( जल संरक्षण हेतु, तथा जलवायु परिवर्तन व संरक्षण चुनौतियों पर धरातल में जन सहयोग व सहभागिता की आवश्यकता। प्रोफेसर एस पी एस बिष्ट कुलपति सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अलमोडा़, कार्यक्रम अतिविशिष्ट अतिथि)
गोविन्द बल्लभ पन्त राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान‚ कोसी-कटारमल‚ अल्मोड़ा तथा अंतर्राष्ट्रीय एकीकृत पर्वतीय विकास केंद्र (इसीमोड), काठमांडू, नेपाल के संयुक्त तत्वाधान में भारतीय हिमालयी क्षेत्र में स्प्रिंग शेड प्रबंधन का आर्थिक मूल्यांकन: जलवायु की बहाली और लचीलेपन को बढ़ाने के लिए प्रभावशीलता का आकलन विषय पर दो दिवसीय परामर्श कार्यशाला का शुभारम्भ हुआ.
कार्यक्रम का शुभारभ करते हुए संस्थान के निदेशक प्रो० सुनील नौटियाल ने कार्यशाला में उपस्थित सभी प्रतिभागियों एवं विषय विशेषज्ञों का स्वागत किया तथा उनकी इस कार्यशाला में सहभागिता हेतु आभार व्यक्त किया. उन्होंने कार्यशाला के मुख्य अतिथि डॉ. लक्ष्मीकांत, निदेशक, विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा, कार्यशाला के विशिष्ठ अतिथि प्रो. सतपाल सिंह बिष्ट, कुलपति, एस.एस.जे. विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा एवं डा० एस.एस. सामंत, पूर्व निदेशक, हिमालयी वन अनुशंधान संस्थान, शिमला तथा कार्यशाला के सम्मानीय अतिथि श्री प्रकाश जोशी, पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष, अल्मोड़ा को पुष्प गुच्छ प्रदान कर सम्मानित किया।
स्वागत संबोधन में प्रो० सुनील नौटियाल ने संस्थान तथा इसकी क्षेत्रीय इकाइयों द्वारा हिमालयी क्षेत्रों में विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों पर किये जा रहे शोध व विकासात्मक कार्यो और हितधारकों द्वारा इनसे लिये जा रहे लाभों से अवगत कराया। उन्होंने पर्यावरण संस्थान तथा इसीमोड, काठमांडू के मध्य वर्षों से चली आ रही सहभागिता के बारे में बताया और कहा कि दोनों संस्थान हिमालयी क्षेत्रों में परस्पर मिल कर कार्य करते आ रहे हैं. उन्होंने कहा कि संस्थान का मुख्य उद्देश्य भारतीय हिमालयी क्षेत्र में पारिस्थितिक और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना है। उन्होंने संस्थान में चल रहे स्प्रिंग शेड प्रबंधन, समाज का सांस्कृतिक, सामाजिक एवं पारिस्थितिक दृष्टिकोण कार्यक्रमों से सभी को अवगत कराया. उन्होंने कहा कि संस्थान द्वारा जैव विविधता संरक्षण, सामाजिक एवं आर्थिक विकास, जलवायु परिवर्तन तथा जल जमीन संसाधनों के प्रबंधन के क्षेत्र में समन्वित प्रयास किया जा रहा है।
प्रो० नौटियाल ने संस्थान दवारा भारतीय हिमालयी क्षेत्रों में जलस्रोतों के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु किये जा रहे विभिन्न कार्यों से सभी को अवगत कराया तथा संस्थान द्वारा भारतीय हिमालयी क्षेत्रों में संकलित किये गए लगभग 7000 जल स्रोतों की सूची से भी अवगत कराया.
