एक स्त्री का पूरा जीवनचक्र है नवदुर्गा के नौ स्वरूप।

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  1. 1 जन्म ग्रहण करती हुई कन्या “शैलपुत्री” स्वरूप है।
  2. 2 कौमार्य अवस्था तक “ब्रह्मचारिणी” का रूप है।
  3. 3 विवाह से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने से वह “चंद्रघंटा” समान है।
  4. 4 नए जीव को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने पर वह “कूष्मांडा” स्वरूप में है।
  5. 5 संतान को जन्म देने के बाद वही स्त्री “स्कन्दमाता” हो जाती है।
  6. 6 संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री “कात्यायनी” रूप है।
  7. 7 अपने संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से वह “कालरात्रि” है।
  8. 8 संसार (अर्थात जिसका कुटुंब ही उसके लिए संसार है) का उपकार करने से वह “महागौरी” हो जाती है।
  9. 9 धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार में अपनी संतान को सिद्धि (समस्त सुख-संपदा) का आशीर्वाद देने वाली वह मातृ शक्ति “सिद्धिदात्री” है।

ऐसे सभी मातृ स्वरूपों को मेरा शत शत नमन।

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