( तफ़ज़्जुल खा़न ने समर्पित की पुस्तक स्व नवीन वर्मा “नवीन बंजारा” जाने माने साहित्यकार को, पत्नी इंद्रा वर्मा ने साधुवाद के साथ प्रयासों की सराहना की)
हुक्का क्लब अल्मोड़ा में तफ़ज़्ज़ुल ख़ान की पुस्तक ‘प्रकृति की सुनो’ का विमोचन काव्य गोष्टी के साथ किया गया।यह पुस्तक जाने माने साहित्यकार नवीन “बंजारा”को समर्पित की गयी है।कार्यक्रम का आरंभ पुस्तक ‘प्रकृति की सुनो’ के परिचय के साथ हुआ। ‘प्रकृति की सुनो’ की समीक्षा डॉ. महेंद्र सिंह मेहरा ‘मधु’ ने विस्तार से प्रस्तुत की। उन्होंने पुस्तक के साहित्यिक महत्व और प्रकृति के प्रति लेखक के दृष्टिकोण की सराहना की।रचनाकार तफ़ज़्ज़ुल ख़ान द्वारा अपनी पुस्तक उन्होंने के बारे में बताया कि यह पुस्तक प्रकृति के प्रति उनके गहरे अवलोकन और अनुभव का परिणाम है।
ख़ान साहब ने इस बात पर ज़ोर दिया कि हम सभी को अपने चारों ओर व्याप्त प्रकृति, जैसे पेड़-पौधों, नदियों और जंगलों को महसूस करना चाहिए और उनसे एक गहरा जुड़ाव स्थापित करना चाहिए।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. हयात सिंह रावत ने तफ़ज़्ज़ुल ख़ान को अल्मोड़ा की प्रतिष्ठित कवियों की श्रंखला में एक महत्वपूर्ण नाम बताते हुए उनकी पुस्तक के विमोचन पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने कवि नवीन बंजारा जी स्मृति को ताजाकिया और उनके लेखन एवं कला को स्मरण किया।
सभा की अध्यक्षता कर रहे रंगकर्मी वरिष्ठ पत्रकार नवीन बिष्ट नेअपने संबोधन में तफ़ज़्ज़ुल ख़ान को निरंतर लेखन के लिए शुभकामनाएँ दीं और इस सुंदर कार्यक्रम के आयोजन के लिए उपस्थित सभी लोगों का आभार व्यक्त किया।
कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. महेंद्र मेहरा ‘मधु’ ने किया।
कवि गोष्टी के दौरान, कवियों ने अपनी उत्कृष्ट रचनाएँ प्रस्तुत कीं:
• श्री कंचन तिवारी: रिमझिम रिमझिम वर्षा लगी, सावन बूँदो चम-चम।
कमला बिष्ट: जिस रास्ते पर होता है प्रीत दिन मेरा आना-जाना, उस रास्ते के ठीक किनारे किलमोरी की एक झाड़ी है।
इस मौके पर नवीन वर्मा “नवीन बंजारा”की पत्नी इन्द्रा वर्मा तफज्जुल खां ने अपनी पुस्तक नवीन बंजारा जी को समर्पित की है को अपने परिवार के गौरवशाली समय बताते हुए सभा में उपस्थित इंद्रा वर्मा जी में तफज्जुल खां कोशुभकामनाएं दी। काव्य गोष्ठी को अग्रसर करते हुए विपिन चंद कोमल: चंद्रयान हो विश्व में, भारत का नाम हो, हर ज़ुबान पर भारत का नाम हो।
डॉ. महेंद्र मेहरा ‘मधु’: गम है, यूँ बर्दाश्त न होंगे नहीं, चलें कोई ग़ज़ल गुनगुनाएँ। मशीनों से ताल्लुक़ात का दौर है, मधु, चलें कोई ग़ज़ल गुनगुनाएँ।
के काव्य पाठ के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ




















