नन्हे बेटे का दिल ख़ुशी से खिला था,
पर्यावरण दिवस पर होमवर्क जो मिला था,
हाथ मे पौधा लेकर बोला, सुनो माँ!
एक पौधे के आगे इतने क्यों खड़े हैं वहाँ?
नन्हे पौधे लगाकर कुछ बीज बोने लगा,
मग़र कुछ देखकर अचानक बच्चा रोने लगा,
दस लोग एक पेड़ को हाथ लगा रहे हैं,
पहले वाले की मिट्टी उखाड़ के दबा रहे हैं,
माँ ये पौधों से किस तरह का प्यार है?
फोटो खिंचाने को कितनी मारामार है,
मां पिछली बार भी तो इन्होंने पेड़ लगाए थे,
फोटो खिंचवाकर कार्यक्रम भी करवाए थे,।
आज भी सारे नेता फोटो खिंचवा रहे हैं,
नेता हाथ लगा रहे हैं चमचे मिट्टी दबा रहे हैं,
माँ! ये तो धोखा है,बड़ा ही छल है,
मैं वहाँ पेड़ लगाऊंगा जहाँ जंगल है,
मां ने कहा बेटा तेरी बात सही है,
मगर जंगल हमारे लिए नहीं है,
वहाँ तो हर साल लाखों पेड लगाए जाते हैं,
पत्रकार,गणमान्य,सफेदपोश बुलवाए जाते हैं,
पेड़ लगे तो साहब मुड़कर नहीं आते,
इस साल के पेड़ अगले साल नज़र नहीं आते,
मन से लगाने वाले अपनेआप लगाते हैं,
वे दिखावा नहीं करते हैं चुपचाप लगाते हैं।
इस साल भी जंगल में भयानक आग भड़केगी,
लाखों पेड़ों की फिर नई फाइल निकलेगी,
बेटे तभी तो सब गटागट पियेंगे,
नए साल का नया बजट पियेंगे।
“मनी नमन”


