नैनीताल। गिर्दा स्मृति मंच की ओर से इस वर्ष भी गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ की याद में 14वां गिर्दा स्मृति समारोह होगा। इसके तहत गुरुवार शाम चार बजे क्रांति चौक तल्लीताल से जनगीत गाते हुए जुलूस निकाला जाएगा जो मल्लीताल सीआरएसटी विद्यालय पहुंचकर संपन्न होगा। वहां गिर्दा स्मृति मंच, युगमंच नैनीताल, ताल साधना अकादमी नैनीताल और भारतीय शहीद सैनिक स्कूल की ओर से कार्यक्रम होंगे। उनकी पत्नी हेमलता तिवाड़ी और पुत्र तुहीनांशु तिवाड़ी ने लोगों से आयोजन में भागीदारी की अपील की है।
22 अगस्त 2010 को संसार से विदा हो गए थे गिर्दा
उत्तराखंड राज्य आंदोलन, नशा नहीं रोजगार दो, वन बचाओ आंदोलन समेत विभिन्न आंदोलन में अपने जनगीतों से जान फूंकने वाले जनकवि गिरीश तिवारी गिर्दा भले ही 22 अगस्त 2010 को संसार से विदा हो गए हों लेकिन उनके गीत आज भी जन आंदोलन समेत न्याय की पुकार के लिए होने वाले आंदोलनों को धार देते हैं। 10 सितंबर 1945 को अल्मोड़ा जिले के हवालबाग के ज्योली गांव में जन्मे गिर्दा की कर्मभूमि नैनीताल रही। उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान गिर्दा ने विभिन्न स्थानों पर जनगीत से अलग राज्य की अलख जगाई। यहां क्रांति चौक पर होने वाले सांध्य भाषणों में गिर्दा की भूमिका विशेष रहती थी।
हाथ में हुड़की और उस पर थाप देते गिर्दा ने उत्तराखंड आंदोलन को अपने जनगीतों से धार दी। लखनऊ की सड़कों पर रिक्शा खींचने वाले गिर्दा गीत एवं नाट्य प्रभाग में भी रहे।बाद में कुमाऊंनी में जनगीतों की रचना से जनकवि के रूप में प्रसिद्ध हुए। 22 अगस्त 2010 को गिर्दा ने संसार से विदा ली।
मैसन हुं घर कुड़ि हो, भैंसन हूं खाल, गोरु बाछन हूं गोचर को चिड़ा पोथन हूं डाल.. गीत से गिर्दा ने मनुष्य के साथ ही पशु-पक्षियों के आवास की भी चिंता की। नदी समंदर लूट रहे हो गंगा-जमुना की छाती पर कंकड़ पत्थर कूट रहो… गीत से उन्होंने अवैध खनन का विरोध किया। उन्होंने अपने गीतों से आशा व्यक्त की कि एक दिन दुनिया में अच्छे दिन भी आएंगे जिसे उन्होंने ओ जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनि मां… गीत में पिरोया।