आज के माहौल में जब देश के सैनिक अपनी छुट्टियाँ बीच में छोड़कर वापस अपने हेडक्वार्टर लौट रहे हैं, तब यह हम सब नागरिकों की नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि हम उनके प्रति सम्मान और सहयोग का भाव रखें।
ऐसे समय में सैनिकों की तात्कालिक आवश्यकता और समर्पण को समझना बेहद ज़रूरी है, क्योंकि वे अपनी व्यक्तिगत सुख-सुविधाओं को त्यागकर देश की सुरक्षा के लिए तत्पर होते हैं।आज देश के विभिन्न हिस्सों में यह देखा जा रहा है कि कई सैनिक बिना रिजर्वेशन के ट्रेन से सफर कर रहे हैं।
वे भीड़-भाड़ वाले जनरल डिब्बों में, कभी टॉयलेट के पास, कभी दरवाजों के पास खड़े होकर सफर करने को मजबूर हैं — और यह तब है जब वे अपनी जान हथेली पर लेकर सरहद की ओर जा रहे हैं। ऐसे में यदि आपके पास ट्रेन में रिजर्व सीट हो, और कोई सैनिक खड़ा दिखे, तो उससे बड़ा सम्मान और क्या हो सकता है कि आप उसे अपनी सीट देकर उसकी थकान को थोड़ा कम कर दें।
यह कोई एहसान नहीं, बल्कि कृतज्ञता की अभिव्यक्ति है। जब हमारे सैनिक दिन-रात सीमाओं पर खड़े होकर हमारे चैन की नींद की रखवाली करते हैं, तब हमारे छोटे-छोटे कृत्य उन्हें यह महसूस कराते हैं कि देश उन्हें सिर्फ आदेश के रूप में नहीं, बल्कि सम्मान के रूप में देखता है। यह सहयोग की भावना ही है जो एक राष्ट्र को सशक्त बनाती है।अगर सैनिक आपको सड़क पर जाते हुए दिखें और आप अपने निजी वाहन में हों, तो उन्हें उनके अगले मुकाम तक छोड़ना भी एक सराहनीय क़दम होगा।
यह सिर्फ एक सवारी नहीं, बल्कि एक संदेश है कि देश की जनता भी अपने सैनिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है। हो सकता है वे थके हों, जल्दबाज़ी में हों या किसी जरूरी कॉलिंग पर हों, ऐसे में आपका एक छोटा-सा सहयोग उनके लिए बहुत मायने रखता है।
हम अक्सर सोशल मीडिया पर “जय जवान” और “सलाम है फौजियों को” जैसे नारे लगाते हैं, लेकिन जब बात असल ज़िंदगी में आती है, तो वही शब्द तभी सार्थक होते हैं जब हम अपने व्यवहार में भी वही सम्मान दिखाएं।
सैनिकों को सिर्फ परेड या समारोहों में ही नहीं, बल्कि आम जीवन में भी विशेष सम्मान मिलना चाहिए।हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम न सिर्फ सैनिकों को आदर दें, बल्कि अपने आस-पास के लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करें। उन्हें बताएं कि सैनिक केवल वर्दी में नहीं, बल्कि हमारे दिलों में भी होने चाहिए।


