“द्वि- दिवसीय भाषा संगोष्ठी -2025″में लगाया भेदभाव आरोप
( दिनांक 7-8सितम्बर2025को संस्कृत अकादमी सभागार दिल्ली में आयोजित गोष्ठी में 21 साहित्यकार गढ़वाल मंडल से, 7 साहित्यकार कुमाऊं मंडल से,2 साहित्यकार जौनसार और हिन्दी साहित्य से सिर्फ एक साहित्यकार को आमंत्रित करने पर उत्पन्न हुआ विवाद)
कला, संस्कृति, एवं भाषा विभाग, दिल्ली सरकार, गढ़वाली, कुमाऊंनी, एवं जौनसारी अकादमी द्वारा आयोजित द्वि- दिवसीय भाषा संगोष्ठी -2025″ भेदभाव आरोप साहित्यकारों ने लगाया है,यह आयोजन,दिनांक7-8सितम्बर2025को संस्कृत अकादमी सभागार दिल्ली में आयोजित किया गया । इस गोष्ठी में 21 साहित्यकार गढ़वाल मंडल से, 7 साहित्यकार कुमाऊं मंडल से,2 साहित्यकार जौनसार और हिन्दी साहित्य से सिर्फ एक साहित्यकार को आमंत्रित करने से भेदभाव का आरोप लगाया गया है।एक समाचार पत्र ने इस समाचार को प्राथमिकता देते हुए प्रकाशित किया। जिसे कुमाऊं के जाने-माने साहित्यकार रतन सिंह किलमोरिया ने उत्तराखंड की साहित्यकारों की जानी-मानी संस्था “छंजर सभा”समूह में अपनी प्रतिक्रिया के साथ पोस्ट किया
“भाषा संगोष्ठी में 7 कुमाउनी भाषा के साहित्यकार और 21 गढ़वाली भाषा के साहित्यकारों का बुलाया जाना बहुत बड़ा असंतुलन है। यह असंतुलन बहुत दुखदाई है जो उत्तराखण्डियों की एकता में विघ्न डालने जैसा है।”
जिस पर मैंने भी अपनी प्रतिक्रिया कुछ यूं पोस्ट की
“😭अति खेद का विषय।
आखिर कब पटेगी यह असंतुलन और उपेक्षा की खाई।”
साहित्यकार गोविंद बल्लभ बहुगुणा ने कुछ यूं कहा
“साब यह करने वाले हमारे ही भैबंद हैं। क्या कहें। उत्तराखंड स्तर पर छोड़िए कुमाऊं में भी हमारे बीच अपनी स्वार्थसिद्धि वाले लोग हैं। ‘ पहर करल कै देइ में भैटाय, सांसै ल्हि गोय बाग ‘ वाले किस्स है रौ। खैर यस लै नि र ओ।”
साहित्यकार डी सी एस कार्की ने अपने विचार व्यक्त कर कहा
“बिल्कुल ठीक कौ दाज्यू । यां दुकानदार लोग बोलि , भाषा , साहित्य और संस्कृतिक ठेक्दार है गईं ।
जो कुमांउनी वां जै राछी…उनूंल अवाज उठूंण चें ।”
यह आयोजन तो हो गया लेकिन साहित्यकारों में एक टीस और भेदभावपूर्ण व्यवहार का एक नया बीज भी बो गया।
उनूंल कै…
‘निमड़ी है चिमड़ियै भल’ 🤪


