डा० राजेंद्र कुकसाल
आर्थिक सर्वेक्षण 2023 – 24 की रिपोर्ट के अनुसार बर्ष 2020 – 21 में फल उत्पादन के अन्तर्गत क्षेत्र फल था 181000 हैक्टेयर तथा फलों का उत्पादन 648000 मैट्रिक टन बर्ष 2022 – 23 में फल उत्पादन क्षेत्र फल 81000 हैक्टेयर तथा फलों का उत्पादन 369000 मैट्रिक टन इस प्रकार बर्ष 2021- 22 की तुलना में बर्ष 2022 – 23 में फल उत्पादन क्षेत्र फल 50 लाख नाली याने एक लाख हैक्टेयर कम हो गया। विगत छः वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण उद्यान विभाग द्वारा फल उत्पादन क्षेत्र फल कम होने का कारण विभिन्न समाचार-पत्रों एवं सोशल मीडिया में प्रचारित प्रसारित किया जा रहा है।
जबकि वास्तविकता यह है कि बिगत कई वर्षों से फर्जी तरीके से केवल कागजों में ही फलों का उत्पादन दर्शाया जाता रहा । पलायन आयोग की रिपोर्ट एवं समाचार पत्रों व सोशल मीडिया में जब योजनाओं व फल उत्पादन के आंकड़ों की वास्तविकता सामने आने लगी तब जलवायु परिवर्तन का सहारा लिया गया।*
जलवायु परिवर्तन से उत्पादन पर प्रभाव पड़ सकता है किन्तु एक लाख हैक्टेयर बगीचे ही गायब हो जांय यह देव भूमि उत्तराखंड में ही संभव है*। *फर्जी फल उत्पादन आंकड़ों के सहारे बनती रही योजनाएं और पाते रहे राष्ट्रीय इनाम*।
उद्यान विभाग द्वारा करोड़ों रुपए योजनाओं ( हार्टिकल्चर टैक्नोलॉजी मिशन, जिला योजना, राज्य सेक्टर की योजना, कृषि विकास योजना, परम्परागत कृषि विकास योजना , जनजातीय विकास योजन निधि, नाबार्ड आदि ) पर खर्च करने के बाद ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग उत्तराखंड की जनपद पौड़ी, टिहरी व अल्मोड़ा की रिपोर्ट के अनुसार विभाग द्वारा फल उत्पादन के अन्तर्गत दर्शाये गये फल उत्पादन के आंकड़ों से काफी कम पाया गया ।
पलायन आयोग की पौड़ी जनपद की रिपोर्ट के अनुसार, जनपद में उद्यान विभाग द्वारा फल उद्यान के अन्तर्गत बर्ष 2015-16 में 20301 हैक्टियर क्षेत्रफल दर्शाया गया है। पलायन आयोग के बर्ष 2018-19 सर्वे में पाया कि पौड़ी जनपद में मात्र 4042 हैक्टेयर क्षेत्रफल में उद्यान हैं , याने दर्शाये गये क्षेत्रफल से 16259 हैक्टेयर कम। किन्तु निदेशालय के फल उत्पादन के आंकड़ों के अनुसार बर्ष 2019-20 में भी पौड़ी जनपद में फल उत्पादन के अंतर्गत क्षेत्र फल बढ़ा कर 21647 हैक्टेयर दर्शाया जा रहा है ।
यही हाल अन्य जनपदों के भी है। पलायन आयोग की टिहरी जनपद की रिपोर्ट के पृष्ट संख्या 86 के अनुसार जनपद में बर्ष 2015 – 16 में सेब का क्षेत्रफल जो 3820 था बर्ष 2017 – 18 में घट कर 853 हैक्टर, नाशपाती का 1815 से घटकर 240 हैक्टर , पुल्म का 2627 से घटकर 240, खुबानी का 1498 से घटकर 162 तथा अखरोट का 4833 से घटकर 422 हैक्टर रह गया है। टेहरी जनपद में बर्ष 2015 – 16 में शीतकालीन फलों के अन्तर्गत क्षेत्र फल था 14593 हैक्टेयर जो बर्ष 2017 – 18 में घट कर रह गया 1902 हैक्टेयर याने 12691 हैक्टेयर क्षेत्र फल कम हुआ।अल्मोड़ा जनपद की रिपोर्ट के पृष्ट संख्या 87 में उद्यानीकरण में निरंतर कमी होना लिखा गया है।
