सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय परिसर अल्मोड़ा के शिक्षक डाक्टर ललित योगी ने कविता के माध्यम से पहाड़ की दशा व दिशा का चित्रण किया है।*

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जिंदगी की दौड़*

न जाने क्यों भाग रहे हैं हम!

सड़कों पर भागती हुई गाड़ियों की तरहतेज घूमते हुए चक्के से हम,

घिस रहे हैं खुद को टायर की तरह।।

न जाने हमें क्या चाहिए अब?

पहले रोटी के लिए भागते थे

और अब जमीन-जायदाद के लिए

बस भाग रहे हैं हम यूं ही…

सड़कों पर भागती हुई गाड़ी भी

एकदिन कभाड़घर जा पहुँचती है

उन्हें गलाकर बनाये जाते हैं

-नए दूसरे उत्पाद

और दूसरी तरफ जिंदगी की दौड़ में

इंसान हो जाता है-बूढ़ा,बेवस और लाचार

विदा होता है-बूढ़ी देह छोड़कर,

और उसके जीर्ण देह से

कोई दूसरे उत्पाद नहीं बनाए जाएंगे।

हमें नहीं मालूम कि जाना कहां है?

किस देश जन्मना है

किस मुलूक पहुँचना है

फिर भी भागे जा रहे हैं

हम हर इंसान को पहले चाहिए-

जमीन,सोना, दुमंजला मकान

पर उन्हें नहीं चाहिए-

शुकून की दो वक्त की रोटी।

बस भागे जा रहे हैं हम…… डॉ.ललित ‘योगी’

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