( स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी व पंडित रूद्र दत्त भट्ट)
महात्मा गांधी के वर्ष 1929 में ताड़ीखेत से अल्मोड़ा आते समय मेरे पूज्य दादाजी भी उनके सहयात्री कुमाऊं के अग्रणी नेताओं के साथ थे। बापू की अल्मोड़ा लक्ष्मेश्वर की जनसभा में कुमाऊं केसरी श्री बद्रीदत्त पांडेय, श्री विक्टर मोहन जोशी, श्री हरगोविंद पंत इत्यादि के साथ ही श्री रुद्रदत्त जी भी मंचासीन थे।
महात्मा गांधी के अल्मोड़ा एवम कौसानी प्रवास के दौरान श्री रुद्रदत्त भट्ट जी का प्रवास के प्रबन्धन व विभिन्न कार्यक्रमों की व्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान था। पूज्य बापूजी को जो सोलह हजार रुपए की दानराशि जन-कार्यक्रमों में प्राप्त हुई थी उसे संभालकर ट्रेजरार श्री जमनालाल बज़ाज़ तक पहुचने का उत्तरदायित्व भी बापू ने श्री भट्ट जी को ही सौंपा था। वर्ष 1930 में अल्मोड़ा में झंडा सत्याग्रह के समय लाठीचार्ज के विरोध में लाला चिरंजीलाल के साथ ही आपने भी म्यूनिसपिल बोर्ड की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया।
वर्ष 1920 के अकाल तथा वर्ष 1936 के दानपुर के अकाल की समय साथियों के साथ मिलकर अन्नकष्ट निवारिणी समिति गठित की थी जिसके माध्यम से दूरस्थ व सुविधाहीन पर्वतीय क्षेत्रों तक युवाओं ने सहायता व सेवा की।
वे अल्मोड़ा जेल के विजिटर भी थे तथा जेल में बंद स्वाधीनता सेनानियों के साथ ही उनके परिजनों की भी यथासंभव सहायता करते थे। पंडित नेहरू जब वर्ष 1935 में अल्मोड़ा जेल में बंद थे तो उस दौरान उनकी माता एवम बहन ने भी श्री भट्ट जी से पत्राचार किया था। इनकी निःस्वार्थ समर्पित जनसेवा से प्रभावित होकर पण्डित गोविंद बल्लभ पंत जी ने इन्हें अल्मोड़ा ग्राम सुधार विभाग का वर्ष 1939 में चेयरमैन नियुक्त किया था जिसमे तत्कालीन एस0डी0ओ0बारामंडल कैप्टन निबलेट उनके सेकेट्री बनाए गए।
वर्ष 1942 में स्वाधीनता आंदोलन में इनकी सक्रियता से क्रुद्ध होकर ब्रिटिश प्रशासन ने पहले तो इनके घर पर खुफिया तंत्र को निगरानी हेतु सक्रिय रखा, फिर हाथ न आने पर इनके ज्येष्ठ पुत्र को भारत छोड़ो आंदोलन हेतु गिरफ्तार कर तीन माह को जेल भेज दिया था। स्वतंत्रता के बाद श्री भट्ट एक प्रखर पत्रकार एवम सर्व सुलभ गणमान्य व्यक्तित्व के रूप में समाज में आजीवन सक्रिय रहे।
( यह आलेख हमें पंडित रूद्र दत्त भट्ट के पौत्र प्रोफेसर दिनेश भट्ट जो विधि संकाय सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अलमोडा़ में है, से प्राप्त हुआ, साभार)