तीनों का बचपन में ही हो चुका है दिल का इलाजमां सावित्री बताती हैं कि बचपन में बच्चों का इलाज कराया गया था। बालम के दिल में 8 मिमी का छेद मिला था, जिसके इलाज में काफी पैसे खर्च हुए। दूसरे बेटों में भी इसी तरह की समस्याएं दिखीं। लगातार चिंता और बढ़ते बोझ ने उनके पति को तोड़ दिया और दो वर्ष पहले उनका निधन हो गया। परिवार को हर महीने मिलने वाली 1,500 रुपये की दिव्यांग पेंशन बेहद कम साबित हो रही है।कई तरह की होती समस्या सीएचसी गरमपानी के डॉ. गौरव कैड़ा ने बताया कि तीनों भाई अनुवांशिक बीमारी से जूझ रहे हैं। इस बीमारी में अतिरिक्त उंगलियां, हार्मोनल समस्याएं, मोटापा और त्वचा संबंधी परेशानियां होती हैं।
संघर्ष कर रहे सभी भाईसबसे बड़ा भाई बालम बकरियां चराने का काम करता है। गौरव एक निजी स्टोन क्रशर में दिहाड़ी मजदूर है, जबकि कपिल एक छोटे होटल में काम करता है। रात होते ही ये अकेले कोई काम नहीं कर पाते हैं।
दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी ‘लॉरेंस मून बेडिल सिंड्रोम’ से जूझ रहे तीनों
हाथों-पैरों में अतिरिक्त उंगलियां, असामान्य भूख ने बढ़ाई मुश्किलें
खबर कैलाश नेगी हिंदुस्तान
गरमपानी। नैनीताल जिले के धारी गांव (बेतालघाट) में तीन सगे भाइयों की जिंदगी सूरज की रोशनी पर चलती है। शाम ढलते ही इनकी आंखें देखना बंद कर देती हैं और अंधेरा इनका सबसे बड़ा दुश्मन बन जाता है।दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी ‘लॉरेंस मून बेडिल सिंड्रोम’ से जूझ रहे इन भाइयों की परेशानियां यहीं खत्म नहीं होतीं। हाथ-पैरों में कुल 75 उंगलियां, तेज भूख जीवन को कठिन बना रही है। 34 वर्षीय बालम जंतवाल, 29 वर्षीय गौरव और 25 वर्षीय कपिल की शाम ढलते आंखों की दृष्टि चली जाती है।बालम के दोनों हाथों में 13 व पैरों में 12, गौरव के हाथों व पैरों में 13-13 और कपिल के हाथों व पैरों में 12-12 उंगलियां हैं। इन भाइयों में से हर भाई एक बार में लगभग 15 रोटियां और इसी हिसाब से सब्जी और चावल खा लेता है। दिहाड़ी मजदूरी से चलने वाला परिवार खाने के बढ़ते खर्च से आर्थिक दबाव झेल रहा है।
लॉरेंस मून बेडिल सिंड्रोम ऐसी बीमारी है, जिसमें रात में देखने वाला रॉड कोशिका काम नहीं करती है। इसके चलते रात को नहीं दिखता है। इस अनुवांशिक बीमारी का ठोस इलाज नहीं है। डॉ. जीएस तितियाल, प्राचार्य हल्द्वानी मेडिकल, हल्द्वानी।




