यही हाल सभी जनपदों के हैं। दूसरी ओर प्रत्येक जनपद की प्रगति आख्या में प्रति बर्ष लाखों पौधों के रोपण पर लाखों रुपए उद्यान विभाग की योजनाओं में व्यय होना दर्शाया गया है। खराब फल पौध व अनुचित तरीके से पैकिंग व कृषकों के खेत तक फल पौध ढुलान गलत तरीके से करने के कारण 40% पौधे पौध लगाने के प्रथम बर्ष में ही मर जाते हैं विभाग योजनाओं में लगाये गये पौधों के हिसाब से हर बर्ष पौध रोपण का क्षेत्रफल व फलौं का उत्पादन बढता रहता है इसलिए दर्शाते गये आंकड़े सही नहीं है।
योजनाओं में फल पौधों की आपूर्ति राज्य की पंजीकृत नर्सरियों से होना दर्शाया जाता है किन्तु वास्तविकता यही है कि निम्न स्तर की अधिक तर शीतकालीन फलपौध हिमाचल तथा बर्षाकालीन फल पौध सहारनपुर या मलीहाबाद लखनऊ की व्यक्तिगत नर्सरियों से ही होती है। *फर्जी / काल्पनिक आंकड़ों के सहारे राज्य नाशपाती, आड़ू,प्लम एवं खुवानी में देश में प्रथम स्थान पर*।उद्यान विभाग द्वारा बर्ष 2015–16 के फल उत्पादन के आंकड़ों एवं प्रगति रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड राज्य नाशपाती, आड़ू , पल्म तथा खुवानी फल उत्पादन में पूरे देश में प्रथम स्थान पर तथा अखरोट उत्पादन में देश में दूसरे स्थान पर है।
आंकड़ों के अनुसार नाशपाती 13029 हैक्टियर उत्पादन 78778 MT, आड़ू 7855 हैक्टेयर उत्पादन 57933 MT, प्लम 8837 हैक्टेयर उत्पादन 36154 MT, खुवानी 7954 हैक्टियर उत्पादन 28197 MT, अखरोट 17243 हैक्टेयर उत्पादन 19322 MT तथा सेव के अन्तर्गत 24982 हैक्टियर व उत्पादन 51940 MT दर्शाया गया है। फलों के अन्तर्गत बर्ष 2015 – 16 में फलों के अन्तर्गत कुल क्षेत्रफल 175329.90 हैक्टर तथा उत्पादन 659094.15 दर्शाया गया है। बर्ष 2011- 12 के फल उत्पादन आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड में फल उत्पादन के अंतर्गत क्षेत्र फल 200727 हैक्टेयर तथा उत्पादन 802124 Mt दर्शाया गया है जो हिमाचल के 372820 Mt उत्पादन से अधिक है।विभाग के बर्ष 2018 – 19 के आंकड़ों के अनुसार राज्य में फ़ल उत्पादन के अन्तर्गत 180468.79 हैक्टर क्षेत्र फल तथा उत्पादन 664555.41 मैट्रिक टन दर्शाया गया है।
जवकि वास्तविकता यह है कि जव हम चार धाम यात्रा पर याने गंगोत्री यमुनोत्री श्रीबद्रीनाथ व केदारनाथ भ्रमण पर जाते है जिसमें राज्य के पांच पर्वतीय जनपदों का भ्रमण हो जाता है आपको 1200 मीटर की ऊंचाई तक कहीं कहीं घाटियों में आम बीजू के पौधे उससे ऊपर के क्षेत्रों में खेतों के किनारे व गधेरों में अखरोट के पौधे देखने को मिलते है ऊंचाई वाले क्षेत्रों में माल्टा पहाडी नीम्बू व चूलू खुवानी बीजू के पौधे देखने को मिलेगें रास्तों पर कहीं पर भी स्थानीय उत्पादित फल यात्रा सीज़न याने मई से अक्टूबर माह तक बिकते नहीं दिखते कुमाऊं मण्डल में भवाली गर्मपानी रानीखेत व कुछ अन्य स्थानों में स्थानीय उत्पादित फल बिकते हुए दिखाई देते हैं।
