( शीध्र व सरल , सुलभ न्याय का सिद्धांत तभी सार्थक होगा, वरना सफेद हाथी बन शो पीस बन रहे हैं न्यायालय)।
आज समूचा राष्ट्र राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस मना रहा है। वर्ष १९८६ में बना उपभोक्ता कानून लोकप्रिय हो रहा है, जरूरत को देखते समय समय पर संशोधन भी हुये। लेकिन यदि उत्तराखंड राज्य के सिलसिले में कुछ आज के दिन धरातल पर बात कर ली जाय, तो राज्य में रिक्त सदस्यों, व अध्यक्ष के पदों पर नियुक्ति न होना देरी का प्रमुख कारण है, जब अदालत की बैठक ही नहीं होगीं तो न्याय कैसा, ।इधर काफी समय से उपभोक्ता अदालत के अध्यक्ष में या तो पूर्णकालिक अध्यक्ष जो जिला जज की योग्यता रखता हो होते थे, या पदेन जिला जज ।कुछ माह पहले राज्य ने जिला जज के पद दायित्व को समाप्त कर पूर्णकालिक अध्यक्ष की ही नियुक्ति की व्यवस्था की है। जिन स्थानों में पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है, वहां अन्य जनपदों के अध्यक्ष को कैम्प लगा काम चलाया जा रहा है, इस व्यवस्था के चलते महिने में तीन चार दिन अदालत लग पाती है, जिस कारण त्वरित न्याय के सिद्धांतों पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। मामलों में कोरम के अभाव में न्यायालय की पैरवी ,व दस्तावेज का आदान-प्रदान प्रभावित होता है, अक्सर मामलों में अंतिम बहस के बाद भी निस्तारण में समय लग रहा है। आज राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के दिवस पर राज्य सरकार से गुजारिश है है खामियों को दूर कर नियमित अदालत की बैठक लगायी जानी सुनिश्चित करें,वरना उपभोक्ता अदालत एक सफेद हांथी व शो पीस बन रह जायेगीं