पति – पत्नी के एक दूसरे के प्रति एवं सामूहिक कर्तव्य
वेद पति पत्नीम दोनों के लिए कुछ सामूहिक कर्तव्य निर्धारित करता है । जिन्हें अपनाने से गृहस्थ की गाड़ी बहुत संतुलित होकर चलती है। ऐसे सदगृहस्थी दंपति का अन्य लोग अनुसरण करते हैं ।
कलह कटुता उनके घर से दूर रहते हैं और सर्वत्र शांति का वास होता है । वेद पति – पत्नी से अपेक्षा करता है कि वे दोनों जीवन को कर्मठ बनाने , सत्य भाषण करने , पारस्परिक सौहार्दभाव (समापो हृदयनि नौ) रखने वाले होंगे । वे परस्पर मृदु भाषण कर एक दूसरे का सम्मान करने वाले होंगे । संयमी होकर दूसरों के लिए मिसाल बनने की योग्यता रखते हुए जीवन यापन करेंगे तथा खुले हाथों से दान करने वाले होंगे ।
जिन दंपतियों के भीतर ऐसे गुण मिलते हैं वे जीवन को स्वर्ग बना डालते हैं। अथर्ववेद कहता है कि दोनों के हृदय परस्पर मिले हुए हों, वे दोनों एक-दूसरे का ही चिंतन करें जैसे कोई भक्त अपने भगवान का अनन्य भाव से ध्यान करता है वैसे ही पति पत्नी एक दूसरे के प्रति अनन्य भाव रखने वाले हों । अनन्य भाव की इस पवित्र भावना से उनके ह्रदय में एक दूसरे के प्रति असीम प्रेम भरा रहता है।
इसके अतिरिक्त पति पत्नी दोनों का यह भी पवित्र कर्तव्य है कि वे एक दूसरे की भावना का सम्मान करने वाले हों। एक दूसरे को गहराई से समझने का प्रयास करें और समय आने पर एक दूसरे की रुचि , इच्छा और भावनाओं का सम्मान करने का हरसंभव प्रयास करें ।
इससे संबंधों में मधुरता बनी रहती है और किसी भी स्थिति – परिस्थिति का दोनों मिलकर सफलतापूर्वक सामना करने में भी सफल होते हैं।
अपने ही विचारों की दुनिया में खोए रहना कई पुरुषों का काम होता है तो कई महिलाएं भी इसी प्रकार की प्रवृत्ति को अपनाने वाली होती हैं ।इससे दोनों में अनावश्यक दूरी पैदा होती है। एक दूसरे के प्रति दोनों असहिष्णु बनने का प्रयास करते हैं और धीरे-धीरे उनकी यह प्रवृत्ति न चाहते हुए भी उन्हें टूटन की ओर ले जाती है।
विवाह के उपरांत समाज पति और पत्नी दोनों से जिम्मेदारी पूर्ण व्यवहार करने की अपेक्षा करता है। इसलिए दोनों का यह कर्तव्य बन जाता है कि वह अपने आप को जिम्मेदार और गंभीर जीवनसाथी के रूप में प्रस्तुत करें ।
छोटी-छोटी बातों को तूल देकर अपने संबंधों को तोड़ने की स्थिति तक ले जाना उनकी गंभीरता का परिचायक न होकर उनके बचपने और लड़कपन का प्रतीक है । जिससे उन्हें बचना चाहिए । समाज ने जब उन्हें विवाह सूत्र में बंधते हुए देखा था तो अपनी साक्षी और अपनी गरिमामय उपस्थिति इसलिए प्रकट की थी कि अब तुम गुड्डे गुड़िया नहीं रह गए हो , बल्कि अब तुम जिम्मेदार और गंभीर मनुष्य बन चुके हो । गुड्डे गुड़ियों के खेल में या उनके विवाह में कभी ना तो बारात जाती है और ना कभी समाज के जिम्मेदार गंभीर लोगों की उपस्थिति ही हो पाती है। जिम्मेदार , गंभीर और समझदार लोग युवाओं की परिपक्व अवस्था में होने वाले विवाह समारोहों में ही सम्मिलित होते हैं।
इसका कारण यही है कि वे नवदंपति को आज से पति-पत्नी का प्रमाण पत्र दे रहे हैं । उन्हें उस गंभीर जिम्मेदारी को निभाने के लिए अपना आशीर्वाद दे रहे हैं , जिससे यह संसार गतिशील बना रहता है।
युवावस्था में परिपक्वता आ जाना इसलिए भी आवश्यक और अपेक्षित है कि प्रत्येक युवक और युवती विवाह के उपरांत अपने जीवनसाथी को परिपक्व रूप में ही देखना चाहते हैं । यदि विवाह के उपरांत इन दोनों में से कोई एक अपरिपक्वता का परिचय देने वाला होता है तो इससे गृहस्थ की गाड़ी सफलतापूर्वक आगे बढ़ नहीं पाती है।
