( उत्तराखंड राज्यपाल ने बतौर मुख्य अतिथि अपने विचार व्यक्त किए)

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मुख्यालय मध्य कमान द्वारा “भारत की सुरक्षा परिदृश्य में उभरती चुनौतियाँ” विषय पर सुरक्षा सेमिनार 2025 का आयोजन किया गया। इस अवसर पर देश के वरिष्ठ सैन्य अधिकारी, राजनयिक, सुरक्षा विशेषज्ञ एवं विद्वान शामिल हुए। सेमिनार का उद्देश्य भारत की बदलती सुरक्षा चुनौतियों और उनसे निपटने के समग्र दृष्टिकोण पर विचार-विमर्श करना था।
कार्यक्रम की शुरुआत लेफ्टिनेंट जनरल अनिंद्य सेनगुप्ता, जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ, मध्य कमान के उद्घाटन भाषण से हुई। उन्होंने वर्तमान क्षेत्रीय और वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य की जटिलताओं को समझने के लिए ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया।


उत्तराखंड के माननीय राज्यपाल, लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने संगोष्ठी के मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित किया। उन्होंने भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने हेतु पाँच आधार स्तंभों की चर्चा की—सैन्य तैयारी, राजनयिक कुशलता, आर्थिक स्थायित्व, प्रभावी नैरेटिव निर्माण, और एशियाई संदर्भ में सभ्यतागत साझेदारी का पुनरुद्धार।संगोष्ठी में कई विचारोत्तेजक सत्र और पैनल चर्चाएँ आयोजित की गईं। राजदूत सुजन आर. चिनॉय, प्रोफेसर (डॉ.) शशि बाला, डॉ. प्रांशु समदर्शी और श्री क्लॉड अर्पी ने भारत के उत्तरी क्षेत्रों में सांस्कृतिक एवं सभ्यतागत संबंधों पर प्रकाश डाला। अन्य सत्रों में लेफ्टिनेंट जनरल राज शुक्ला (सेनि), मेजर जनरल अभिनय राय, राजदूत विजय गोखले और लेफ्टिनेंट जनरल एस.एल. नरसिम्हन (सेनि) ने हाइब्रिड खतरों एवं समन्वित शत्रुतापूर्ण रणनीतियों पर विचार प्रस्तुत किए। इसी तरह, लेफ्टिनेंट जनरल डी.एस. हूडा (सेनि), मेजर जनरल हर्षा काकर (सेनि), श्री जयदेव रानाडे और श्री आलोक जोशी ने ग्रे-ज़ोन संघर्षों और सब-कनवेंशनल ऑपरेशनों की जटिलताओं पर चर्चा की।कार्यक्रम का समापन लेफ्टिनेंट जनरल नवीन सचदेवा, चीफ ऑफ स्टाफ, मध्य कमान के धन्यवाद ज्ञापन एवं समापन भाषण से हुआ। उन्होंने सभी वक्ताओं एवं प्रतिभागियों के विचारशील योगदान की सराहना करते हुए कहा कि भारत की सुरक्षा व्यवस्था को सदा सतर्क, जागरूक और तत्पर रहना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि आज की जटिल सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए रणनीतिक सोच, सांस्कृतिक समझ और परिचालन क्षमता अत्यंत आवश्यक हैं।

सेमिनार का निष्कर्ष इस सर्वसम्मति के साथ हुआ कि भारत की सुरक्षा रणनीति को तैयारियों, लचीलापन और क्षेत्रीय सहयोग पर आधारित होना चाहिए, जिसे नीति-निर्माताओं, सैन्य नेतृत्व, विशेषज्ञों और नागरिक समाज की सामूहिक प्रतिबद्धता से सशक्त किया जा सके—ताकि राष्ट्र की संप्रभुता और रणनीतिक हितों की प्रभावी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

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