“भारतीय ज्ञान परंपरा का उन्नयन : सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण”, विषय पर श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के संकाय विकास केंद्र द्वारा 04 मार्च से 12 मार्च, 2024 तक आयोजित संकाय विकास कार्यक्रम का आज समापन हुआ। फैकल्टी डेवलपमेंट सेंटर की निदेशक प्रो अनिता तोमर ने कहा कि इस कार्यक्रम के दौरान, हमने अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में समाहित ज्ञान के भंडार को खंगालते हुए एक साथ एक गहन यात्रा शुरू की है।

इस पूरे कार्यक्रम के दौरान, हमें प्राचीन धर्मग्रंथों से लेकर पारंपरिक प्रथाओं तक, भारतीय ज्ञान प्रणालियों की जटिलताओं की खोज करने का सौभाग्य मिला है। प्रो. तोमर ने कहा कि आज की तेज़-तर्रार दुनिया में, जहां आधुनिकता अक्सर परंपरा पर हावी हो जाती है, यह जरूरी है कि हम, शिक्षकों के रूप में, अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित और बढ़ावा देने की जिम्मेदारी लें। इस कार्यक्रम ने हमारी परंपराओं की रक्षा करने और उन्हें भावी पीढ़ियों तक पहुंचाने के महत्व की याद दिलाने का काम किया है जिन्होंने सहस्राब्दियों से हमारी सभ्यता को आकार दिया है।

उन्होंने कहा कि इस समृद्ध अनुभव के साथ हमें इस कार्यक्रम की भावना को अपने शैक्षणिक परिश्रमों और प्रयासों में आगे बढ़ाने का संकल्प लेना चाहिए। हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखने और भारतीय ज्ञान प्रणालियों को प्रोत्साहित करने का कार्य जारी रखना चाहिए। इस मौके परश्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र की निदेशक, प्रोफेसर कल्पना पंत, ने बताया कि कार्यक्रम के दौरान महत्वपूर्ण विषयों पर विशेषज्ञ चर्चाएं आयोजित की गईं, जिनमें प्राचीन भारतीय ग्रंथों की महत्वपूर्णता, भारतीय संस्कृति की विविधता और इसका समकालीन महत्व शामिल था।

कार्यक्रम के दौरान श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय की भारतीय ज्ञान परंपरा की सहायक निदेशक, प्रोफेसर पूनम पाठक ने कहा कि इस कार्यक्रम के दौरान प्राप्त ज्ञान हमें आने वाले वर्षों में प्रेरित और मार्गदर्शन करता रहेगा। उन्होंने कहा कि आगामी दिनों में भी ऐसे ही कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा, जिससे भारतीय ज्ञान प्रणाली को बढ़ावा मिले। यह प्रयास न केवल आधुनिक विज्ञान और तकनीक को बढ़ावा देगा, बल्कि हमारी संस्कृति और विरासत को भी संरक्षित करेगा। संकाय विकास केंद्र के सहायक निदेशक, डा.अटल बिहारी त्रिपाठी ने इस यात्रा का हिस्सा बनने वाले सभी प्रतिभागियों को उनकी सक्रिय भागीदारी और योगदान के लिए, सम्मानित वक्ताओं को उनकी विशेषज्ञता और अंतर्दृष्टि साझा करने के लिए के लिए , और भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र के आयोजकों का आभार व्यक्त किया, जिन्होंने इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए अथक प्रयासों की सराहना की।

कुलपति, प्रोफेसर एन.के.जोशी ने बताया कि भारतीय सांस्कृतिक विरासत और ज्ञान प्रणालियों को समृद्ध करने के लिए आयोजित किए गए संकाय विकास कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य हमारी सांस्कृतिक विरासत और स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों की रक्षा और प्रोत्साहन करना था। यह एक महत्वपूर्ण कदम है जो हमारे संस्कृतिक विरासत और स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों को समझने , संरक्षित और समृद्ध करने की दिशा में बढ़ावा देगा। इस कार्यक्रम में भारतीय ज्ञान प्रणाली के विद्वान और विशेषज्ञ, श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के डीन फैकल्टी ऑफ कॉमर्स कंचन लता सिन्हा, इतिहास विभाग की विभागाध्यक्ष, प्रोफेसर संगीता मिश्रा, प्रोफेसर स्मिता बडोला, डा. शिवांगी उपाध्याय, गौरव वार्ष्णेय आदि उपस्थित थे।सात दिवसीय कार्यक्रम में लगभग 26 व्याख्यान हुए। प्रथम दिवस के प्रथम सत्र में पहला व्याख्यान अंबेडकर विश्वविद्यालय के प्रो0 गोपाल प्रधान ने “राहुल सांकृत्यायन की निगाह में भारतीय दर्शन” पर दिया।