अपनी परिपक्वता का परिचय देने के लिए पति पत्नी को समय-समय पर एक दूसरे की प्रशंसा करने से भी नहीं चूक ना चाहिए । क्योंकि संसार के प्रत्येक व्यक्ति की यह दुर्बलता होती है कि वह दूसरों से अपनी प्रशंसा सुनना ही चाहता है । जहां पति और पत्नी दोनों एक साथ रहते हैं यदि वहां वे एक दूसरे की प्रशंसा करने में कंजूसी करते हैं या चूक कर जाते हैं तो इससे भी संबंधों में ठहराव आने लगता है।
इसलिए संबंधों को गतिशील और प्रेमपूर्ण बनाए रखने के लिए इस बात का सदा ध्यान रखें कि जब भी कोई उचित अवसर आए तो वे एक दूसरे की प्रशंसा अवश्य कर दें । विवाह के उपरांत पति पत्नी से सारा समाज अपेक्षा करता है कि वे दोनों गंभीरता का परिचय देंगे।अतः समाज की इस अपेक्षा पर खरा उतरना भी उन दोनों का कर्तव्य है।
अच्छे गुणों का विकास करने के लिए आवश्यक है कि सदग्रंथों का अध्ययन करने की रुचि पति और पत्नी दोनों में ही होनी चाहिए । उनके भीतर धार्मिक संस्कार हों और ईश्वर भक्ति उनमें कूट कूटकर भरी हो। ईश्वर के प्रति आस्था और धर्म ग्रंथों के प्रति श्रद्धा के भाव से वह दुर्गुणों से बचे रहते हैं। इन दोनों गुणों से उनके भीतर असीम धैर्य विकसित होता है जिससे एक दूसरे के प्रति झुंझलाहट जब कड़वाहट उन्हें छू तक भी नहीं जाती है। ईश्वर के प्रति आस्था और श्रद्धा ग्रंथों के प्रति श्रद्धा भाव से अपनी जिम्मेदारियों का गंभीरता से निर्वाह करने वाले बन जाते हैं । एक दूसरे को समझने की उनकी शक्ति का विकास होता है ।
बच्चों के प्रति दोनों अपने – अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने वाले बनते हैं । साथ ही परिवार के अन्य सदस्यों के प्रति भी अपनी जिम्मेदारियों को समझते हैं । धार्मिक और अनुशासित होते हैं।जहां पत्नी का यह कर्त्तव्य है कि वह पति के पिता एवं परिवार के अन्य सदस्यों का आदर करे तथा उनकी सुविधा का ध्यान रखे , वहीं उसके लिए यह भी आवश्यक है कि वह कभी भी अपने पीहर में ससुराल वालों की निंदा या बुराई न करे।
कभी भी पति के प्रति कटु, तीखे एवं व्यंग्यात्मक शब्दों का प्रयोग न करें। इस बात का ध्यान रखे कि तलवार का घाव भर जाता है, पर बात का नहीं भरता है ।एक आदर्श पत्नी का यह भी कर्त्तव्य है कि पति के सामने कभी भी ऐसी मांग न रखे जो पति की सामर्थ्य के बाहर हो।
पैसे का अपव्यय न करे। पति से परामर्श करके ही संतुलित एवं आय के अनुसार ही व्यय की व्यवस्था करे। पति के साथ अपने सम्बन्ध को पैसे का आधार नहीं बनाकर सहयोग की भावना से गृहस्थी चलानी चाहिये।
कभी – कभी छोटी – छोटी बातें भी वैवाहिक जीवन में आग लगा देती हैं, हरे – भरे गृहस्थ जीवन को वीरान बना देती हैं। आपसी सामंजस्य, एक दूसरे को समझना, किसी के बहकावे में न आना, अपितु अपनी बुद्धि से काम लेना ही वैवाहिक जीवन को सुन्दर, प्रेममय व महान बनाता है। अपने किसी भी मामले को लेकर एक दूसरे के खिलाफ पंच पंचायत ना करें और ना ही कोर्ट कचहरी में जाकर किसी प्रकार का केस डालने का प्रयास करें ।
पुलिस थाने में जाकर भी एक दूसरे का अपमान करने से बचें। समय के अनुसार ‘सब सामान्य’ होने की प्रतीक्षा करें । धैर्य और विवेक का परिचय देते हुए अपने बच्चों के भविष्य का ध्यान रखकर एक दूसरे के साथ अच्छा सामंजस बनाकर चलने के लिए सदा प्रयास करते रहें ।अन्यथा दुनिया और यह समाज,,, पति-पत्नि दोनो को लड़ाकर आनंद उठाने को तैयार बैठा है,,चाहे घर तबाह हो जाए,चाहे बच्चे मिट जाए, इससे किसी को कोई दर्द नहीं होता,,बल्कि लोग तो पति-पत्नि की लड़ाई में सिर्फ मजा ढूँढ़ते है।इसलिए सतर्क रहें, सजग रहें, एक रहें,साथ साथ जियें। (सबका साथ,सबका सम्मान)