हमारे पहाड़ में घुघुतिया का त्यौहार बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। कुमाऊँ में घुघुते बना कर कौवों को बुलाया जाता है। सुनने में थोड़ा अजीब लग रहा है पर यही सत्य है। कुछ लोग बताते हैं कि पुराने समय में एक राजा हुआ करता था जिसके मंत्री का नाम घुघुतिया था। वह राजा का बहुत करीबी व प्रिय था। राजा बिना उसकी सहमति के कोई भी कार्य करना पसंद नहीं करता था। पर उनको यह पता नहीं था कि घुघुतिया उनका दोस्त नहीं दुश्मन था। वह राजा को मार कर उनका साम्राज्य हड़पना चाहता था। परन्तु राजा के कौवे ने ऐसे होने न दिया और राजा को विस्तार पूर्वक सारी बातें बता दी। पहले तो राजा को विश्वास नहीं हुआ पर सत्य का पता चलते ही उन्होंने उस मंत्री को बंदी बना लिया। और सभी को आज्ञा दी कि कौवे के लिए मिठाइयां बनाई जाएँ तथा उसकी खूब खातिरदारी की जाऐ। बताया जाता है कि उसने राजा की जान बचाई तो राजा ने इनाम के रूप में इस दिन को हर साल एक पर्व के रूप में मनाया।

कुछ लोगो का मानना है कि यह बात उस समय की है जब कुमाऊ में चन्द्र वंश के राजा राज करते थे। राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी। उसका कोई उत्तराधिकारी भी नहीं था। उसका मंत्री सोचता था कि राजा के बाद राज्य मुझे ही मिलेगा। एक बार राजा कल्याण चंद सपत्नी एक मन्दिर में गए और अपनी औलाद के लिए प्रार्थना की। ईश्वर की कृपा से उनका एक बेटा हो गया जिसका नाम निर्भय चंद पड़ा। निर्भय को उसकी माँ प्यार से घुघुति के नाम से बुलाया करती थी। घुघुति के गले में एक मोती की माला थी जिस में घुगरु लगे हुए थे। इस माला को पहन कर घुघुति बहुत खुश रहता था। जब वह किसी बात पर जिद्द करता तो उसकी माँ उस से कहती कि जिद्द ना कर नहीं तो में माला कौवे को दे दूंगी। उसको डराने के लिए कहती कि “काले कौवा काले घुघुति माला खाले” यह सुन कर कई बार कौवा आ जाता जिसको देखकर घुघुति जिद्द छोड़ देता। जब माँ के बुलाने पर कौवे आजाते तो वह उनको कोई चीज खाने को दे देती| धीरे धीरे घुघुति की कौवों के साथ दोस्ती हो गई। उधर मंत्री जो राज पाट की उमीद लगाए बैठा था घुघुति को मारने की सोचने लगा ताकि उसी को राजगद्दी मिले। मंत्री ने अपने कुछ साथियों के साथ मिल कर षड्यंत्र रचा। एक दिन जब घुघुति खेल रहा था वह उसे चुप-चाप उठा कर ले गया। जब वह घुघुति को जंगल की ओर ले के जा रहा था तो एक कौवे ने उसे देख लिया और जोर जोर से काँव काँव करने लगा। उस की आवाज सुनकर घुघुति जोर जोर से रोने लगा और अपनी माला को उतार कर दिखाने लगा। इतने में सभी कौवे इकठे हो गए और मंत्री और उसके साथियों पर मडराने लगे। एक कौवा घुघुति के हाथ से माला झपट कर ले गया। सभी कौवों ने एक साथ मंत्री और उसके साथियों पर अपने चौंच और पंजों से हमला बोल दिया। मंत्री और उसके साथी घबरा कर वहां से भाग खड़े हुए। घुघुति जंगल में अकेला रह गया और एक पेड़ के नीचे बैठ गया सभी कौवे भी उसी पेड़ में बैठ गए जो कौवा हार लेकर गया था वह सीधे महल में जाकर एक पेड़ पर माला टांग कर जोर जोर से बोलने लगा। जब लोगों की नज़रे उस पर पड़ी तो उसने घुघुति की माला घुघुति की माँ के सामने डाल दी। माला सभी ने पहचान ली और इसके बाद कौवा एक डाल से दूसरे डाल में उड़ने लगा। सब ने अनुमान लगाया कि कौवा घुघुति के बारे में कुछ जानता है। राजा और उसके घुडसवार कौवे के पीछे लग गए। कौवा आगे आगे घुड़सवार पीछे पीछे कुछ दूर जाकर कौवा एक पेड़ पर बैठ गया। राजा ने देखा कि पेड़ के नीचे उसका बेटा सोया हुआ है। उसने बेटे को उठाया, गले से लगाया और घर को लौट आया। घर लौटने पर जैसे घुघुति की माँ के प्राण लौट आए। माँ ने घुघुति की माला दिखा कर कहा कि आज यह माला नहीं होती तो घुघुति जिन्दा नहीं रहता। राजाने मंत्री और उसके साथियों को मृत्यु दंड दे दिया। घुघुति के मिल जाने पर माँ ने बहुत सारे पकवान बनाए और घुघुति से कहा कि ये पकवान अपने दोस्त कौवों को बुलाकर खिला दे। घुघुति ने कौवों को बुलाकर खाना खिलाया। यह बात धीरे धीरे सारे कुमाऊ में फैल गई और इसने बच्चों के त्यौहार का रूप ले लिया। तब से हर साल इस दिन धूम धाम से इस त्यौहार को मनाते हैं।

कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इस दिन कौवों के रूप में हमारे पूर्वज आते हैं पर कुछ लोग कहते हैं कि घुघुतिया नाम की एक चिड़िया थी। जितने मुँह उतनी बातें। अब कहानी जो कुछ भी रही हो इसके पीछे पर सच कहूँ तो यह त्यौहार हमारे पहाड़ की शान है। इस दिन शाम को घुगुते बनाये जाते हैं। मीठे आटे से बने इन घुघुतों को कई आकार दिए जाते हैं जैसे ढाल, तलवार, दाड़िम का फूल, डमरू, खजूर इत्यादि।

फिर इनको एक धागे में पिरो कर इनकी माला बनाई जाती है जिसे दूसरे दिन बच्चे अपने गले में पहन कर ज़ोर-ज़ोर से कौओं को बुलाते हैं और कहते हैं ———

काले कौवा काले घुघुति माला खा ले’ ।

‘लै कौवा भात में कै दे सुनक थात’।’

लै कौवा लगड़ में कै दे भैबनों दगड़’ ।’

लै कौवा बौड़ मेंकै दे सुनौक घ्वड़’ ।

अर्थात इसमें कौवों को बुलाकर उनसे प्राथना की जाती है कि हमने जो कुछ भी उनके लिए बनाया है उसे वह स्वीकार करें। यदि उसदिन कौआ बाहर रखे गए पत्तल से कुछ खा लेता है तो उसे बहुत ही शुभ माना जाता है।वह अलग बात है कि साल का यह एक अकेला ऐसा दिन होता है जिसमेँ कौओं का इतना आदर सत्कार किया जाता है। उसदिन उसकी आवाज़ कोयल से भी मीठी लगती है। 🙂 इस दिन के लिए भी एक कहावत है- “काले कौआ काले घुघुित माला खाले॥ ले कौआ मिचुलो भोल बटी आले तेर गल थेचुलो ” अर्थात कल से अगर तू आया तो तेरी ख़ैर नही।

उत्तराखंड में कुछ परिवार ऐसे भी हैं जो इस पर्व को मनाते तो हैं पर घुघुते नहीं बनाते। सुनने में थोड़ा अजीब लग रहा है पर उनका मानना है कि उत्तराखंड में घुघुती नाम की चिड़िया पाई जाती है और वह लोग मांस नहीं खाते क्योंकि ब्राह्मण हैं, तो माला में सजे उस चिड़िया के आकर के बने घुघुते कैसे खा सकते हैं। मैं तो यह सोच रही हूँ कि यहाँ बच्चे गले में “बिना” घुघुति कि माला पहन कर क्या बोलते होंगे?? शायद यह कि काले कौआ काले “बिना” घुघुति की माला खाले।

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