(आगामी १५जनवरी को उत्तरायणी के पावन मौके पर राष्ट्रीय आंदोलन की तर्ज पर कूली बेगार प्रथा के दस्तावेज की तरह स्थायी निवास सरयू में बहाये जायेंगे, अधिक से अधिक जनभागीदारी की अपील)।

Advertisement

उत्तराखंड में मूल निवास व भू कानून‌ की जंग अब राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन की तर्ज लेती जा रही है, अंग्रेजी हुकूमत में पहाड़ों में कूली बेगार प्रथा को समाप्त करने के लिए बागेश्वर सरयू किनारे आंदोलन पंं‌० गोबिंद बल्लम पंत, बद्री दत्त पांडे, हरगोबिंद पंत आदि राष्ट्रीय नेताओं के नेतृत्व में कूली बेगार प्रथा के दस्तावेज जलाये गये, नायक प्रथा का विरोध आदि आदि गुलामी में किये गये आजादी के बाद भी सरकार किसी की भी रही हो, आंदोलन की शुरुआत उत्तराखंड के नेताओं ने उत्तराखंड के प्रसिद्ध पर्व उत्तरायणी के मौके पर बागेश्वर के सरयू नदी के तट से की।

आज मूल निवास भू कानून भी उत्तराखंड का एक आंदोलन का हिस्सा बनता जा रहा है । अनेक संगठनों ने बगावत का बिगुल बजा दिया है अलग अलग तरीकों से आंदोलन का अल्टिमेटम दिया जा रहा है।मूल निवास – भू कानून समन्वय संघर्ष समिति उत्तराखंड ने सरकार को चेतावनी देने के लिए अपनी मांग पूरी कराने के लिये मूल निवासी को जो वर्ष १९५० से उत्तराखंड का मूल निवासी को उत्तराखंडी मूल निवास प्रमाण पत्र जारी करने व स्थायी निवास ‌प्रमाण पत्र को समाप्त करने व बाहरी व्यक्तियों को जमीन‌ खरीद से रोकने के सरकार सख्त कानून बनाये के लिए एक जूट हो १५ जनवरी को बागेश्वर सरयू नदी के तट पर एकत्रित होने की अपील की है, तथा स्थायी निवास प्रमाण पत्र व्यवस्था समाप्त करने ‌के लिए स्थायी निवास प्रमाण पत्र को सरयू में बहाने के कार्यक्रम में सहयोग की अपील की।

Advertisement
Ad Ad Ad
Advertisement
Advertisement
Advertisement