*“”*सामाजिक कार्यकर्ता संजय पाण्डे का सरकार और सिस्टम पर तीखा प्रहार,उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल हैं और इसका सबसे बड़ा कारण है – डॉक्टरों की कमी और सरकारी व्यवस्था की असंवेदनशीलता।*सामाजिक कार्यकर्ता संजय पाण्डे ने कहा है कि सरकार की स्वास्थ्य नीति अब ‘घोषणा और फोटो खिंचवाने’ तक सीमित रह गई है।

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सरकार नए मेडिकल कॉलेज खोलने की बात कर रही है, लेकिन पुराने कॉलेजों की हालत यह है कि वहां विशेषज्ञ डॉक्टरों के पद तक स्वीकृत नहीं हैं।

अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज इसका जीवंत उदाहरण है।”राजनीतिक संरक्षण में तबादले – सेवाभाव दम तोड़ रहा हैपाण्डे ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि राजनीतिक या प्रशासनिक पहुंच रखने वाले डॉक्टर पहाड़ में ठहरते ही नहीं।वे समय से पहले ही अपने “संपर्कों” के बल पर तबादले करवा लेते हैं, जबकि आम डॉक्टरों को सुविधाविहीन हालात में झोंक दिया जाता है।उन्होंने सरकार से मांग की कि इन तबादलों की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए और यह सार्वजनिक किया जाए कि कितने डॉक्टर नियमों की अवहेलना कर मैदान में जा बैठे।

*पिथौरागढ़ मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य का बयान बना चेतावनी*देहरादून में हाल ही में हुए इंटरव्यू को लेकर पिथौरागढ़ मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉक्टर अजय आर्या ने स्वयं कहा है कि “किसी भी डॉक्टर ने पहाड़ में सेवा देने की इच्छा नहीं जताई।”यह सिर्फ एक बयान नहीं, पूरे सिस्टम की संवेदनहीनता का आईना है।

*संजय पाण्डे की सरकार से स्पष्ट मांगें:*

1- हर डॉक्टर के लिए पहाड़ में कम से कम 5 साल की सेवा अनिवार्य की जाए।

2- सेवा से इनकार करने या नियम तोड़कर तबादला करवाने वाले डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन निलंबित या रद्द किया जाए।

3- नए मेडिकल कॉलेज खोलने से पहले मौजूदा संस्थानों की दशा सुधारी जाए।

4- राजनीतिक हस्तक्षेप से होने वाले सभी तबादलों की निष्पक्ष जांच हो।

5- सेवाभाव से कार्य करने वाले चिकित्सकों को सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया जाए।

*पहाड़ में सेवा कोई सजा नहीं, यह मानवता का सबसे बड़ा पाठ है।”*“अगर डॉक्टरों में संवेदना नहीं रही, तो उनका ज्ञान और डिग्री समाज के किस काम की?”उन्होंने कहा कि यदि जल्द ही नीतिगत बदलाव नहीं हुए तो पहाड़ों के लोग इलाज के लिए नहीं, केवल “रेफर” होने के लिए अस्पताल जाया करेंगे।

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