द्वाराहाट व चौखुटिया क्षेत्र में गोला नाशपाती का उत्पादन होता है जिसका बाजार भाव कास्तकारों को अच्छा नहीं मिलता है।वहीं दूसरी ओर यदि हिमाचल राज्य का भ्रमण करते हैं तो पोंठा साहव से आपको किन्नो व नीम्बू वर्गीय फलों के बाग दिखाई देते हैं सोलन के आसपास के क्षेत्रों में माह अप्रैल मई में चारों तरफ प्लम के बागों में सुफेद फूल दिखाई देते हैं तथा जुलाई अगस्त माह में सड़कों के किनारे पर प्लम सेंटारोजा के ढेर दिखाईं देते हैं।
कुलू मनाली में सड़क के दोनों तरफ सेब के बाग दिखाई देते हैं।पूहू व लाहोल सफ्ति क्षेत्र में होप्स व खुबानी सकरपारा व चारमग्ज के बाग दिखाई देते हैं।कहने का अभिप्राय यह है कि राज्य में नाशपाती ,आडू , प्लम , खुबानी के बहुत कम बाग देखने को मिलते है । फिर भी आकडो मै देश है प्रथम स्थान पर है।
अखरोट का कहीं कोई बाग बिकसित नहीं है बाग का अभिप्राय अख़रोट की नोन किस्म के 100 -200 पौधे एक साथ ले आउट में लगे हुए हों ऊचाई वाले क्षेत्रों में खेतों के किनारे या गधेरों में गांव के पास कहीं कहीं बीजू अखरोट के पौधे दिखाई देते हैं ।
चकरौता नैनबाग रामगढ़ व पिथौरागढ़ चमोली व उतर काशी जनपद के कुछ क्षेत्रों में जंगल के रूप में अखरोट के पौधे दिखाई देते हैं यदि हम को अखरोट के कलमी पौधौ की व अखरोट बीज की आवश्यकता होती है तो हम हिमाचल या काश्मीर का रुख कर ते है फिर भी हम अखरोट उत्पादन में पूरे देश में द्वितीय स्थान पर है।नाशपाती की मैक्स रैड व रैड बबूगोसा के फल बाजार में हिमाचल व काश्मीर के बिकते हैं फिर भी हम नाशपाती उत्पादन में देश में प्रथम स्थान पर है। बागेश्वर चंपावत में गोला नाशपाती के पुराने काफी बाग है किन्तु इन फलों की बाजार में मांग न होने के कारण बागवान नाशपाती के इन पौधों को काट रहे हैं।
यही स्थिति प्लम व आडू उत्पादन की है । कुछ क्षेत्रों नैनीताल जनपद के रामगढ़ टिहरी के नैनबाग क्षेत्र में कास्तकार अपने व्यक्तिगत प्रयासों से सेव के बाग हटा कर आड़ू के नये बाग बिकसित कर रहे है जिससे उन्हें अच्छा आर्थिक लाभ भी मिल रहा है ।सेव में भी उत्पादन बहुत अधिक दर्शाया गया है सेव के पुराने बाग नष्ट हो चुके हैं , योजनाओं में पुराने बागों के जीर्णोद्धार द्वारा पुनर्जीवित करने हेतु लाखों का बजट प्रति बर्ष प्रत्येक जनपद को आवंटित होता है जिसके अंतर्गत पुराने फल पौधों की कटाई छंटाई फ्रेम वर्किंग द्वारा उन्नत किस्मों की कलम लगाना खाद दवा डाल कर उन्हें पुनः अच्छी फलत में लाना है किन्तु विभाग पुराने बागों के जीर्णोद्धार के नाम पर केवल निम्न स्तर की दवाइयां क्रय कर बागवानों को बांटना दर्शाता है जिन्हें कोई भी बागवान उपयोग में नहीं लाता।
