राष्ट्र नीति संगठन के द्वारा राष्ट्रनीति प्रमुख विनोद तिवारी के नेतृत्व में अल्मोड़ा में यूनिफॉर्म सिविल कोड उत्तराखंड 2024 पर आपत्तियां और मूल आधिकार हनन संबंधित एक प्रेस वार्ता को संबोधित किया गया ।

यूनिफॉर्म सिविल कोड के लेकर कई बिंदुओं पर आपत्ति दर्ज़ की गई और जिला अधिकारी अल्मोड़ा के माध्यम से मुख्यमंत्री एवं प्रधानमंत्री को आपत्तियों का ज्ञापन संबंधित ड्राफ्ट भेजा गया।

ज्ञापन संबंधित ड्राफ्ट में कहा गया यूनिफॉर्म सिविल कोड उत्तराखंड 2024 पास होने के बाद ड्राफ्ट पर ,राष्ट्र नीति संगठन द्वारा राष्ट्रपति पुरुष्कार से सम्मानित भूतपूर्व प्रोफेसर डॉक्टर एसडी शर्मा(विधि संकाय अध्यक्ष कुमाऊं विश्वविद्यालय) और विद्वान अधिवक्ता हिमांशु जोशी जी के नेतृत्व में समिती का गठन किया जिन्होंने रिपोर्ट सौंपी और राष्ट्रनीति प्रमुख विनोद तिवारी, नितिन रावत द्वारा कई विद्वान् अधिवक्ताओं की सहायता से इस ड्रॉफ्ट को अंतिम रूप दिया गया।इस प्रेस वार्ता में यूनिफॉर्म सिविल कोड 2024 संबंधी निम्न आपत्तियों को उठाया गया।

पहला बिंदु भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची को लेकर उठाया गया जिसके तहत शक्ति विभाजन का सिद्धांत का उल्लंघन होने की संभावना यूनिफॉर्म सिविल कोड द्वारा हो सकती है, क्योंकि शादी विवाह तलाक और संपत्ति विषयक कई कानून पूर्व में ही केंद्र सरकार द्वारा पारित किए गए हैं और अब राज्य सरकार द्वारा बनाए गए कानून के संदर्भ में इनका टकराव सुनिश्चित है।

ऐसे में एक महान संवैधानिक संकट खड़ा होने की उम्मीद जताई गई है जिसका निराकरण टकराव से पूर्व ही करना आवश्यक होगावही यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल 2024 में अध्याय 2 के धारा 6 से धारा 18 तक कुछ प्रावधानों का मूल अधिकार विशेष तौर पर अनुच्छेद 14 एवं 21 एवं अनुच्छेद 25 और अनुच्छेद 26 उल्लंघन का दावा किया गया जहां पर शादी के साथ-साथ तलाक रजिस्ट्रेशन को लेकर के प्रश्न खड़े किए गए और यह कहा गया कि ”तलाक की डिक्री कोर्ट द्वारा दी जाती है तो न्यायालय के निर्णय का रजिस्ट्रेशन अनावश्यक है!

वही धारा 15 पर भी सवाल या निशान लगाएं और कहा गया कि विवाह और तलाक के पंजीकाओ का लोक अवलोकन हेतु उपलब्ध रहना जो नागरिक की निजता का खुला उल्लंघन है और धारा 17 सवाल उठाते हुए वक्ताओं ने कहा कि रजिस्ट्रेशन नहीं करने को दंडनीय या जुर्माना युक्त बनाया जाना उचित नहीं है यह सिविल कानून का अपराधीकरण करना अनुचित है।

लिव इन रिलेशनशिप के सिद्धांतों पर भी इस प्रेस वार्ता में प्रश्न उठाए गए विशेष रूप से धारा 378 से 389 तक जो प्रावधान दिए गए हैं उनमें कई असंवैधानिक प्रतीत होते हैं मसलन धारा 380 प्रावधान करती है कि एक शादीशुदा व्यक्ति लिव इन रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन नहीं कर सकता परंतु यदि वह लिव इन रिलेशनशिप में रहता है तो कृत्य दंडनीय नहीं बनाया गया है, जबकि 387 धारा प्रावधान करती है कि कोई भी अविवाहित लिव इन रिलेशनशिप में रहता है और 30 दिनों के भीतर वह रजिस्ट्रेशन नहीं करता है तो यह दंडनीय होगा जो की परस्पर विरोधाभासी नजर आता है।

