(एक ‘पिता’की कहानी ‘बेटी’ की जुबानी —-” स्मृति अवशेष “)स्व.श्री एस.बी.राणा मेरे पूज्य पिताजी एक ऐसे सिद्धांतवादी व्यक्तित्व जो जीवन भर जिस आन बान और शान से अपनी शर्तों पर जिए उसी शान पद प्रतिष्ठा के साथ उन्होंने देह त्याग भी किया, मानो इच्छा मृत्यु प्राप्त हुई हो. कहा करते थे “भगवान मुझे यूं ही चलते फिरते उठा ले,बिना किसी की सेवा लिए,किसी को कष्ट दिये,बिस्तर पड़कर बुढ़ापे में दुर्गति न हो मेरी ” ईश्वर ने मन इच्छा पूरी करते हुए कुर्सी में बैठे बैठे ही बड़ी शांति और सुकून से उठा लिया संभवतः जिसका स्वयं उन्हें भी आभास न हुआ होगा.
06 जनवरी 1928 को जन्मे पिताजी 96 वर्षों के दीर्घ जीवन की यात्रा पूरी कर 03 दिसंबर 2023 की सायं लगभग 2:30 बजे महाप्रयाण को चले गए. उनके निष्प्राण देह सम्मुख और 12 दिनों के क्रिया कर्म के दौरान शोक संवेदना व्यक्त करने पहुंचे परिचितों सम्बन्धियों द्वारा उनके सम्पूर्ण जीवन मूल्यों,व्यक्तित्व कृतित्व पर चर्चा,मंतव्य जानकर यथा-‘महान’,’कर्मठ’,’अदभुत’ ,’विलक्षण’, ‘ग्रेट मैन’, ‘सुपर पर्सनलिटी’,’एक पूरा युग समाप्त हुआ’, ‘अब ऐसे व्यक्ति कहाँ मिलते हैं’ जैसे अन्य अनेक विशेषण सुनकर अपार दुःख की घड़ी में भी गर्व का अनुभव होता रहा. पिताजी ने प्रारम्भिक शिक्षा रानीखेत(मिशन)इंटर कालेज रानीखेत,माध्यमिक शिक्षा राजकीय इंटर कालेज अल्मोड़ा तथा उच्च शिक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ से प्राप्त की थी,फुटबाल के बेहतरीन खिलाड़ी रहे,तत्पश्चात पुलिस विभाग को अपना सेवा क्षेत्र चुना और एक सख्त,तेज तर्रार, ईमानदार व अनुशासित पुलिस अधिकारी के रूप में स्थापित हुए.उच्चाधिकारियों से नीतिगत व वैचारिक मतभेदों के चलते अपना त्यागपत्र जेब में रखकर चलते थे.अपने कार्य क्षेत्र में एस.ओ.बरेली,पुलिस उपाधीक्षक नैनीताल,एरिया ऑर्गनाइज़र (एस.एस.बी.)पिथौरागढ़ उ. प्र.में कार्यरत रहे.चिकित्सीय आधार पर पुलिस विभाग बिजनौर उ.प्र.से स्वैच्छिक सेवानिवृति ले अल्मोड़ा मैग्नेसाइट लिमिटेड अल्मोड़ा में सुरक्षा अधिकारी रहे,वहां से सेवानिवृत हो बियरशिबा सीनियर सेकण्डरी स्कूल अल्मोड़ा में प्रशासक एवं संस्थापक सदस्य रहे,जहाँ से 91वर्ष की आयु में सेवात्याग किया.पिताजी का प्रत्येक सेवा का कार्यकाल उनके सिस्टम,प्रबंधन व निर्भीक अनुशासन के लिए जाना जाता था.इसके अतिरिक्त पिताजी अद्यतन वरिष्ठ कट्टर कांग्रेसी,सामाजिक कार्यकर्ता एवं पुलिस अधिकारी एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष सहित अन्य अनेक संस्थाओं के पदाधिकारी भी रहे.