नये बाग लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं किन्तु गलत नियोजन व क्रियान्वयन में पारदर्शिता न होने के कारण आंशिक सफलता ही मिल पा रही है ।उत्तरकाशी जनपद व राज्य के हिमाचल से लगे देहरादून व टेहरी जनपदों के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तथा पिथौरागढ़, चमोली जनपदों के अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों मैं उद्यान पतियों के अपने प्रयास से सेब के नये बाग बिकसित हुए हैं जिनसे अच्छा उत्पादन हो रहा हैं। इन क्षेत्रों के उद्यान पति हिमाचल प्रदेश से तकनीकी जानकारी लेते हैं साथ ही पौधौ की कटाई छंटाई हिमाचल के मजदूरों से करवाते हैं।
नैनीताल जनपद के रामगढ़ क्षेत्र में अधिकतर कृषकों ने सेब के पुराने पेड़ हटा कर आड़ू , प्लम नाशपाती के अच्छे बाग विकसित किए हैं जिनसे अच्छा उत्पादन मिल रहा है सेब में रायमर व जौनाथन (केनिंग) किस्मौं का भी अच्छा उत्पादन हो रहा है। एपिल मिशन के अंतर्गत कुछ नये सेब के बाग विकसित हो रहे हैं।इस क्षेत्र में फूड प्रोसेसिंग की तीन चार छोटी इकाइयां भी चल रही है।फर्जी फल उत्पादन के आंकड़ों के सहारे लगी ज्यादातर बड़ी खाद्य प्रसंस्करण यूनिटें बन्द हुई है।रामगढ नैनीताल में 70 के दशक में एग्रो द्वारा फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई गई थी फ़ल उपलब्ध न होने के कारण बन्द करदी गयी।
इसी प्रकार अल्मोड़ा जनपद के मटेला में 80 के दशक में करोंड़ों रुपए खर्च कर कोल्ड स्टोरेज बना जो आज फल उपलब्ध न होने के कारण बन्द पडाहै । रानीखेत चौबटिया गार्डन की एपिल जूस प्रोसिसिग यूनिट बन्द पड़ी है। चमोली जनपद के कर्णप्रयाग में भी 80 के दशक में एग्रो द्वारा फूड प्रोसेसिंग यूनिट खुली और बन्द हुई। रुद्रप्रयाग जनपद के तिलवाड़ा में भी फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई गई वह भी अधिक तर बन्द ही रहती है।कई स्वयंम सेवी संस्थाओं एवं परियोजनाओं के माध्यम से फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई गई किन्तु फल उपलब्ध न होने के कारण नहीं चल पाई।पर्वतीय क्षेत्रों में कहीं कहीं पर व्यक्तिगत Small scale prossesing unit लगी है किन्तु अधिकांश यूनिटें पहाड़ी क्षेत्रों में फल न उपलब्ध होने के कारण मैदानी क्षेत्रो हरिद्वार आदि स्थानों से किन्नो संतरा का पल्प/जूस इक्ट्ठा कर माल्टा जूस के नाम पर बेच रहे हैं।किसी भी राज्य के सही नियोजन के लिए आवश्यक है कि उसके पास वास्तविक आंकड़े हों तभी भविष्य की रणनीति तय की जासकती है।
