लोकतंत्र का चौथा स्तंभ एक बार फिर सवालों के घेरे में है स्थानीय भ्रष्टाचार और व्यवस्था की खामियों पर अपनी कलम और कैमरे से लगातार प्रहार करने वाले 36 वर्षीय स्वतंत्र पत्रकार राजीव प्रताप सिंह की मौत ने पूरे उत्तराखंड को चकोर कर रख दिया है 10 दिनों तक लापता रहने के बाद रविवार को उनका शव जोशीमठ बैराज से बरामद किया गया इसके बाद से यह सवाल और गहरा हो गया है की क्या यह एक दुर्घटना मान दुर्घटना थी या सच बोलने की कीमत जान देकर चुकाने का एक और क्रूर उदाहरण।

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घटनाक्रम: यह मामला 18 सितंबर की रात को शुरू हुआ जब राजीव प्रताप सिंह अचानक लापता हो गए अगले दिन उनकी कर भागीरथी नदी के किनारे लावारिस हालत में मिली लेकिन राजीव का कोई पता नहीं चला परिवार ने तुरंत अपहरण की आशंका जताते हुए गुमशुदा की रिपोर्ट दर्ज कराई इस गुमशुदी की पृष्ठभूमि में राजीव की हालिया पत्रकारिता थी। अपनी मृत्यु से कुछ दिन पहले उन्होंने अपने डिजिटल चैनल दिल्ली उत्तराखंड लाइव पर उत्तरकाशी के सरकारी अस्पताल की बदहाली पर एक वीडियो रिपोर्ट जारी की थी 7 मिनट के इस वीडियो में उन्होंने आरोप लगाया था कि पाताल के कर्मचारी शराब का सेवन करते हैं जिससे मरीज के जीवन के साथ अन्याय हो रहा है उन्होंने अस्पताल की गंदगी दीवारों और दवाइयां की कमी जैसे मुद्दों को भी निर्भीकता से उजागर किया था परिवार का आरोप है कि यह वीडियो वायरल होने के बाद से ही राजीव को लगातार धमकी भरे फोन आ रहे थे उनकी पत्नी ने बताया कि अपनी आखिरी बातचीत में राजीव ने कहा था अस्पताल और स्कूल पर रिपोर्ट डालने के बाद मुझे डर लग रहा है क्योंकि वीडियो हटाने के लिए धमकी भरे फोन आ रहे हैं


परिवार का आरोप… 10 दिनों की गहन तलाशी के बाद 28 सितंबर को राजीव का सब बैराज से बरामद हुआ इस मामले में उत्तरकाशी की पुलिस अधीक्षक सरिता डोभाल ने प्रारंभिक तौर पर इसे एक दुर्घटना बताएं है हालांकि परिवार और पत्रकार समुदाय पुलिस के सव को करने को तैयार नहीं है परिवार का जन्म विश्वास है कि यह कोई हादसा नहीं बल्कि उनकी निडर पत्रकारिता के कारण की गई एक सुनियोजित हत्या है।

एक नागरिक का सवाल: क्या सच बोलना इतना बड़ा अपराध है?
राजीव प्रताप सिंह की मौत ने समाज और सरकार के बीच के रिश्ते पर एक गंभीर बहस छेड़ दी है यह घटना इस कड़वे सच को उजागर करती है कि जब आम नागरिक व्यवस्था की खामियों पर सवाल उठाते हैं या अपने विचारों को सरकार तक पहुंचने की कोशिश करते हैं तो अक्सर उनकी आवाज को दबा दिया जाता है सवाल यह होता है कि क्या हम एक लोकतांत्रिक सरकार का चुनाव इसलिए करते हैं कि जरूरत पड़ने पर हमारी ही आवाज को नजरअंदाज कर दिया जाए? सवाल करना हमारा संवैधानिक अधिकार है और उन सवालों का जवाब देना सरकार की जिम्मेदारी है यदि सरकार जनता के प्रति कोई रुचि नहीं दिखाएंगे और उनकी समस्याओं का समाधान नहीं करेगी तो वह केवल नाम मात्र की संस्था बनकर रह जाएगी राजीव प्रताप सिंह जैसी घटनाएं समाज को भीतर से खोखला कर रही है और लोकतंत्र में जनता के विश्वास को कमजोर करती है।
भारतीय जनसंचार संस्थान के छात्र रहे राजीव अपने फेसबुक पेज के माध्यम से स्थानीय मुद्दों को लगातार उठते थे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस घटना पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए मामले की गहन और निष्पक्ष जांच के आदेश दिए हैं अब सभी की निगाहें पोस्टमार्टम रिपोर्ट और पुलिस की जांच के आगे टिकी है इसे यह साफ साफ हो सके की राजीव की मौत एक हादसा थी या सच को खामोश करने की एक सोची समझी साजिश।

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