–जनवरी से नवम्बर आ गया पर आधार कार्ड नहीं आया.
न रहने को घर, न राशन कार्ड और न पेंशन, कैसे कटेगा बुजुर्ग दिव्यांग का बुढ़ापा
अल्मोड़ा। सरकार ने भले ही गरीबों, वंचितों, असहायों के उत्थान के लिए दर्जनों योजनाएं क्यो न चलाई हों, लेकिन धौलादेवी ब्लॉक के चमुवा खालसा ग्राम पंचायत की 75 वर्षीय बुजुर्ग व दिव्यांग महिला गोपुली देवी इन योजनाओं के लाभ से वंचित है।
यही नहीं मुख्यमंत्री द्वारा जारी किए गए आदेश के बावजूद गोपुली देवी का आधार कार्ड 10 महीने बाद भी नहीं बन पाया है, जिससे उसे न तो राशन मिल रहा है और न ही पेंशन मिल रही है। यही नहीं उसका पुस्तैनी घर भी रहने लायक नहीं है जो पूरी तरह जीर्ण-क्षीर्ण हो चुका है।
मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से दिसम्बर 2023 में जारी किए गए आदेश के बाद 16 जनवरी 2024 को विकासखंड धौलादेवी से एक टीम बायोमेट्रिक मशीन के साथ गोपुली देवी के घर पहुंची तो यही उम्मीद जगी थी कि जल्द ही बुजुर्ग व दिव्यांग महिला को बुढ़ापा पेंशन, राशन समेत सभी सरकारी सुविधाएं मिल पाएंगी। लेकिन आधार कार्ड बनाने की यह प्रक्रिया इतनी लंबी चली कि जनवरी से नवम्बर आ गया पर आधार कार्ड नहीं बन पाया।
अब सवाल यही कि बचपन से दुखों का पहाड़ झेल रही बुुुजुर्ग महिला को सरकार की ओर से कोई मदद मिल भी पाएगी कि नहीं। 28 दिसम्बर 2023 को गोपुली देवी की दयनीय स्थिति को लेकर गांव के लोगों ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को एक पत्र भेजा।
इस पत्र का संज्ञान लेते हुए मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से त्वरित कार्यवाही करते हुए जांच के आदेश दिए गए। इस पर विकासखंड धौलादेवी से प्रशासन की टीम गोपुली देवी के घर पहुंची थी और वस्तुस्थिति का जायजा लिया और पाया कि गोपुली देवी की हालत वाकई काफी दयनीय थी। लेकिन आधार कार्ड नहीं होने की वजह से उसका किसी भी तरह की सरकारी मदद के लिए आवेदन नहीं किया जा सका।
16 जनवरी 2024 को बुुजुर्ग महिला का आधार कार्ड बनाने के लिए विकाखण्ड धौलादेवी से तत्कालीन बीडीओ के नेतृत्व में एक टीम बायोमेट्रिक मशीन के साथ चमुवा गाँव पहुंची और आधार कार्ड बनाने के लिए नामांकन करवाया।
लेकिन 10 महीने बीतने के बावजूद बुजुर्ग महिला का आधार कार्ड नहीं बन पाया। गोपुली देवी को दो वक्त की रोटी भी नहीं मिल पा रही है, इसके लिए उसे लोगों की सहारे अपने बुढ़ापे के दिन काटने पड़ रहे हैं।
असहाय गोपुली देवी का बुढ़ापा बना मुसीबतयों तो गोपुली देवी का दुखों का पहाड़ उसके बचपन में ही खड़ा हो गया। जन्म से ही गोपुली देवी न तो बोल पाती थी और न ही सुन पाती थी। किशोरावस्था तो मॉ-बाप के साथ बीत ही गया, लेकिन मुसीबत तब और बढ़ गई जब मॉ-बाप के देहांत के बाद गोपुली देवी के इकलौते भाई का भी देहांत हो गया।
जीवन का करीब 60-70 साल का सफर तो लोगों के साथ जैसे-तैसे काम करके बीत ही गया लेकिन अब बुढ़ापा कैसे कटे? न वृद्धावस्था पेंशन है, न मुफ्त का राशन है, न बैंक अकाउंट है और न ही रहने को घर है। आधार कार्ड की टकटकी लगाए गोपुली देवी का आधार कार्ड आएगा भी या नहीं, अब यह चिंता भी उसे सताने लगी है। बुजुर्ग महिला गोपुली देवी बोल नहीं पाती, सुन नहीं पाती पर क्या शासन-प्रशासन उसकी सुनेगा यह भी बड़ा सवाल है।