काल्पनिक (फर्जी) आंकड़ों के आधार पर यदि योजनाएं बनाई जाती है तो उससे आवंटित धन का दुरपयोग ही होगा।राज्य बनने पर आश जगी थी कि विकास योजनायें राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार बनेंगी किन्तु ऐसा नहीं हो पाया । राज्य के भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार योजनाओं में सुधार नहीं हुआ। विभाग योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए कार्ययोजना तैयार करता है कार्ययोजना में उन्हीं मदों में अधिक धनराशि रखी जाती है जिसमें आसानी से संगठित /संस्थागत भ्रष्टाचार किया जा सके ।उच्च स्तर पर योजनाओं का मूल्यांकन सिर्फ इस आधार पर होता है कि विभाग को कितना बजट आवंटित हुआ और अब तक कितना खर्च हुआ राज्य में कोई ऐसा सक्षम और ईमानदार सिस्टम नहीं दिखाई देता जो धरातल पर योजनाओं का ईमानदारी से मूल्यांकन कर योजनाओं में सुधार ला सके।कहने को राज्य में अपना नर्सरी एक्ट लागू हो गया है किन्तु अभी भी खराब, कटी जड़ों की फल पौध अनुचित तरीके से पैकिंग की हुई व नर्सरी से कृषकों के खेत तक गलत तरीके से फल पौध ढुलान करने के कारण अधिकतर पौधे , पौध लगाने के प्रथम बर्ष में ही मर जाते हैं।
विभाग योजनाओं में लगाये गये पौधों के हिसाब से हर बर्ष पौध रोपण का क्षेत्रफल व फलौं का उत्पादन बढता रहता है इसलिए दर्शाते गये आंकड़े सही नहीं होते है। योजनाओं में राज्य की भौगोलिक स्थिति के अनुसार सुधार नहीं किया जाता तथा क्रियान्वयन में पारदर्शिता नहीं रखी जाती सरकारी योजनाओ में लगे बाग कागजों में अधिक व धरातल में कम ही दिखाई देंगे।
————————-सोशल मीडिया में की गई टिप्पणियां।उद्यान पति श्री विजेन्द्र सिंह रावत , उत्तरकाशी2 Jan 2021 द्वारा योजनाओं में फल पौध आपूर्ति के सम्बन्ध में मुख्यमंत्री को खुला पत्र -मुख्य निवेदन- फलों के पौधों के विभागीय खरीद मंत्री जी पर ध्यान दें………………
पहाड़ पर इस सीजन में लगने वाले सेब, अखरोट, नाशपाती, खुमानी, आड़ू व कीवी आदि के पौधों की खरीद के लिए बागवानी मंत्रालय में घटिया पौधों की खरीद फरोख्त करने वाले दलाल हर साल की तरह घूमने लगे हैं।
अब ये लोग हर साल की तरह मोटी कमीशन देकर विभाग में पौध सप्लाई के ठेका हथिया लेंगे और फिर बेचारे गरीब बागवानों में मत्थे ये पौधे मड़ दिये जाएंगे और उसके खेत सालों बंजर रह जाएंगे।
किसानों को अपनी जमीन के लिए अपनी मर्जी से पौध खरीदने दो, फिर इन पौधों पर उन्हे अनुदान दो, कम ही सही।मुफ्त में पौधे बांटने और विभागीय खरीद के पीछे घोटाला होता है।भुक्तभोगी बागवान, अपने विभागीय कड़वे अनुभव जरूर शेयर करें ताकि विभाग की लूट को मुख्यमंत्री व जनता तक पहुंचाकर उन्हे सचेत किया जा सके।
गत वर्ष मैं,मेरे गांव व आसपास के गांव के सैकड़ों बागवान भी मुफ्त में बंटे अखरोट व आड़ू के खटिया विभागीय पौध का शिकार हुआ हूं, अखरोट का एक भी पौधा सफल हुआ, ये जब तक किसानों के पास आए सूख चुके थे!