आज यानी 15 अक्तूबर से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। पंचांग के अनुसार आश्विन माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शारदीय नवरात्रि का पर्व प्रारंभ हो जाता है, जो इसी माह की नवमी तिथि को समाप्त होता है। नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों को समर्पित है। पहले दिन कलश स्थापना की जाती है और मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री हिमालय राज की पुत्री हैं। पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने कारण ये देवी शैलपुत्री नाम से विख्यात हुईं। ऐसे में चलिए जानते हैं नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा विधि, मंत्र और कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त…
कलश स्थापना और मां शैलपुत्री की पूजा का शुभ मुहूर्त
प्रतिपदा तिथि के दिन घट स्थापना यानी कलश स्थापना हमेशा अभिजीत मुहूर्त में ही करना चाहिए। आज अभिजीत मुहूर्त प्रातः 11:38 मिनट से दोपहर 12:23 मिनट तक है। इस मुहूर्त में घट स्थापना कर सकते हैं। साथ ही इसी मुहूर्त में आप मां शैलपुत्री की पूजा भी कर सकते हैं।
कलश स्थापना विधि
शारदीय नवरात्रि के पहले दिन सुबह उठकर स्नान आदि करके साफ वस्त्र पहनें।
फिर मंदिर की साफ-सफाई करके गंगाजल छिड़कें।
इसके बाद लाल कपड़ा बिछाकर उस पर थोड़े चावल रखें।
मिट्टी के एक पात्र में जौ बो दें।साथ ही इस पात्र पर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें।
कलश में चारों ओर आम या अशोक के पत्ते लगाएं और स्वास्तिक बनाएं।
फिर इसमे साबुत सुपारी, सिक्का और अक्षत डालें।
एक नारियल पर चुनरी लपेटकर कलावा से बांधें और इस नारियल को कलश के ऊपर पर रखते हुए मां जगदंबे का आह्वान करें।
फिर दीप जलाकर कलश की पूजा करें।
मां शैलपुत्री पूजा विधि
कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री को धूप, दीप दिखाकर अक्षत, सफेद फूल, सिंदूर, फल चढ़ाएं।
मां के मंत्र का उच्चारण करें और कथा पढ़ें। भोग में आप जो भी दूध, घी से बनी चीजें लाएं हैं वो चढ़ाएं।
फिर हाथ जोड़कर मां की आरती उतारें।
आखिर में अनजाने में हुई गलतियों की माफी मांगे और हमेशा आशीर्वाद बनाए रखने की माता रानी से प्रार्थना करें।
मां शैलपुत्री को लगाएं ये भोग
धार्मिक मान्यता है कि मां शैलपुत्री को शैल के समान यानी सफेद वस्तुएं प्रिय हैं। इसलिए मां को सफेद वस्त्रों के साथ भोग में भी सफेद मिष्ठान और घी अर्पित किए जाते हैं। साथ ही इस दिन सफेद वस्त्र भी धारण करें।
मां शैलपुत्री का स्वरूप
देवी शैलपुत्री वृषभ पर सवार होती हैं। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प होता है। शास्त्रों के अनुसार मां शैलपुत्री चंद्रमा को दर्शाती हैं। कहा जाता है कि माता रानी के शैलपुत्री स्वरूप की उपासना से चंद्रमा के बुरे प्रभाव निष्क्रिय हो जाते हैं। इनकी पूजा करने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही कुंवारी कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है।
मां शैलपुत्री की आरती
जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा मूर्ति .तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ।
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को .उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ।
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै.रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ।
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी .सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ।
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती .कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ।
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती .धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ।
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू.बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ।