शाती हैं। ऐसा कहा जाता है कि अधिशेष ने अपने सिर पर दुनिया का भार संभाला हुआ है।

पौराणिक कथाओं के आधार पर इस मंदिर में चार द्वार मौजूद हैं, जो रणद्वार, पापद्वार, धर्मद्वार और मोक्षद्वार के नाम से जाने जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब रावण की मृत्यु हुई थी तब पापद्वार बंद हो गया था। इसके बाद कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद रणद्वार को भी बंद कर दिया गया था।  ऐसी मान्यता है कि मंदिर में भगवान गणेश के कटे हुए सिर को स्थापित किया गया है।

यहां मौजूद गणेश मूर्ती को आदिगणेश कहा जाता है। इस गुफा में चार खंबे हैं जो युगों – सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलियुग को दर्शाते हैं।

इनमें पहले तीन आकारों के खंबों में कोई परिवर्तन नहीं होता, लेकिन कलियुग का खंबा लंबाई में ज्यादा है। इस गुफा को लेकर एक और खास बात ये भी है कि यहां एक शिवलिंग है जो लगातार बढ़ रहा है, ऐसी मान्यता है कि जब ये शिवलिंग गुफा की छत को छू लेगा, तब दुनिया खत्म हो जाएगा।

गुफा में एक साथ चार धामों के दर्शन भी किए जा सकते हैं। ऐसी मान्यता है कि गुफा में एक साथ केदारनाथ, बद्रीनाथ, अमरनाथ देखे जा सकते हैं। बताया जाता है कि इस गुफा में मौजूद पत्थर से पता लग सकता है कि दुनिया का अंत कब होगा। 

अगर आप रोमांच और धार्मिक प्रेमी हैं, तो अच्छा होगा आप इस मंदिर के दर्शन एक सही समय में करें। उत्तराखंड में इस रहस्यमयी गुफा की यात्रा करने के लिए मानसून का समय बिल्कुल भी सही नहीं है, आप यहां मार्च से जून के बीच दर्शन करने के लिए जा सकते हैं। अगर आपको ठंड में घूमना बेहद पसंद है तो ठंड में आप अक्टूबर से फरवरी के महीने में भी जा सकते हैं।

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