राज्य आंदोलनकारियों ने मुख्यमंत्री उत्तराखंड को पत्र लिखकर लीसा गड़ान पद्वति बदलने की मांग की। पत्र में कहा गया है कि उत्तराखंड में लीसा गड़ान की खुरचन (चीरा ) पद्वति चल रही है उसमें चीरे में एसिड लगाकर बार बार घाव साफ किया जाता है जिससे चीड़ के पेड़ जल्दी खराब हो रहे हैं इसके साथ ही पेड़ में चीरे पेड़ की आधी गोलाई तथा काफी ऊंचाई तक लगाये जाते हैं जिससे दो तीन वर्ष में ही पेड़ के तने के काफी बड़े भाग में लीसा फैल जाता है।
तने से रिसता हुआ लीसा पेड़ की जड़ों तथा आस पास जमीन में भी फैल जाता है जिससे जब भी जंगलों में आग लगती है पेड़ों के साथ साथ जड़ें तथा आस पास की मिट्टी भी जल जाती है पर्वतीय जैव विविधता के लिए यह लीसा गड़ान पद्वति काफी नुकसानदेह सिद्ध हो रही है इसलिए उत्तराखंड में लीसा गड़ान हेतु छिद्र ( होल) पद्वति शुरू की जाय जिसमें चीड़ के तने में एक छेद किया जाता है जिससे एक पाईप लगाकर लीसा एक बैलूनाकार थैली में एकत्र किया जाता है इस पद्धति से लीसा पेड़ के तने और जमीन पर नहीं फैलता पत्र में उत्तराखंड में भी लीसा दोहन हेतु छिद्र पद्धति को चलाने की मांग की गयी है ।पत्र में ब्रह्मानन्द डालाकोटी,सदस्य जिला पंचायत शिवराज बनौला,दौलत सिंह बगड्वाल के हस्ताक्षर हैं