( राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”की पुस्तक समीक्षा पर एक नजर)
श्री अलंकार रस्तोगी कृत व्यंग्य संग्रह “डंके की चोट पर” व्यंग्य की उत्कृष्ट पुस्तकों में से एक….
नवाबों का शहर लखनऊ l यहां हरफन मिजाज लोग बड़े मस्ती में रहते है और बड़े मस्ती में जीते हैं l यूँ कहें तो पूरा लखनऊ ही मस्ती में जीता है l
अब बात करते हैं लखनऊ के साहित्यकारों की l जी.. लखनऊ के साहित्यकारों का क्या कहना l इनकी भी नफासत और नजाकत कोई कम थोड़े न है l ये भी अपने अंदाज में खूब जीते हैं, और अपने ही अंदाज में खूब लिखते हैं l लखनऊ का प्राइम लोकेशन हुआ हजरतगंज और हजरतगंज से मुश्किल से एक -डेढ़ किलोमीटर आगे बलरामपुर गार्डन के नाम से वह जो जगह थी,जहाँ पुस्तक मेला लगा हुआ था l

पुस्तक मेले के साहित्यिक मंच पर आज मुझे बहुत कुछ देखने और सुनने को मिला l हिंदी काव्य और गद्य दोनो की विभिन्न विधाओं के बड़े नाम , देश के प्राख्यात साहित्यकार पद्मश्री डॉ. अशोक चक्रधर की उपस्थिति में यहाँ का साहित्यिक मंच सजा था l वैसे तो मुझे लखनऊ के एक दो बड़े साहित्यकारों को छोड़कर कोई भी बड़ा नाम शायद नही जानता, लेकिन मेरा क्या.. मै ठहरा साहित्यानुरागी l मन में साहित्य कोतूहल रहता है, कलम थोड़ा बहुत लिख लेती है और अपने को श्रेष्ठ दर्शक – श्रोता मानता हूँ सो मैं साहित्य सभाओ मे पहुँचता रहता हूँ l आज भी मै उत्तर प्रदेश साहित्य सभा के बैनर तले आयोजित व्यंग्यसभा के पांडाल मे पहुँच गया था l मुझे पहचानने वाले और भलीभांति जानने वाले सिर्फ एक नाम वहाँ मौजूद थे, वे थे प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री अनूप श्रीवास्तव जी l
नामचीन व्यंग पत्रिका अट्टहास के इस प्रधान संपादक एवं बरिष्ठ साहित्यकार के व्यंग आलेखों का तो पहले से ही मुरीद रहा l मंच पर एक से एक व्यंग वाचक साहित्यकारों ने व्यंगपाठ किया l लगभग सभी व्यंगकारों के धारदार व्यंगों ने हमें गुदगुदाने में कोई कोर कसर नहीं की l पंकज प्रसून के छोटे-छोटे व्यंग गुटकों ने, हम दर्शकों कम साहित्यकारों को खूब गुदगुदाया, वही एक नाम और है जिसका जिक्र में करना चाहता हूँ, जिन्हें संचालक श्री मुकुल महान जी द्वारा इस व्यंगसभा सबसे युवा व्यंगकार कहा जा रहा था l वह नाम था व्यंग्यकार अलंकार रस्तोगी का l
जी.. बिल्कुल.. मै दावे कह सकता हूँ कि युवा व्यंगकार श्री अलंकार रस्तोगी अपने व्यंग पाठ मे अपने सारे मानक पूरे करते हुए नजर आए l मुख्य अतिथि के रूप में पधारे हुए, वरिष्ठ साहित्यकार, कवि एवं व्यंगकार पद्म श्री आदरणीय डॉ.अशोक चक्रधर जी ने, सारे व्यंगवाचकों की न सुन्दर व्यंजना की बल्कि अपनी छोटी-छोटी टिप्पणियों से एक हल्की मगर सटीक समीक्षा भी की l
मीनू किचन के पंडाल में बैठे-बैठे मुझे श्री अलंकर रस्तोगी से बात करने का, उनसे चर्चा करने का और परिचय करने का अवसर मिला l लगे हाथ उनकी एक व्यंग कृति “डंके की चोट पर” भी मेरे हाथ लग गयी l ऐसे हाथ नही लगी बल्कि उन्होंने मुझे दिया l मैंने भी घर पहुंच कर मैं देरी नहीं की और मैं इस पुस्तक को पढ ही डाला और अब मैं डंके की चोट पर कह सकता हूं कि लखनऊ के इस युवा व्यंगकार ने अपनी इस पुस्तक में जो परिपक्वता दिखाई वह उन्हें, श्रेष्ठ व्यंग्यकारों की श्रेणी में रहने की पूरी की पूरी अनुमति देता है l
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118 व्यंगालेखों से सजी 120 पेज की यह पुस्तक पाठक के दिल पर हल्की पर गहरी शब्द चोट करती प्रतीत हुई l
यदि हम बात करते हैं इनके प्रथम व्यंग आलेख ‘आखिर पड ही गई ना ठंड ‘ की आम जन के जीवन पर कटाक्ष करती ये पंक्तियां कि..
” अरे साहब अब क्या बताऊं l आजकल तो गरीब ही मोटी चमड़ी के होते हैं l उन्हें हल्की-फुल्की ठंड से कुछ होता भी तो नहीं l बड़े बेशर्म होते हैं यह लोग l कुछ भी फटा – चीथड़ा लपेट कर सो जाते हैं l मजाल है उन्हें ठंड छू भर जाए l ” तंत्र एवं समाज के एक वर्ग की निष्ठुरता को दर्शाती हैं,वहीं पाठक के मर्म को कंपकपा देती हैं l पैसे की भूख से भूखे सरकारी तंत्र की ख़ुशी तो सिर्फ यह हुई कि..
‘ ‘ ठंड में जिले में चार मौतें हुई है और सरकार ने तात्कालिक प्रभाव से अलाव जलाने और कंबल बांटने का आदेश जारी कर दिया है “
श्री अलंकार जी की भाषा कहीं से किसी अलंकार से कम नहीं है l अपने इर्द-गिर्द में घट रही घटनाओं से कहानी उठा कर उसमें व्यंग को पिरो देने की कला इस युवा कलमकार की कलम में कूट-कूट कर भरी है l
‘आत्मसमर्पण करवाते यह रावण’ शीर्षक से छपे व्यंग आलेख की यह पंक्ति कि.. अब या तो आप मेरी फीस हर महीने समय से जमा किया करो या रामलीला में राजा राम बनना छोड़ दो ‘ राम प्रताप दिल को जरूर हिला रही होगी l
अलंकार की कलम हर गली – मोहल्ले, आसपास की सामाजिक विभित्सिका को ढूंढ़कर निकाल ले आती है अपने व्यंगालेख में घटनाक्रम को में ऐसे पिरो देती है, कि पाठक को भ्रम होने लगता है कि मैं पढ़ रहा हूँ या घटना को देख रहा हूँ l
नर्सिंग होम्स के मालिक भी वही होते हैं जिन्हें पेशेंट और वर्करों में फर्क मालूम नहीं होता l उन्हें बस शाम तक इस बात का हिसाब चाहिए कि कितने लोग आज हलाल किए गए l
लेखक द्वारा ऐसे शब्दों को चुन चुन कर लिखी गई उपरोक्त पंक्तियां लेखक के इंसानियत को होम करते यह नर्सिंग होम शीर्षक से लिखे गए व्यंग को गंभीर बना देती हैं l
सड़क के जाम में फंसी भीड़ अपने-अपने तरह से परिभाषा तय करती है l जाम का दर्द सभी को हो रहा है, लेकिन इस जाम को लगाने में उनकी जिम्मेदारी कितनी बड़ी हुई, इसे कोई भी देखने की जरूरत नहीं समझ रहा है l अलंकार के लेख “ट्रैफिक जाम में सारे काम तमाम ” कि ये पंक्तियां कि..
