(अल्मोडा़ के विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान व भारत में हरित क्रांति के लिये अविस्मरणीय रहेगा योगदान)
विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा0विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा़0पद्म भूषण, प्रथम विश्व खाद्य पुरुस्कार विजेता (जो की कृषि में नोबेल पुरुस्कार के बराबर माना जाता है ) तथा कई अन्य अन्तराष्टीय व राष्ट्रीय व पुरूस्कारों से सम्मानित ए भारत में हरित क्रांति के जनक डॉ एम एस स्वामीनाथन आज दिनांक २८ सितंबर २३ को ९८ वर्ष की उमर में दुनिया को विदा कह गये । इसके साथ ही भारत ने ही नहीं वरन् विश्व ने एक उत्कृष्ट वैज्ञानिक कुशल लीडर कुशल प्रशाशक एक बहुत ही अच्छा नीतिकार और किसानों का हमदर्द खो दिया । यह एक ऐसी क्षति है जिसको भर पाना संभव नहीं है । डॉ स्वामीनाथन का विविकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से विशेष संबंध रहा है ।
जब हरित क्रांति की शुरुवात से पहले नोबेल पुरुस्कार विजेता डॉ नॉरमन ई बोरलाग द्वारा उपलब्ध कराये गये बौने गेहूं के बीजों का परीक्षण , पूसा , लुधियाना, पंत नगर और भवाली में किया जा रहा था तब उनका प्रदर्शन देखने के लिये डॉ स्वामीनाथन एवं रॉकफ़ेलर फाउंडेशन के डॉ ग्लेन एंडरसन ने मार्च १९६४ में भवाली का भ्रमण किया ।
उसके बाद दोनों ने विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के संस्थापक निदेशक प्रॉ बोशी सेन के पास अल्मोडा़ आये । शाम को बोशी सेन ने डॉ ग्लेन को पूछा की क्या वो पूजा में शामिल होना चाहेंगे ।
तो सभी पूजा में शामिल हुए। पूजा की समाप्ति पर बोशी सेन ने एक छोटा सा डब्बा निकाला जपद्म भूषण, प्रथम विश्व खाद्य पुरुस्कार विजेता (जो की कृषि में नोबेल पुरुस्कार के बराबर माना जाता है ) तथा कई अन्य अनारस्त्रीय व रास्ट्रिय पुरूस्कारों से सम्मानित भारत में हरित क्रांति के जनक डॉ एम एस स्वामीनाथन आज दिनांक २८ सितंबर २३ को ९८ वर्ष की उमर में दुनिया को विदा कह गये ।
इसके साथ ही भारत ने ही नहीं वरन् विश्व ने एक उत्कृष्ट वैज्ञानिक कुशल लीडर कुशल प्रशाशक एक बहुत ही अच्छा नीतिकार और किसानों का हमदर्द खो दिया । यह एक ऐसी क्षति है जिसको भर पाना संभव नहीं है । डॉ स्वामीनाथन का विविकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से विशेष संबंध रहा है ।
जब हरित क्रांति की शुरुवात से पहले नोबेल पुरुस्कार विजेता डॉ नॉरमन ई बोरलाग द्वारा उपलब्ध कराये गये बौने गेहूं के बीजों का परीक्षण , पूसा , लुधियाना, पंत नगर और भवाली में किया जा रहा था तब उनका प्रदर्शन देखने के लिये डॉ स्वामीनाथन एवं रॉकफ़ेलर फाउंडेशन के डॉ ग्लेन एंडरसन ने मार्च १९६४ में भवाली का भ्रमण किया । उसके बाद दोनों ने विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के संस्थापक निदेशक प्रॉ बोशी सेन के पास आलमोरा आये ।
शाम को बोशी सेन ने डॉ ग्लेन को पूछा की क्या वो पूजा में शामिल होना चाहेंगे । तो सभी पूजा में शामिल हुए। पूजा की समाप्ति पर बोशी सेन ने एक छोटा सा डब्बा निकाला जिस्माईं स्वामी वेवकानन्द के बाल थे । बोसे सेन ने उन बालों को डॉ स्वामीनाथन और डॉ ग्लेन के सिर पर लगाकर कहा की गेहूं उर्पदान का कार्यक्रम बहुत सफल होगा।
