बड़े सौभाग्य की बात है कि सबसे दूरस्थ क्षेत्र में हाशिए पर रहने वाले लोगों के जीवन को बदलने वाले, वर्षों तक लगातार NFLT उग्रवादी संगठन से खतरों के बीच भी निरंतर कार्यशील रहने वाले शांति काली आश्रम, अमरपुर, त्रिपुरा के परम पूज्य स्वामी चितरंजन महाराज जी की जानकारी प्राप्त करने आशीर्वाद मिला।
स्वामी चितरंजन महाराज जी धर्मांतरण की राह में चट्टान की तरह खड़े हैं, साथ ही बीते कई दशकों से त्रिपुरा के सुदूर और आदिवासी इलाकों में स्वामी चितरंजन महाराज जी आदिवासियों के कल्याण, सामाजिक उत्थान, शिक्षा, स्वास्थ्य और जैविक कृषि, टेलरिंग, कौशल विकास जैसे अनेक कार्य कर रहे हैं।
स्वामी चितरंजन देबबर्मा महाराज जी एक संन्यासी हैं और लंबे समय से त्रिपुरा के शान्तिकाली आश्रम से जुड़े हैं। 22 जनवरी 1962 को बारकथाल (त्रिपुरा) में जन्मे देबबर्मा ने अपनी औपचारिक शिक्षा के बाद पंचायत सचिव के रूप में सेवा में प्रवेश किया, पंचायत सचिव रहते हुए उन्हें एक यात्रा में स्वामी काली जी से मिलने का मौका मिला और उनके जीवन सिद्धांतों से प्रभावित होकर वे उनके शिष्य बन गए। उग्रवादियों द्वारा गुरु स्वामी काली जी महाराज की हत्या कर दी गई, क्योंकि उनके कारण हिंदुओं के धर्मांतरण में सफलता नहीं मिल रही थी।
गुरु की हत्या के बाद स्वामी चितरंजन उनके अधूरे कार्यों को पूरा करने में जुटे और आश्रम का कार्य संभाला। अब तक स्वामी चितरंजन महाराज जी तकरीबन 1 लाख से ज्यादा लोगों की घर वापसी कराकर धर्मांतरण गैंग वालों के लिए चुनौती बन गए हैं
आज स्वामी चितरंजन महाराज जी त्रिपुरा में 26 आश्रमों का संचालन करते हैं, जहां हजारों गरीब आदिवासी बच्चों की देखभाल होती है, उन्हें शिक्षा-दीक्षा देकर आत्मनिर्भर बनाया जाता है।
आश्रमों के जरिये आदिवासी इलाकों में शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे सेवा कार्य चल रहे।स्वामी चितरंजन महाराज जी ने आदिवासी अंचलों में वंचित वर्ग के जीवन में बदलाव की नयी पहल की है। स्वामी चितरंजन देबबर्मा ने अपना पूरा जीवन समाज के लिए समर्पित करने के लिए अपना परिवार छोड़ दिया, कोविड-19 के महामारी के कठिन दौर में मानवता के उनके अमूल्य कार्य किसी के लिए भी प्रेरणा का स्त्रोत हैं, उल्लेखनीय है कि स्वामी जी से कुछ ही लोगों को प्रत्यक्ष दर्शन का सौभाग्य मिलता है। सोशियल मिडिया से कुछ जानकारी अशीष स्वरूप प्राप्त हुयी,जिसे आपसे भी साझा कर रहा हूं।