जम्मू कश्मीर में अनंतनाग जिले के आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में डीएसपी हुमायूं भट्ट शहीद हो गए. एकनाउंटर के दौरान उन्हें गोली लग गई थी. गोली लगते ही डीएसपी हुमायूं ने अपनी पत्नी फातिमा को वीडियो कॉल किया था. अपनी पत्नी को वीडियो कॉल के दौरान उन्होंने कहा था कि ‘शायद न बचूं, बेटे का ख्याल रखना.’ ये चंद लाइन ही डीएसपी हुमायूं भट्ट के आखिरी शब्द थे।
नहीं लगता कि मैं बच पाऊंगा‘
जब वे अनंतनाग के गडूल कोकेरनाग में बुधवार सुबह आतंकियों की गोली से घायल हुए, ठीक उसी वक्त उन्होंने पत्नी फातिमा को वीडियो कॉल कर अपने हालात बयां किए. उन्होंने कहा था, “मुझे गोली लगी है, नहीं लगता कि मैं बच पाऊंगा. हमारे बेटे का ख्याल रखना.”डीएसपी हुमायूं के पेट में गोली लगी थी. उनकी सास सैय्यद नुसरत ने बताया कि हुमांयू जहां घायल पड़े थे, वो लोकेशन ट्रेस करने में हेलिकॉप्टर को देर लग गई. उन्हें घटनास्थल से जैसे-तैसे लाकर सीधे श्रीनगर के सेना अस्पताल लाया गया, यहां फातिमा और 29 दिन के बेटे को देखने के बाद हुमायूं ने दम तोड़ दिया. 27 सितंबर को हुमायूं-फातिमा की शादी का एक साल पूरा होने वाला था. फातिमा तो सदमे में हैं. उनके पिता गुलाम हसन भट्ट जम्मू-कश्मीर पुलिस में आई रहे हैं।
बेटे के शव के पास चुपचाप खड़े रहे गुलाम हसन भट्ट
शहीद अधिकारी बेटे के पार्थिव शरीर पर पुष्पांजलि अर्पित करते समय बहादुर पुलिस अधिकारी का साहस व धैर्य भारतीय पुलिस के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा. कमजोर शरीर वाले सेवानिवृत्त आईजीपी गुलाम हसन भट्ट श्रीनगर में जिला पुलिस लाइन में अपने बेटे डीएसपी हुमायूं भट्ट के शव के पास चुपचाप खड़े रहे. एडीजीपी जावेद मुजतबा गिलानी के साथ गुलाम हसन भट्ट ने तिरंगे में लिपटे अपने शहीद बेटे के ताबूत पर पुष्पांजलि अर्पित की. उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, मुख्य सचिव अरुण मेहता, डीजीपी दिलबाग सिंह और जम्मू-कश्मीर पुलिस के अन्य सभी वरिष्ठ अधिकारी शहीद अधिकारी को अंतिम सम्मान देने के लिए उनके पिता के पीछे खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करते रहे. आतंकियों के साथ मुठभेड़ में सेना के कर्नल मनप्रीत सिंह, 19 राष्ट्रीय राइफल्स के सीओ मेजर आशीष ढोंचक और डीएसपी हुमायूं भट्ट आतंकियों की गोलीबारी की चपेट में आ गए.घायल अधिकारियों को निकालने के लिए पैरा कमांडो ऑपरेशन में शामिल हुए. आतंकवादियों की गोलीबारी और पहाड़ी इलाके की अनिश्चितताओं का सामना करते हुए, घायल अधिकारियों को निकाला गया. डीजीपी दिलबाग सिंह और एडीजीपी, विजय कुमार ऑपरेशन की निगरानी के लिए घटनास्थल पर पहुंचे. दुर्भाग्य से, तीनों अधिकारियों का बहुत खून बह गया था और डॉक्टरों द्वारा उन्हें बचाया नहीं जा सका.इन सभी ने राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य में सर्वोच्च बलिदान दिया.