( आन लाइन काव्य गोष्ठी में देश भर की महिलाओं ने भाग लिया)
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अंतर्राष्ट्रीय महिला काव्य मंच ‘ मन से मंच तक’ के तत्वाधान में अल्मोड़ा इकाई के आयोजित की गयी।कार्यक्रम में मुख्य अतिथि स्वरुप वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.अलका अग्रवाल अध्यक्ष (महाराष्ट्र प्रांत) जी प्रतिष्ठित रहीं, विशिष्ट अतिथि सोनिया आर्या जी, अध्यक्ष (चम्पावत इकाई)एवं अध्यक्षता सुप्रसिद्ध साहित्यकार हेमा आर्या ‘शिल्पी ‘द्वारा की गई। मीनू जोशी जी द्वारा सरस्वती वंदना से गोष्ठी का पारंपरिक शुभारंभ हुआ।👉 कुछ सुंदर गीतकाव्यों व काव्यपाठ की झलकियाँ—
(मुखड़ा पंक्तियाँ )
- तुम्हें पुकारते हुए मां शारदे तेरी शरण में आज आ रहे हैं हम
तरल हृदय से भाव कलिकायें चुन,ये गीत गुनगुना रहे हैं आज हम…
—मीनू जोशी - भारत का एक लोकप्रिय व्यंजन जिसे कहते हैं पूरी
भारत की सभ्यता संस्कृति में बड़ा स्थान रखती है पूरी..
— भावना जोशी - यादों के झूले में झूली उदासी सपनों की रुनझुन में उदासी
बरसाती बेलों सी फैली उदासी,जन्मों से हरी भरी दिल की उदासी..
— विनीता जोशी - ऐ मेरे देश के युवा ये तुझे क्या हुआ
क्यों हैं नशे की बेड़ियाँ ये तेरा क्या हाल हुआ…
— चंद्रा उप्रेती - जन्म से कोई बड़ा न होता, बड़े का दर्शन समझ ले जो
वही बड़ा बन पाता है और श्रद्धा सम्मान भी पाता है…
— नीलम नेगी - नाम स्वयं ही बता रहा है सेफ्टी पिन बड़ी है काम की
काम हैं बड़े बड़े फिर भी ये नन्ही बहुत है जान की..
— कमला बिष्ट - रेखा जानते हैं ना आप जितना बड़ा करो उतनी बढ़ती है
यानी उसकी उम्र बड़ी लंबी होती है….
— स्नेहलता बिष्ट - जीवन की आपाधापी से कुछ क्षण चुराकर
कई यादें और जीवन की खट्टी मीठी सौगातें
अंतर्मन को टटोलना और खुद में खुद को ढूंढना
जेहन में दौड़ते सवाल और स्वयं ढूंढते उनके जवाब
चाय की चुस्कियों के बीच….
— मीनू जोशी - मनभावन सावन आय गयो वसुधा को रूप निखारन को
कारे बदरा घुमड़ाय गयो धानी धानी सी चूनर से बूँदन बूँदन छिटकाय गयो…
— वीणा चतुर्वेदी - कि जमाना कहता है ये आजकल की औरतें मेकअप बहुत करती हैं.. हाँ मैं मानती हूँ कि औरतें मेकअप बहुत करती हैं
लेकिन एक प्रश्न चिह्न भी साथ लिये चलती हैं कि
जमाना देखता रहा चमकती सफ़ेद परत को
नहीं देख पाते उसके पीछे छिपे स्याह अन्धकार को….
— सोनिया आर्या - क्यों लगता है हरेक सपना सच्चा हो
जैसे हम हैं वैसी सारी दुनिया हो
लोग ग़ज़ल के नाम पर क्या क्या कहते हैं
अपने दिल की बात कहें तो कैसा हो…
— अलका अग्रवाल - कहता है वो ये तय करूँगा मैं कि कितनी हवा ले सकती हो तुम…
कि किस भाषा में समझोगे तुम कि ये घर मेरा भी है…
–अलका अग्रवाल - आँगन के पत्थरों के बीच उग आई दूब
बना लेती है जगह फैलने के लिये….
— प्रेमा गड़कोटी - भोले बाबा महादेव मैं नित तेरा गुणगान करूँ
शिव चरणों में अर्पित मन से तेरा यशगान करूँ
अपने तन पर भस्म रमाकर शूलपाणि त्रिशूलधारी
देव दानव झूम उठे सब हर हर शम्भू गूँज उठे तीन लोक में…
— हेमा आर्या’शिल्पी’ - शब्द सुरों को बाँध जब भी जाती हूँ
कहीं मीरा कहीं राधा अधूरी छोड़ आती हूँ…
— वीणा चतुर्वेदी
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