इसके पश्चात अंतर्राष्ट्रीय एकीकृत पर्वतीय विकास केंद्र (इसीमोड), काठमांडू, नेपाल के प्रतिनिधि डॉ. संजीव बचर ने पर्यावरण संस्थान तथा इसीमोड द्वारा चलाये जा रहे संयुक्त कार्यक्रम “हिमालयन रेसेलेंस इन्हानसिंग एक्शन प्रोग्राम” (एच.आई.आर.ई.ए.पी.) के बारे में पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से जानकारी साझा की. उन्होंने कहा कि इस कार्यशाला के माध्यम से हितधारकों को समाज के आर्थिक मुद्दों को समझने में सहायता मिलगी. उन्होंने विज्ञान आधारित ज्ञान का विस्तार, प्रकृति आधारित उपाय, क्षमता विकास, वायु गुणवत्ता, लैंगिक समानता तथा स्प्रिंग शेड प्रबंधन पर संयुक्त रूप से और कार्य करने की आवश्यकता पर बल दिया. इस हेतु उन्होंने हिन्दू कुश हिमालया में नेपाल, भूटान, बाग्लादेश के मध्य पारस्परिक सहयोग की बात कही.
संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. आई.डी. भट्ट ने दो दिवसीय इस कार्यशाला की रूपरेखा से सभी प्रतिभागियों को अवगत कराया. उन्होंने कहा कि भारतीय हिमालयी क्षेत्र में जल सुरक्षा का विषय अति महत्वपूर्ण है तथा इस दिशा में कार्य करने की नितांत आवश्यकता है. उन्होंने पर्यावरण संस्थान तथा इसीमोड द्वारा चलाये जा रहे संयुक्त कार्यक्रम के लक्ष्य और उदेश्यों के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम के माध्यम से जल स्रोतों के संरक्षण एवं संवर्धन, जल सुरक्षा तथा कंसोर्टियम आधारित दृष्टिकोण और ज्ञान नेटवर्किंग के माध्यम से ज्ञान साझेदारी को बढ़ावा देने हेतु महत्वपूर्ण बताया. उन्होंने अवगत कराया कि इस कार्यशाला राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न संस्थानों के 30 प्रतिभागियों द्वारा प्रतिभाग किया जा रहा है।
कार्यशाला के विशिष्ठ अतिथि डा० एस.एस. सामंत, पूर्व निदेशक, हिमालयी वन अनुशंधान संस्थान, शिमला ने कहा कि जल स्रोतों का संरक्षण उनके आसपास की वनस्पतियों के संरक्षण से ही संभव है. अतः हमें जैव विविधता के संतुलन का ध्यान रखते हुए जल स्रोतों का संरक्षण हेतु कार्य करने की आवश्यकता है. उन्होंने जलागम प्रबंधन, जल स्रोतों का पुनर्जीवन एवं प्रबंधन की बारीकियों से अवगत कराया.
कार्यशाला के सम्मानीय अतिथि श्री प्रकाश जोशी, पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष, अल्मोड़ा ने अल्मोड़ा क्षेत्र में जल स्रोतों की वास्तविक स्तिथि तथा उनके क्षरण पर अपनी चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि केवल अल्मोड़ा नगर में 365 नौलों एवं धारों में से केवल 100 नौले एवं धारे ही अस्तित्व में हैं जो कि बहुत चिंता की बात है. उन्होंने प्रकृति की इस धरोवर को संजोकर रखने की अपील की. उन्होंने लगातार हो रहे निर्माण कार्यों प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से नौलों एवं धारों के जल की गुणवता में हो रहे प्रभाव से सबको अवगत कराया.