दीर्घायु तक पिताजी शारीरिक रूप से स्वस्थ,सक्रिय,ऊर्जावान व प्रबल इच्छाशक्ति से भरे रहे.नियमित व्यायाम,नियंत्रित खानपान था,विगत 40 वर्षों से एक समय भोजन (अल्पाहार) करते थे.पर्व त्योहारों पर खाना खिलाने का शौक,समाज में प्रत्येक आमंत्रण पर इस आयु में भी अनिवार्यतः सम्मिलित होना,दयालुता,निर्धन जरूरतमंदों की आर्थिक सहायता करना,विशेष रूप से बेटियों के विवाह अवसरों पर अधिक व्यक्तिगत सहयोग करना,गरीबों को रोजगार दिलाना,चिकित्सालय में असहाय रोगियों को आवश्यक सामग्री प्रदान करना,आध्यात्मिक सोच /धार्मिक आस्था के चलते प्रातः सायं ध्यान व मंदिरों को नियमित सहयोग (जिनमें कर्बला के पास कलिका मंदिर,कैंची धाम, चितई,गैराड़,गरम पानी के पास देवी मंदिर,सलड़ी के पास चंदा देवी प्रमुख थे)आदि सामाजिक रूप से उनके व्यक्तित्व को कर्मयोगी सी महानता व विशिष्टता प्रदान करते थे. ‘नीम करौली बाबा जी’ पर अटूट श्रद्धा थी बाबाजी की फोटो सदैव उनकी ऊपरी बाईं जेब में रहती थी,कैंची धाम जाते रहते थे और बाबाजी की भी उन पर विशेष कृपा थी.यहाँ पर दो सत्य घटनाओं का उल्लेख प्रासंगिक होगा,* पहली घटना- पिताजी बताते थे ‘नैनीताल में पुलिस विभाग में सेवा के दिनों की बात थी,कुछ अधिकारी मित्र बाबाजी को मानते व कैंची धाम जाया करते थे,मुझे भी चलने को कहते मैं टाल देता,एक दिन जबरन जाना हुआ अविश्वास के चलते रास्ते में बातचीत के बीच मैंने कहा अरे! ढोंगी और अपराधी किस्म के बाबा तो नहीं हैं,वहां पहुँच मुझे देखते ही नीमकरौली बाबा मुस्कुराकर बिना परिचय प्राप्त किये ही बोले ‘क्यों रे डी.एस.पी तू तो मुझे जेल भिजवाने वाला है तुझे अपराधी लगता हूँ बोल ?’ मैं चौंक गया इन्हें कैसे पता चला कि मैंने क्या कहा फिर बाबाजी की दिव्य शक्ति सम्मुख नतमस्तक हो उनसे क्षमा मांगी’*दूसरी घटना-‘स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद मैं परेशान भी था, कुछ समय मिला तो मैं अपने मित्रों के साथ कुल्लू मनाली घूमने चला गया, वहीँ से कहीं और का प्रोग्राम भी था, वापसी पर कैंची मंदिर बाबाजी के दर्शन को गए,बाबाजी को प्रणाम किया,उन्होंने सिर पर हाथ रखा बोले ‘परेशान क्यों होता है,कहाँ घूम रहा है तू अब कहीं मत जाना,सीधे घर जा तेरा कॉल लेटर आया है वहां जल्दी ज्वाइन करना है’ उन दिनों फोन जैसी व्यवस्था नहीं थी,घर पहुंचकर देखा तो अल्मोड़ा मैग्नेसाइट लिमिटेड का सिक्युरिटी ऑफिसर पद के लिए नियुक्ति पत्र आया था,घर वाले परेशान थे कैसे संदेश पहुंचाएं जल्दी ज्वाइनिंग देनी है’ पिताजी के सिर पर नीमकरौली बाबा ने अपना हाथ रख जो आशीर्वाद दिया था वो कृपा उन पर जीवनपर्यन्त रही. लगभग 82 वर्ष की आयु तक पिताजी ने मोटर साईकिल चलाकर तथा 92वर्ष की आयु तक कार ड्राइविंग कर सभी को आश्चर्यचकित किया था.ट्रैफ़िक वाले अक्सर उन्हें रोककर कहा करते ‘ सर अब इस उम्र में ड्राइविंग न किया करें ‘पिताजी परिहास करते हुए कहते ‘मेरे पास आजीवन लाइसेंस है जब तक चला पाऊंगा चलाऊंगा ‘1960 के दशक में जब सामान्यतः बहुत कम लोगों के पास व्यक्तिगत वाहन हुआ करते थे पिताजी के पास तभी से व्यक्तिगत बुलेट मोटरसाइकिल व एम्बेसेडर कार थी,जो उनके सशक्त व समृद्ध होने का प्रमाण थी,घुड़सवारी व शिकार खेलने का युवावस्था से शौक व उनकी पारिवारिक परंपरा भी रही थी.आयु का खास प्रभाव उनपर कहीं दिखाई न देता,पिताजी सदैव एक जिंदादिल,कर्मठ व सकारात्मक सोच वाले इंसान रहे जिसने उन्हें ‘अदभुत’ व्यक्तित्व के विशेषण से अलंकृत किया.