व्याख्यान संत लोंगोवाल इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एवं टेक्नोलॉजी के प्रो0 विनोद मिश्रा जी का था। एमएमवी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रो0 विवेकानंद उपाध्याय ने भारतीय भाषा चिंतन की परंपरा, डा0 वीरेंद्र सिंह बर्तवाल,ख् केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय देवप्रयाग ,ने हमारे संशयों के शमन एवं मार्गदर्शन में श्रीमद्भगवत गीता की भूमिका, ख्डा0 लक्ष्मीनारायण जोशी, उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय , नाड़ी विज्ञान- भारत की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति पर विद्वत्तापूर्ण एवं प्रयोगवादी व्याख्यान दिये ।अंतिम सत्र में प्रो0 आशुतोष कुमार दिल्ली विश्वविद्यालय ने भारतीय काव्यदृष्टि पर अपने सार गर्भित विचार साझा किए।

कवयित्री, अनुवादक एवं वेदों की अध्येता रति सक्सेना ने वेदों की पूर्वपीठिका, प्रो0 वी डी कांडपाल, ख्सेवानिवृत्त प्राचार्य, उच्च शिक्षा उत्तराखंड ने, भारतीय मनीषियों का सार्वभौमिक चिंतन, डॉ0 अर्पिता जोशी, ख्हिमाचल विश्वविद्यालय शिमला, ने पीठ दर्द हेतु पारंपरिक योग चिकित्सा एवं प्रो0 ज्योति सक्सेना, ख्बायोकेमिकल इंजीनियरिंग कुमाऊँ विश्वविद्यालय, ने रूट्स ऑफ माइक्रोबायोलॉजी एंड बायोटेक्नोलॉजी इन एशियंट इंडिया पर व्याख्यान दिये। रति सक्सेना द्वारा कॉस्मोलॉजिकल डेवलपमेंट इन वेद प्रो0 आनंद कुमार शुक्ला दरभंगा विश्वाविद्यालय, द्वारा स्वर्णिम अतीत का अनुसंधानरू हिंदी नवजागरण और आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रो0 ज्योति साह ख्राजकीय महाविद्यालय रायबरेली , द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा, संस्कृति एवं इतिहास लेखन एवं प्रो0 बीड़ी कांडपाल द्वारा वाल्मीकि रामायण में वर्णित श्रीराम के महान आदर्श पर व्याख्यान दिए गए।

कार्यक्रम के अग्रिम चरण में डॉ0 कुशाग्र राजेंद्र ख्एमिटी स्कूल ऑफ अर्थ एंड एनवायरमेंटल साइंस, ने एन्शियंट वॉटर्स सिस्टम इन इंडिया, डा0 चरन सिंह केदारखंडी ने भारतीय ज्ञान परंपरा में श्री अरविन्द का योगदान, श्री अजीत त्रिपाठी ख्फाउंडर ऑफ हैड्रॉन कलेक्टिव दुबई, पूर्व छात्र -आई आई टी कानपुर, आई एम् डी स्विट्जरलैंड, ने ईस्टर्न वेस्टर्न एप्रोच ऑफ साइन्टिफिक डिस्कवरी पर व्याख्यान दिए।छठे दिवस नरेश शर्माख् महर्षि वाल्मीकि विश्वविद्यालय कैथल, द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा के परिप्रेक्ष्य में सृष्टि आदि से कालगणना पर बेहद महत्वपूर्ण व्याख्यान दिया गया। इस दिवस का अंतिम व्याख्यान प्रसिद्ध संगीतकार एवं श्रुति सरिता के संस्थापक आशीष कुकरेती ने संगीत एवं अध्यात्म के सह संबंध पर दिया।

अतिम दिन बीएचयू के प्रो0 अवधेश प्रधान जी ने विवेकानंद की धर्म दृष्टि, प्रो0 सुज्ञान कुमार मोहंती ख्केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय दिल्ली , ने भारतीय ज्ञान परंपरा में विमानशिल्प् प्रौद्योगिकी एवं प्रसिद्ध रंगमंच, फ़िल्म अभिनेता एवं साहित्यकार अमिताभ श्रीवास्तव ने हिस्ट्री ऑफ मॉडर्न इंडियन् थिएटर एंड इन्फ्लुएन्स ऑफ क्लासिकल ट्रेडिशनल थिएटर ऑन इट पर बेहद सारगर्भित व्याख्यान दिया।

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