‘ एक मोटरसाइकिल वाले साहब जिन्होंने अपने पीछे की सीट पर अपने से चार गुना वजनी गट्ठर बाँध रखा था, वे सड़क पर हो रहे अतिक्रमण पर सर ठीक कर फोड़ रहे थे ‘
दल -पार्टी, नेता- मंत्री को बिना दायरे में लिए सामाजिक दायरा पूरा ही कहां होता है l सामाजिक समस्या के कारण और निदान दोनों की जिम्मेदारी उठाने वाले देश के इस महत्वपूर्ण तंत्र को नजरअंदाज कर किसी भी व्यंग्य कर का व्यंग्य संग्रह कभी भी संपूर्ण नहीं हुआ है l व्यंग्यकार अलंकार ने भी दल बदल या दिल बदल शीर्षक से व्यंग्य लेख लिखकर, अपने व्यंग्य संग्रह के इस भाव को पूर्ण किया है.
तभी तो उनकी कलम लिखने को मजबूर हो जाती है कि..
‘ प्रजातंत्र का मंत्र पढ़ते हुए नेता का दिल बड़ा ही संवेदनशील हो जाता है l उसके अंदर की समाज सेवा तभी बाहर निकाल पाती है, जब उसे किसी दल से टिकट मिले l’
कहानीकार अपने इर्द-गिर्द से कहानियों को उठना है l मॉरीशस में जन्मे सत्तहत्तर वर्षीय प्रवासी हिंदी साहित्यकार एवं पथरीला सोना जैसे सप्त खंडीय उपन्यास लिखने वाले उपन्यासकार श्री रामदेव धुरंधर तो ब्रह्मांड से ऊपर स्वर्ग से कहानी उतार लाते हैं l ऐसे ही व्यंग्यकार श्री अलंकर भी ब्रह्मांड से ऊपर की दुनियां को को छूते हुए प्रतीत होते हैं l
‘धरती लोग के सॉफ्टवेयर का सबसे बड़ा लोचा’ शीर्षक से छपे व्यंग लेख मैं आजकल की टेक्नोलॉजी देवताओं तक पहुंचाने का दुर्लभ कार्य भी अलंकार करते हुए प्रतीत होते हैं l इन्होंने अपने इस व्यंग्य लेख में इंद्र आदि देवताओं को प्रतीक के रूप में रखकर, सामाजिक सच्चाई पर सच्चा और चुटिला व्यंग लिखने का प्रयास किया है, जिसकी बानगी इनके व्यंग लेख कि निम्न पंक्तियों मे झलकती है..
‘ क्योंकि इंद्र देवता इक्कीसवीं सदी में भी में भी पुराने वर्जन में ही अपडेट थे l इसलिए नारद मुनि उनकी दो जीबी की मेमोरी को बत्तीस जीबी में कन्वर्ट करते हुए बोले ‘ महाराज यही तो समस्या है कि मेरी बात आप जैसे नेता तक को समझ में नहीं आ रही है वहां धरती लोक पर बाबाओ की बात को हर कोई समझें जा रहा है l “
देश में राजनीतिक हालात और हार -जीत पर जब कभी चर्चा होती है, तो सारे दल आपस में ईवीएम की चर्चा करना नहीं भूलते हैं l
व्यंग्यकार श्री अलंकार में भी अपने “निबंध के बंधन में ईवीएम” को ले लिया है l
” लेकिन जब से ईवीएम की गड़बड़ियां सामने आई है, लोगों को बहुमूल्य ऊर्जा मिल गई है l पहले हर चुनाव में हार के लिए एक अदद सर की तलाश की जाती थी जिस पर ठीकरा फोड़ा जा सके l”
श्री अलंकार में भी अपनी इन उपरोक्त पंक्तियों के माध्यम से सामजिक ईवीएम चर्चा को इस चर्चा में ले लिया है l
मेरी मुलाकात व्यंग्यकार श्री अलंकार रस्तोगी जी से पुस्तक मेले के दौरान हुई l ना मुझे पता था कि श्री अलंकर व्यंग्यकार है और ना ही श्री अलंकर यह जान रहे होंगे कि मैं एक कहानीकार, उपन्यासकार के साथ समीक्षक हूँ l लेकिन पुस्तक मेले ने हम दोनों को यह सुअवसर प्रदान किया l हालांकि यह बात भी यथार्थ पूर्ण है है कि मैं उम्रदराज होकर भी नवोदित साहित्यकार हूँ और युवा अलंकार युवा होकर भी एक गंभीर और परिपक्व साहित्य रच रहे हैं l
मेरी समीक्षक नजर जो लिखते लिखते इस समीक्षा मैं व्यंग को समावेशित कर रही है, को हम इस सतसंगत का ही प्रभाव कहेंगे l अब आप ही देखिए जब मैंने अपनी उपरोक्त पंक्तियों को लिखना प्रारंभ किया था,तब तक मैंने इस पूरे आलेख को नहीं बल्कि सिर्फ शीर्षक को पढ़ा था l लेकिन यहां तो व्यंगकार श्री अलंकार जी ने उन शब्दों को उठा कर पहले से ही इस लेख मे धर दिये हैं जिन शब्दों का प्रयोग मैंने ऊपर की पंक्तियों मे किया है l यह मेरे लिए बहुत ही गुदगुदाने जैसा लग रहा है l
” अपने इस लेख में व्यंग्यकार ने लिखा कि..