बेटियों से पिताजी को विशेष अनुराग था,अपनी बेटियों पर गर्व करते थे,एक पारिवारिक घटना का उल्लेख करना समीचीन होगा.अपनी माँ (दादी) के बहुत आज्ञाकारी थे किंतु तीन बेटियों के जन्म हो जाने पर जब संकुचित और वंश के उत्तराधिकारी पुत्र की लालसा की पुरानी सोच के चलते दादी ने पिताजी का दूसरा विवाह करने का हठ किया तो उन्होंने अनेक तर्क वितर्क कर उसका सख्त विरोध किया.बेटियों को सदैव आगे बढ़ने का प्रोत्साहन और सभी को शिक्षित,सुसंस्कारित व आत्मनिर्भर बनाने हेतु प्रेरित किया.मेरी माँ घुटने प्रत्यारोपण का आपरेशन असफल हो जाने के कारण कई वर्षों से व्हील चेयर पर थीं,पिताजी ने माँ की बहुत सेवा की और भगवान से याचना करते रहते थे ‘ बस मेरी इच्छा यही है कि इसे (पत्नी)को मुझसे पहले उठा ले ताकि मैं निश्चिन्त होकर मर सकूं ‘ईश्वर ने पिताजी की यह इच्छा भी पूरी की माँ 25 जनवरी ’23 को गईं उसके बाद पिताजी भी जल्दी ही 03 दिसंबर ’23 को चले गए.
पुलिस अधिकारी नैनीताल के अपने कार्यकाल में फिल्मों की शूटिंग के मध्य सम्पूर्ण सुरक्षा एवं अन्य प्रशासनिक व्यवस्थाओं के दायित्व का सफल निर्वहन करते हुए पिताजी ने सुप्रसिद्ध सिने कलाकारों – सुनीलदत्त, प्राण,जॉनीवाकर,वहीदा रहमान,माला सिन्हा,नाज़,आदि का मैत्रीपूर्ण सानिध्य प्राप्त किया,अभिनेता प्राण से उनकी मित्रता बहुत लम्बे समय तक चली.पुलिस प्रशासन के प्रशिक्षण के मध्य मुंबई में एक सूचना पर प्राण जी ने पिताजी व उनके मित्रों को तीन दिनों तक पूरी मुंबई व आसपास के दर्शनीय स्थल घुमाने,ठहरने की व्यवस्था की, घर पर भोजन हेतु आमंत्रित भी किया था.कहते थे ‘प्राण का फिल्मों में विलेन का रोल रहता था लेकिन व्यक्तिगत जीवन में वो बहुत अच्छा इंसान था” उस समय की बातों की वे अक्सर और बड़े ही उत्साह,रुचि व प्रसन्नता से चर्चा किया करते थे।
पिताजी 15 अगस्त 1947को देश की आज़ादी के साक्षी रहे,उस दिन के हर्षोल्लास का सजीव वर्णन कर बहुतसी बातों के बीच यह बताना नहीं भूलते थे कि कैसे उस दिन स्थानीय हरे कृष्णा हलवाई की दुकान में इतनी मिठाई बनी और बाँटी गई कि सारा दिन अल्मोड़ा शहरवासी मिठाई खाते और नाच गाकर खुशियाँ मनाते रहे.