तत्पश्चात् ये कार्यक्रम बहुत सफल होकर हरित क्रांति के नाम से प्रसिद्ध हुआ । डॉ स्वामीनाथन ने लिखा है की गेहूं उत्पादन की सफलता के पीछे का आध्यात्मिक बल इस घटना से उनको मिला था । जुलाई १९६८ में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने गेहूं क्रांति पर एक डाक टिकट जारी किया तो तब डॉ स्वामीनाथन ने प्रो बोशी सेन को लिखा कि अप्रैल १९६४ में इस घटना ने इस क्रांति के पीछे की आधायात्मिक बल प्रदान किया ।
डॉ स्वामीनाथन ने कई बात संस्थान का भ्रमण किया। आख़िरी बार वे 19.09.1991 को विवेकानंद संस्थान में भ्रमण पे आये । तब उन्होंने प्रतिक्रिया देते हुए लिखा की विवेकानंद लेबोरेटरी एक वैज्ञानिक के प्रकृति को समझने और उसको बिना हनी पहुँचाए बिना सामंजस्य बिठाने का जीवित इस्मारक है ।
उल्लेखनीय है कि डॉ स्वामीनाथन के महानिदेशक भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद रहते हुए ही विवेकानंद लेबोरेटरी परिषद के एक संस्थान के रूप में सम्मिलित की गई और उसको विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान शाला नाम दिया गया ।
आज उनके संसार से विदा होने पर समस्त विवेकानंद संस्थान शोकाकुल है । संस्थान के हवालबाग में एक शोक सभा आयोजित करके डॉ स्वामीनाथन को याद किया गया और उनको भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी गई । संस्थान के निदेशक ने डॉ स्वामीनाथन के जीवन तथा संस्थान से उनके विशेष लगाव के बारे में बतलाया । तत्पश्चात् उनके चित्र पर पुष्प चढ़ाकर सभी ने श्रद्धांजलि अर्पित की ।
इस महान आत्मा की याद में दो मिनट का मौन रखकर शोकसभा समेट की गई ।िस्माईं स्वामी वेवकानन्द के बाल थे ।े सेन ने उन बालों को डॉ स्वामीनाथन और डॉ ग्लेन के सिर पर लगाकर कहा की गेहूं उर्पदान का कार्यक्रम बहुत सफल होगा। तत्पश्चात् ये कार्यक्रम बहुत सफल होकर हरित क्रांति के नाम से प्रसिद्ध हुआ । डॉ स्वामीनाथन ने लिखा है की गेहूं उत्पादन की सफलता के पीछे का आध्यात्मिक बल इस घटना से उनको मिला था ।
जुलाई १९६८ में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने गेहूं क्रांति पर एक डाक टिकट जारी किया तो तब डॉ स्वामीनाथन ने प्रो बोशी सेन को लिखा कि अप्रैल १९६४ में इस घटना ने इस क्रांति के पीछे की आधायात्मिक बल प्रदान किया । डॉ स्वामीनाथन ने कई बात संस्थान का भ्रमण किया। आख़िरी बार वे 19.09.1991 को विवेकानंद संस्थान में भ्रमण पे आये ।
तब उन्होंने प्रतिक्रिया देते हुए लिखा की विवेकानंद लेबोरेटरी एक वैज्ञानिक के प्रकृति को समझने और उसको बिना हनी पहुँचाए बिना सामंजस्य बिठाने का जीवित इस्मारक है । उल्लेखनीय है कि डॉ स्वामीनाथन के महानिदेशक भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद रहते हुए ही विवेकानंद लेबोरेटरी परिषद के एक संस्थान के रूप में सम्मिलित की गई और उसको विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान शाला नाम दिया गया ।
आज उनके संसार से विदा होने पर समस्त विवेकानंद संस्थान शोकाकुल है । संस्थान के हवालबाग में एक शोक सभा आयोजित करके डॉ स्वामीनाथन को याद किया गया और उनको भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी गई ।
संस्थान के निदेशक ने डॉ स्वामीनाथन के जीवन तथा संस्थान से उनके विशेष लगाव के बारे में बतलाया । तत्पश्चात् उनके चित्र पर पुष्प चढ़ाकर सभी ने श्रद्धांजलि अर्पित की । इस महान आत्मा की याद में दो मिनट का मौन रखकर शोकसभा समेट की गई ।