‘ नवोदित लेखक यह सोचता है कि वह इस बार के पुस्तक मेले में कौन-कौन सी किताब खरीदें, तो घाघत्व को प्राप्त कर चुके लेखक यह सोचते हैं कि उन्हें इस बार कितनी पुस्तक समीक्षा हेतु अर्पित होगी l ‘लेकिन यह संयोग देखिए कि इस घाघ को भी श्री अलंकार ने अपनी यह पुस्तक भेंट स्वरूप दे दी कि लीजिए साहब आप भी पढ़िएगा l
लेकिन इस घाध को भी युवा व्यंगकार को यह साबित करने का पूरा मौका मिल गया कि भाई यह बुजुर्ग नवोदित साहित्यकार भी समीक्षक है.. हा हा हा l
अब मैं “डंके की चोट पर कह सकता हूँ ” कि अब तक मैंने जो पंद्रह बीस पुस्तकों की समीक्षा लिखी है, उनमें से यह मेरी दूसरी व्यंग पुस्तक की समीक्षा हुई l और साथ ही साथ यह बहुत शुभ भी हुआ कि मैंने जो पहली व्यंग पुस्तक की समीक्षा लिखी थी वह देश के जाने-माने व्यंगकार और श्री अलंकार जी के गुरुवर श्री अनूप श्रीवास्तव जी की व्यंग पुस्तक अंतरआत्मा का जंतर मंतर थी l और वह वही पुस्तक थी, जिसका विमोचन कल डॉ0 अशोक चक्रधर जी ने किया l यानी इस पुस्तक समीक्षा, विमोचन पूर्व समीक्षा हुई l
युवा व्यंगकार श्री अलंकार रस्तोगी जी की यह व्यंग्य पुस्तक अपने व्यंग आलेखों के साथ व्यंग्य के शीर्ष को स्पर्श करती है l
‘प्रतिमाओं से स्थापित प्रतिमान’ बाबा रे बाबा, माया पेरेंट्स टीचर मीटिंग की, यमराज सोशल मीडिया और प्राण हरण और वे बेचारे बायोमैट्रिक अटेंडेंस के मारे.शीर्षक से छपे ये व्यंग आलेख पाठक के दिल को छूते हुए समाज की ढेर सारी विद्रुताओं से भरे कोनों में से व्यंग चुरा लेते हैं l
इस व्यंग्य संग्रह का अंतिम व्यंग्य लेख ” हिम्मत मत हार रे नेता’
नेताओं में हार के बाद भी संबल प्रदान करता है..
व्यंग आलेख कि ये पंक्तियां कि..
चुनाव हारा हूं हिम्मत नहीं, जन सेवा का मेरा जुनून जारी रहेगा, भरी दोपहरी दिन-रात नेताजी जी आपके साथ, व्यंग कार श्री अलंकार जी की व्यंग्य विधा पर गहरी पकड़ को दर्शाता है l
मेरे समीक्षक मन के मुताविक श्री अलंकर रस्तोगी कृत व्यंग्य संग्रह “डंके की चोट पर” व्यंग्य की उत्कृष्ट पुस्तकों में से एक होने का दावा करती है l
…….. राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”
कवि, लेखक, समीक्षक
प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर
व्यंगकार : श्री अलंकार रस्तोगी
मूल्य : ₹ 150/-



