जीवन बीमा निगम जगत उपकार कर रही ।मानव जोखिम के भय का उपचार कर रही ।।बीते हैं छासठ साल ,बीमे की बने मिसाल ।योग क्षेम की मशाल ,लिए बीमा वाहिनी ।।जलती रहे ये ज्वाल ,पूजित हो सालों साल ।सुरक्षा की बने ढाल ,मात मोक्ष दायिनी ।।निर्धन लोगों की यह राह सुधार कर रही।जीवन बीमा निगम जगत उपकार कर रही ।।1।।जीवन के साथ भी है ,जीवन के बाद भी है ।बचत प्रसाद भी है ,सत पथ गामिनी ।।
मौत के भय से मुक्ति ,धन जोड़ने की युक्ति।बीमे में बचत सूक्ति ,वैभव की संगिनी ।।राज्यों को ऋण दे कर ये उद्धार कर रही ।
जीवन बीमा निगम जगत उपकार कर रही ।।2।।आपदा में रक्षा करे ,समाज सुरक्षा करे ।दावे भुगतान करे , दुःख से उभारती ।मानस कल्याण करे ,सरकारी कोष भरे ।विकास का काज करे , आर्थिकी सुधारती ।।भारत अर्थ व्यवस्था का शृंगार कर रही ।जीवन बीमा निगम जगत उपकार कर रही ।।3।।अर्थ तंत्र को सुधारे ,वादे पूरे किए सारे ।जन जन ये पुकारे ,जीवन सुधारती ।।
प्रबंधक अधिकारी ,अभिकर्ता कर्मचारी ।कंपनी है सरकारी ,दुनियाँ पुकारती ।।”जन जनमें नव संचार कर रही ।जीवन बीमा निगम जगत उपकार कर रही ।।4।।