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उत्तराखण्ड़ गढ़वाल हिमालय में पांचवा धाम के रूप में प्रसिद्ध सेमनागराजा मन्दिर उत्तराखंड राज्य के टिहरी जिले के प्रतापनगर क्षेत्र की पट्टी उपली रमोली के सेम मुखेम में स्थित है |
इस मन्दिर का निर्माण उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के 52 गढ़ो में से एक मौल्यागढ़ (गढ़वाल क्षेत्र का एक गढ़ ) के राजा नागवंशी गंगू रमोला द्वारा किया गया | जो कि पूर्व जन्म में कालियानाग था | उस समय यहां गंगू रमोला का आधिपत्य था उसकी रानी मैणावती थी गंगू नि:सन्तान था उसके लाखों पशु थे जिसमें गाय भैंस बकरी थी उस समय सेममुखेम के सुन्दर वन में उसके पशु विचरण कर जंगल को नुकसान पंहुचाते थे तथा शान्त वन की शांति भंग होती थी उससे आछरियां यक्ष गन्धर्व सभी परेशान थे साथ ही जनता को कष्ट देने वाला शासक था वह काली माता का बहुत बड़ा उपासक था उसके तन्त्र मन्त्र के प्रभाव से आछरिया ( इनको गोपियों की आत्मा कहां जाता है जो कि अनेक क्षेत्रों में अनेक नाम से प्रसिद्ध है ) यक्ष गन्धर्व सब उससे भयभीत थे |
मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण उत्तराखण्ड़ में कालियानाग के उद्धार तथा शान्ति के लिए बद्रीधाम होते हुए सेम वन में पहुंचे भगवान श्री कृष्ण ने ब्राह्मण का वेश बनाकर गंगू रमोला से ढाई हाथ की जगह मांगी लेकिन गंगू रमोला ने स्थान देने के लिए मना कर दिया ब्राह्मण वेश धारी श्री कृष्ण कुपित होकर डांडा नागराजा सलाण क्षेत्र पौड़ी गढवाल चले गए वह क्षेत्र समृद्ध हो गया इधर गंगू रमोला के राज्य में अकाल पड़ गया गाय भैंस सब पत्थर में परिवर्तित हो गए प्रजा में पशुओं ने दूध देना बन्द कर दिया प्रजा को आभास हुआ कि यह सब उस ब्राह्मण के कोप के कारण हो रहा है सभी गंगू रमोला के पास जाकर उस ब्राह्मण को वापिस लाने के लिए निवेदन किया |
गंगू रमोला ब्राह्मण को ढूढते हुए सलाण क्षेत्र पौड़ी गढ़वाल (गढ़वाल )में डांडा नागराजा जाकर ब्राह्मण से क्षमा याचना कर अपने राज्य में चलने का अनुरोध किया लेकिन ब्राह्मण ने मना कर दिया बहुत अनुरोध करने पर ब्राह्मण तैयार हो गया और गंगू रमोला के साथ सेममुखेम आ गए गंगू रमोला द्वारा उनकी खूब सेवा की गई जिसके फलस्वरूप उनकी समृद्धि लौट गई और सब पहले जैसा हो गया हुआ |
गंगू द्वारा ब्राह्मण के लिए कमरे की जगह दी गई लोग वहां कमरा बनाने लगे लेकिन जगह कम पड़ गई लोग वहां एक बड़े पत्थर को तोड़ने लगे ब्राह्मण ने उस पत्थर को तोड़ने के लिए मना कर दिया लोगों द्वारा ब्राह्मण की सेवा की जाने लगी सभी लोग ब्राह्मण के लिए उस क्षेत्र में मक्खन दूध दही घी ले जाने लगे लेकिन ब्राह्मण कभी मिलता कभी नहीं लोग परेशान होकर ब्राह्मण से शिकायत की ब्राह्मण ने कहा मेरी अनुपस्थिति में यह जो शिला है जिसको तोड़ने के लिए मैने मना किया है उसका दूध , दही , घी , मक्खन का लेपन करें मैं प्रसन्न हो जाऊंगा |
ब्राह्मण लोगों के साथ एक मैदान में शतरंज खेलते थे जिसका नाम अब शतरंज सौड़ है वहां ब्राह्मण के लिए झूला भी लगाया गया वहां ब्राह्मण अपनी घोड़ी भी बांधता था | इसलिए वहां अभी भी एक पत्थर पर घोड़ी के पैरों के चिह्न है |
गंगू ने ब्राह्मण को गाय चराने का काम सौंपा था एक दिन गंगू द्वारा ब्राह्मण से निवेदन किया गया है वह सेम वन में रहने वाली हिडिम्बा राक्षसी का वध कर दें वह उसके पशुओं तथा पशुचारकों खा जाती है ब्राह्मण रूपी कृष्ण ने अपनी मधुर मुरली बजाई, राक्षसी दौड़ आई साधु को खाने के उद्देश्य से सुन्दर स्त्री रूप धारण कर वह साधु का सुन्दर रूप देखकर उसे खा जाने का भाव छोड़कर उसपे मुग्ध हो गई और साधु के साथ झूला खेलने की इच्छा प्रगट की ब्राह्मण वेश धारी श्री कृष्ण ने उसे झूला झुलाते हुए इतनी जोर से धक्का दिया कि झूला पेड़ सहित सेमपर्वत की तलहटी में जा गिरा और राक्षसी की मृत्यु हो गई |