पिताजी की जीवटता,फिटनेस देख उनके चिकित्सक भी हैरत में और खुश रहते थे,हल्द्वानी में डॉ नीलाम्बर भट्ट व डॉ कुनियाल और अल्मोड़ा में डॉ जी.सी.पांडे व डॉ ए.पी.पांडे पर उनकी निष्ठा व अटूट विश्वास था.ये उनकी स्वभावगत विशेषता थी कि जिसे मानते थे उसके प्रति तन मन धन से समर्पित व आस्था रखते थे,गलत बात पर क्रोधित भी हो जाते और जो मन मस्तिष्क से उतर जाता उसे कभी नहीं स्वीकारते,चाहे वो व्यक्ति विशेष हो,सेवा क्षेत्र हो, व्यवसायिक प्रतिष्ठान या फिर अपना परिवारजन ही क्यों न हो.
03 दिसंबर 2023 प्रातः 6बजे उठकर स्नान ध्यान कर,धुले वस्त्र पहन,नाश्ता कर,कुछ घंटे धूप का आनंद ले बरामदे में अख़बार पढ़ते हुए कुर्सी में बैठे बैठे ही पिताजी ने प्राण त्याग दिये,लगता था मानो स्वेच्छा से समाधि ले ली हो. पिताजी के निधन पर समाचार पत्रों,इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया में शोक संदेशों के साथ उनके सख्त प्रशासन व अनुशासन से जुड़ी छात्र छात्राओं /जनमानस द्वारा जो सुंदर प्रतिक्रियाएं आईं उन्होंने सभी परिवारजनों को भावविह्वल व अभिभूत किया, यही तो महानता है शायद कि जाने के बाद दुनिया व समाज उस व्यक्ति को किस रूप में और कितना याद करता है.जीवन में पिताजी के अपने कुछ आदर्श व विशेष आचार संहिताएं थीं जिनका उन्होंने सदैव पालन किया, व्यक्तिगत रूप से कई अवांछित प्रकरणों /संबंधों में हठी,दृढ़ निश्चयी व तठस्थ व्यवहार रखने वाले व्यक्ति भी थे,फलस्वरूप अपने स्वाभिमान व अस्तित्व की रक्षा वे जीवन के अंतिम क्षण तक कर पाए.
पिताजी के जीवन के असीम दुर्लभ संस्मरणों,घटनाओं व्यक्तित्व/कृतित्व को शब्दोँ में बाँध साझा कर पाना मेरी तुच्छ लेखनी के लिए संभव नहीं क्योंकि वे वास्तव में अदभुत,महान, विलक्षण,हमारे आदर्श,रियल हीरो और एक पूरा युग थे,इन्हीं गुणों,लोकहित से जुड़े श्रेष्ठ कर्मों,अद्वितीय क्षमताओं व संत महात्मा जैसी मृत्यु ने पिताजी को ‘अभूतपूर्व ‘ बना दिया.
शरीर तो सबका एक दिन मिट जाना है क्योंकि यही जीवन का अंतिम शाश्वत सत्य है,पिताजी जहाँ भी हो उनकी आत्मा को शांति व मोक्ष प्राप्त हो व उत्तम नया जीवन मिले,ईश्वर शक्ति दे कि उत्तराधिकार में मिले उनके आदर्श,मार्गदर्शन, इच्छा,अपेक्षा व निर्देशों का अगली पीढ़ी उन्हीं समृद्ध संस्कारों व मर्यादाओं के साथ पारिवारिक सम्मान/गरिमा को संरक्षित रख सके. हमारी यादों के स्मृतिवन में पिताजी सदा ही जीवंत, पुष्पित और पल्लवित रहेंगे… विनम्र श्रद्धांजलि ! ॐ शांति🙏 — नीलम नेगी अल्मोड़ा (उत्तराखंड)