कार्यशाला के विशिष्ठ अतिथि प्रो. सतपाल सिंह बिष्ट, कुलपति, एस.एस.जे. विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा ने संस्थान द्वारा जल संरक्षण हेतु चलाये जा रहे इस तरह के शोध एवं विकास कार्यों हेतु संस्थान की सराहना की. उन्होंने जल स्रोतों के आसपास मृदा की गुणवता को बेहतर बनाए रखने की बात कही. उन्होंने कहा कि इस तरह के कार्यक्रमों को जन जागरूकता, स्कूली छात्रों तथा स्वयंसेवकों के माध्यम से और बेहतर बनाया जा सकता है।
कार्यशाला के मुख्य अतिथि डॉ. लक्ष्मीकांत, निदेशक, विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा ने कहा कि सम्पूर्ण विश्व में आज जलवायु परिवर्तन की चुनौतियाँ विकराल रूप ले चुकी हैं जिसके संरक्षण और रोकथाम के लिए क्षेत्रीय सहयोग द्वारा नीति निर्माण कर धरातली स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हिमालय विश्व का विशाल जैव विविधता हॉटस्पॉट तथा लगभग सभी नदियों का उद्गम स्थल है. अतः हमें हिमालयी क्षेत्र के जल स्रोतो तथा वनों के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु व्यापक स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है. उन्होंने इस कार्यशाला को हिमालयी क्षेत्र के विभिन्न ज्वलंत मुद्दों को समझने एवं इस हेतु प्रभावी नीति निर्माण के लिए उचित बताया।
इसके उपरांत विभिन्न तकनीकी सत्रों में डा. सुभाष ढकाल ने सिक्किम हिमालय में जल स्रोतों के पुनरुद्धार, डा. राजेश जोशी ने सिक्किम में स्प्रिंग शेड प्रबंधन के आर्थिक मूल्यांकन, इसिमोड के जियाकोमो बटी ने नेपाल में स्प्रिंग शेड के आर्थिक मूल्यांकन तथा विकास और पर्यावरण अर्थशास्त्र के लिए दक्षिण एशियाई नेटवर्क (सैंडी) द्वारा आर्थिक मूल्यांकन दृष्टिकोण विषयों पर प्रस्तुतीकरण दिया गया.
इसके पश्चात सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय/पारिस्थिकीय विषय पर आधारित समूह चर्चा के माध्यम से ज्ञान का आदान प्रदान किया गया तथा इन विषयों पर रिसोर्स पर्सन्स तथा प्रतिभागियों के द्वारा प्रस्तुतीकरण दिया गया.
कार्यक्रम का संचालन संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. राजेश जोशी तथा धन्यवाद ज्ञापन डा. रवींद्र जोशी द्वारा दिया गया. इस कार्यक्रम में जे.एन.यू., नई दिल्ली के प्रोफ़ेसर कोमल सिंघा, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एस.सी. राय, चिराग संस्था के डा. बद्रीश मेहरा, उत्तर पूर्वी क्षेत्रीय जल एवं भूमि प्रबंधन संस्थान, असम के प्रोफेसर पी.के. बोरा, पर्यावरण संस्थान के पूर्व वैज्ञानिक डा. जी.सी.एस. नेगी, केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, इंफाल के डा. ए.के. वशिष्ठ, आई.यू.सी.एन., नई दिल्ली की डा. अर्चना चटर्जी, एस.एस.जे. विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा के डा. एच.सी. जोशी, डा. ललित योगी, सिक्किम विश्विद्यालय के प्रोफ़ेसर सोहेल फिरदोस, भारतीय वानस्पतिक सर्वेक्षण, देहरादून के डा. देबाशीष सेन, दून विश्विद्यालय, देहरादून की डा. अर्चना शर्मा, यूकोस्ट, देहरादून के श्री हिमांशु, हिमोत्थान के श्री विजय अधिकारी, नवीन जोशी, सुमति राठौर सहित पर्यावरण संस्थान के वैज्ञानिक ई. आर.के. सिंह, ई. एम.एस. लोधी, डा. एम. सरकार, डा. वसुधा अग्निहोत्री, डा. सरला शाशनी, डा. त्रिदिप्ता विश्वास, डा. कैलाश गैड़ा, डॉ. संदीपन मुख़र्जी, ई. देवेन्द्र सिंह, डॉ. सतीश आर्य, डा. के.एस. कनवाल, ई. आशुतोष तिवारी, ई. वैभव गोसावी, डॉ. एस.के. राणा, डॉ. सुबोध ऐरी, श्री महेश चन्द्र सती, डा. अमित बहुखंडी तथा ई. अंकित धनै आदि उपस्थित रहे।