इसके अतिरिक्त धारा 381 लिव इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन के दौरान अधिकारियों को प्रश्न पूछने की इजाजत दिया जाना, धारा 385 में स्थानीय थाने के प्रभारी अधिकारी को कागजी कारवाही हेतु लिव इन रिलेशन संबधी भेजा जाना और 21वर्ष से कम उम्र होने पर माता पिता को सूचित करना भी निजता के अधिकार का उल्लंघन और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का स्पष्ट और घोर उल्लंघन नजर आता है ।

धारा 2 को भी इस चर्चा में शामिल किया गया जहां पर कहा गया कि अनुसूचित जनजातियों को जो कि संविधान के अनुच्छेद 366(25) में जो जनजातियां वर्णित है उन्हें इस कानून से अलग रखना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 की मूल भावना के साथ न्याय करना नहीं होगा क्योंकि भारतीय संविधान की धारा 44 की मूल भावना है कि यह भौगोलिक क्षेत्र आधार पर यूसीसी के निर्माण की सिफारिश करता है ।

जो संविधान निर्माताओं की मूल भावना से खिलवाड़ हैवही राष्ट्र नीति संगठन के कार्यकर्ताओं ने कहा कि वह यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट का स्वागत करते हैं और माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी यूनिफॉर्म सिविल कोड की आवश्यकता पर बल दिया और सरला मुद्गल बनाम भारतीय संघ वाद में यूनिफॉर्म सिविल कोड की आवश्यकता पर बल दिया परंतु प्रसिद्ध केशवानंद भारती वाद में वर्ष 1973 में जो मूल ढांचे सिद्धांत प्रतिपादित किए गए थे।

उसका उल्लंघन करने की इजाजत सरकार को नहीं दी जा सकती और ना ही निजता का अधिकार जो की जीवन जीने का अधिकार से जुड़ा हुआ है उसे सरकार को खिलवाड़ करने की इजाजत नहीं दी जा सकती हैवस्तुत राष्ट्रीय नीति संगठन ने जब सरकार द्वारा यूनिफॉर्म सिविल कोड पर समिति थी तो समिति के सामने अपने विचार रखे थे और यूनिफॉर्म सिविल कोड का स्वागत किया था और सरकार से राष्ट्र नीति संगठन के कार्यकर्ताओं ने अपील की है कि इन विवादित प्रावधानों को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाए जैसा कि भूतपूर्व में कई बार कई कानून में किया गया है बाकी भाग से उन्हे कोई आपत्ति नही है।

और राष्ट्र नीति संगठन के पदाधिकारी द्वारा यह स्पष्ट किया गया कि यदि सरकार द्वारा ड्राफ्ट दिए जाने के बाद और तमाम विषय से उन्हें अवगत करवाने के बाद भी इस विषय पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया तो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट, और संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका के माध्यम से यूनिफॉर्म सिविल कोड को चुनौती देकर के असंवैधानिक भागों को रद्द करवाया जाएगा और इसकी जिम्मेदारी सरकार पर होगीवही इस प्रेस वार्ता में राष्ट्रीय नीति संगठन के पदाधिकारी ने बताया कि आगामी लोकसभा चुनाव में वह किसी भी पार्टी अथवा राजनीतिक दल का सीधा समर्थन नहीं करेंगे क्योंकि राष्ट्र नीति के कार्यकर्ताओं का स्पष्ट मानना है कि वह सामाजिक संगठन है समाज के लिए काम करते हैं अतः उनका राजनीतीकरण करना वर्तमान समय में उचित नहीं है लेकिन सैद्धांतिक तौर पर सामाज के लिए निस्वार्थ भाव से हमेशा काम करना उचित है।गौरतलब है कि इस आपत्तियों से संबंधित ड्राफ्ट को तैयार करने में राष्ट्र नीति संगठन की समिति और अन्य कार्यालय खर्चों में ₹100000 से अधिक की धनराशि खर्च हुई है!

प्रेस वार्ता में धर्मनिरपेक्ष युवा मंच के अध्यक्ष विनय किरोला भी मौजूद रहे जिन्होंने मूल अधिकारों के हनन पर गहरी चिंता जाहिर की और सरकार से अपील की इन पर सुधार हो!इस अवसर पर मुख्य वक्ता राष्ट्र नीति संगठन के अध्यक्ष विनोद तिवारी समाजिक कार्यकर्ता पंकज पंत, और भूतपूर्व कमांडेंट मनोहर सिंह नेगी प्रेस वार्ता में मौजूद रहे।

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