ब्राह्मण के चमत्कार देखकर गंगू रमोला ने उन्हे अपना गुरु इष्ट देव तथ पालनहार मानते हुए उनके शरणागत हो गया | कुछ दिन बाद ब्राह्मण ने रमोला को सेमवन में अपने मन्दिर बनाने का आदेश दिया | रमोला और उनकी पत्नी मैणावती ने संकल्प लेकर वहां सात दिनों में वहां सुंदर और भव्य मन्दिर बनवाया, लेकिन जब वे प्राण प्रतिष्ठा करने को वहां पहुंचे तो मंदिर विलुप्त था | उन्होंने इसी प्रकार उसी स्थान पर एक – एक कर छह मन्दिर बनवाएं लेकिन सभी मन्दिर प्राण प्रतिष्ठा से पहले ही लुप्त हो जाते रमोला दम्पती ने पूर्व कर्मों का पाप समझकर अपने इष्ट ब्राह्मण वेश धारी नागराजा की कठिन तपस्या की | प्रसन्न होकर इष्ट देव ने कहा कि तुमने जो छह मन्दिर बनवाए , मैने उनको गुप्त निवास हेतु कलिकाल में अपने गुप्त निवास हेतु इसी सेम वन में विभिन्न स्थानों पर अदृश्य रूप से स्थापित कर दिया है |
तुम्हें सेम पर्वत शिखर पर के पास दो वृक्षों के मध्य एक शिला पर नाग जोड़े के दर्शन होंगे , उसी शिला के चारों ओर अब मन्दिर बनवाओ | यह मन्दिर प्रकटा सेम मंदिर के नाम से विख्यात होगा तथा कलियुग में इस मन्दिर के गर्भ गृह में स्थित यह शालिग्राम शिला भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करने वाली होगी , जिससे इस तीर्थ की कीर्ति युगों तक अटल रहेगी तथा यहां मैं सेमनागराजा नाम से जाना जाऊंगा तथा द्वारिका के लुप्त होते ही मेरी निवास स्थली उत्तर द्वारिका होगी प्रगटा सेम होगी | इसका पालन करते हुए गंगू रमोला ने उक्त स्थान पर मंदिर निर्माण करवाया | यहां प्रथम पूजन के अवसर पर गंगू रमोला दम्पती न प्रजाजनों को नागराजा ने दर्शन दिए |
अंत समय ब्राह्मण इसी क्षेत्र में एकांतवास के लिए डुण्डा रौ चले गये थे कुछ दिन बाद ब्राह्मण वहां दिखना बंद हो गया इसलिए वहां का नाम गुप्त सेम पड़ा जहां 12 बजे रात्रि ढोल और शंख की ध्वनि सुनाई देती थी
नि:सन्तान गंगू रमोला दम्पती ने मन्दिर में भगवान की पूजा करते समय संतान की कामना की एक दिन गंगू की पत्नी मैणावती ने दो पुत्रों को जन्म दिया जिनका नाम सांड व कंडार रखा गया ।
दोनों आठ वर्ष के हुए तो उन्होंने अपने पिता गंगू रमोला से पूछा आप प्रतिदिन किसकी पूजा करते हो गंगू ने पूरी बात उन्हें बताई | गंगू ने बालकों को बताया कि तुम दोनो भी भगवान नागराजा की कृपा से ही जन्मे हो | एक दिन दोनों बालकों ने भगवान की परीक्षा लेने मन्दिर प्रागड़ में गए और उन्हें युद्ध के लिए ललकारा दंडस्वरूप भगवान ने उन्हे मूर्च्छित कर दिया गंगू को अपशकुन हुआ | वह पत्नी के साथ मंदिर गया और भगवान से क्षमा मांगी | नागराजा ने बालकों को ठीक कर दिया | बालको के मन में श्रद्धा उत्पन्न हुई और उन्होनें भी भगवान से क्षमा मांगी | बाद में ये दोनों सिदुवा और बिदुवा के नाम से जाने गए और गंगू की मृत्यु के पश्चात इन्होंने इस मंदिर का पुनरुद्धार किया मंदिर के दूसरे भाग में इन्होंने गंगू की मूर्ती स्थापित की |
जहां आज सिदुवा का पानी है वहां पहले पानी नहीं था सिदुवा ने वहां पर कठिन तपस्या की जिसके फलस्वरूप वहां पर पानी निकला जिससे आज भी सिदुवा का पानी कहते है | आज भी मान्यता है कि सलाण एवं गढ़वाल क्षेत्र का कोई कुष्ठ रोगी सिदुवा पानी में तीन बार स्नान करे तो उसका कुष्ठ रोग दूर हो जाता है |
भगवान सेमनागराजा सौम्य देवता है जल्द प्रसन्न होने वाले मनोकामना पूर्ण करने वाले हैं | जो भी भक्त जन यहां श्रद्धा पूर्वक आता है उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है | यहां प्राकृतिक सौन्दर्य एकांत एवं आध्यात्मिक स्थान है जहां मनुष्य को शांति का अनुभव होता है अनेको प्रकार की औषधि युक्त यह रमणीक स्थान है |
जिसकी कुण्डली में कालसर्प योग है यहां नाग नागिन ज्ञका जोड़ी चढाने से कालसर्पयोग दूर होता है |
एक बार सच्चे मन से भगवान सेमनागराजा के दर्शन करने जरूर आए |
🕉️जय सेमनागराजा👏🏻
( साभार सोशियल मिडिया)


