विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर पर्यावरण संस्थान द्वारा किया गया प्राकृतिक संसाधनों के सतत् उपयोग से आजीविका विकास संम्वधित तकनीकी हस्तांतरण विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजनविश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर गो.ब. पन्त राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान में हिमालय हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान हेतु स्थानीय निवासियों में जागरूक करने के लिए निरन्तर कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। इसी क्रम में संस्थान के कोसी स्थित ग्रामीण तकनीकी परिसर में गो.ब. पन्त राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान एवं भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं षिक्षा परिषद, देहरादून के संयुक्त प्रयास से हिमालयी क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों के सतत् उपयोग से आजीविका विकास संम्वधित तकनीकी हस्तांतरण विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया।

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कार्यशाला में मुख्य रूप से भीमल एवं पिरूल से रेशा निकालना तथा चीड़ लिग्निल निकालने की लागत प्रभावी तकनीकों पर जानकारी दी गयी। इस कार्यशाला में दोनों संस्थानों के वैज्ञानिक, शोधार्थी, स्वयंसेवी संस्था, महिला हाट के प्रतिनिधि एवं हवालबाग विकासखण्ड के विभिन्न ग्रामों से आये ग्रामीणों ने प्रतिभाग किया। कार्यशाला का शुभारम्भ करते हुए संस्थान के निदेषक प्रो0 सुनील नौटियाल ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि हिमालय क्षेत्र के निवासियों तक विभिन्न संस्थानों के वैज्ञानिकों द्वारा पर्यावरण एवं आजीविका सम्वर्धन के क्षेत्र में किये जा रहे शोध कार्यों का लाभ सरलता से कैसे पहॅुचाया जा सकता है। इसके लिए सभी हितधारकों को मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है।

इस कार्यशाला में उपस्थित भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं षिक्षा परिषद, देहरादून की सहायक महानिदेशक, मीडिया एवं विस्तार प्रभाग निदेशालय डा0 गीता जोशी ने अपने संबोधन में कहा कि अगर वैज्ञानिक तकनीक लागत प्रभावी है तो इसे ग्राम पंचायत स्तर पर कार्यान्वित किया जा सकता है। इस अवसर पर महिला हाट संस्था के सचिव श्रीमती कृष्णा बिष्ट ने हिमालय क्षेत्र में पर्यावरण सम्वर्धन एवं आजीविका विकास के लिए गैर सरकारी संस्थाओं की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया।

कार्यशाला के तकनीकी सत्र का संचालन करते हुए संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 एस0 सी0 आर्य ने द्वारा किया गया, इस अवसर पर उन्होंने संस्थान द्वारा हिमालय क्षेत्र में जैव संसाधनों का समुचित उपयोग कर स्थानीय निवासियों के आजीविका सम्वर्धन वर विषय पर की जा रही शोध कार्यों पर प्रकाश डाला। सत्र के दौरान भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं षिक्षा परिषद, देहरादून के वैज्ञानिक डा0 विनित कुमार द्वारा चीड़ की पत्तियों से रेशा निकालकर इससे विभिन्न उपयोगी उत्पाद जैसे रस्सी, फुटवियर तथा कपड़े, इत्यादि तैयार करने का व्याख्यान दिया। तत्पश्चात भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद, देहरादून के वैज्ञानिक डा0 देवेन्द्र कुमार द्वारा भीमल से रेशा निकालने की वैज्ञानिक पद्धति से जुड़ी जानकारी दी, तकनीकी सत्र के अन्तिम चरण में इसी संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. बी.पी. टम्टा ने चीड़ के पेड़ से प्रभावी तकनीक से रेजिन निकालने का व्याख्यात्मक एवं व्यवहारिक प्रशिक्षण दिया।

इस कार्यशाला में के संस्थान के वैज्ञानिक डा० हर्षित पन्त, डा० शैलजा पुनेठा, संस्थान के प्रशासनिक अधिकारी श्री सजीष कुमार, डा० देवेन्द्र सिंह चौहान, श्री दरबान सिंह बिष्ट, संस्थान के शोधार्थियों तथा स्वयंसेवी संस्था, महिला हाट के प्रतिनिधि एवं हवालबाग विकासखण्ड के विभिन्न ग्रामों से आये ग्रामीणों ने प्रतिभाग किया।

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