( चरमराती स्वास्थ्य सेवाओं के चलते रैफर हुये हायर सेंटर में तोड़ा दम, पत्रकारिता क्षेत्र में अपूर्णीय क्षति)

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एक बार फिर उजागर हुईं उत्तराखंड राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों की कमज़ोर स्वास्थ्य सेवाएं, जिसके चलते राज्य आंदोलनकारी वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र रौतेला हुये शिकार चरमराती स्वास्थ्य सेवाओं के चलते रैफर हुये हायर सेंटर में तोड़ा दम, पत्रकारिता क्षेत्र में अपूर्णीय क्षति हुई है। नरेंद्र के निधन से समूचे उत्तराखंड में शोक की लहर है। एक प्रश्न क्या इसी दिन को लेकर प्रथक राज्य के लिए जंग लड़ी गयी थी। स्वास्थ्य की चरमराती स्तिथि को देख सत्ता पक्ष,विपक्ष सहित क्षेत्रीय दलों को कुछ धरातल पर करना होगा।

सोशियल मिडिया में दिनेश तिवारी ने कुछ यूं बयां किया:-
आख़िरकार नरेंद्र रौतेला ज़िंदगी की जंग हार ही गए। आज दिन में नोएडा के फोर्टिस हॉस्पिटल में उन्होंने जीवन की अंतिम सांस ली। तीन दिन पहले रानीखेत में उन्हें ब्रेन स्ट्रोक पड़ा था, जहां स्थानीय प्रसिद्ध निजी चिकित्सालय एस. एन हॉस्पिटल में उन्हें तत्काल चिकित्सा हेतु उनके अभिन्न साथी मोहन नेगी, गिरीश भगत, उनका परिवार और मैं स्वयं ले गए जहां डॉक्टर एस. एन श्रीवास्तव ने आवश्यक मेडिकल परीक्षण करने के बाद यह बता दिया था कि हालत नाज़ुक है और सारे मस्तिष्क में ब्लड फैल गया है।

चूंकि रानीखेत में एडवांस मेडिकल फैसिलिटीज नहीं थीं इसलिए उन्हें तुरंत हायर सेंटर के लिए रेफर कर दिया गया। जहां से आज उनकी मृत्यु का दुखद समाचार पहुंचा है।
नरेंद्र की आकस्मिक मृत्यु बेहद दुखदाई है, सदमा पहुंचने वाली है और उनके मित्रों प्रशंसकों को किंकर्तव्यविमूढ़ करने वाली है। मन यह मानने को तैयार नहीं है कि नरेंद्र अब हमारे बीच नहीं हैं। वह मेरा परम मित्र था मेरी नज्मों, लेखों का नियमित श्रोता और पाठक था उसका यूं अचानक चले जाना मेरी व्यक्तिगत क्षति भी है मन बेहद दुखी है, भावुक है और शब्द भी निशब्द हैं।

जिस दिन नरेंद्र को ब्रेन स्ट्रोक पड़ा उस दिन, दिन में उनसे मेरी उत्तराखंड श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के गठन को लेकर काफी चर्चा हुई थी। नैनीताल निवासी प्रसिद्ध पत्रकार प्रयाग पांडे ने मुझसे उस दिन सुबह कहा था कि उत्तराखंड श्रमजीवी पत्रकार यूनियन को उत्तराखंड में पुनः खड़ा करना है। इसके लिए सभी पत्रकार साथियों से वार्ता करनी है।

जब मैने नरेंद्र से इस विषय पर बात की तो वह बड़े प्रसन्न और उत्साहित थे और उन्होंने मुझे फोन कर बताया था कि उन्होंने कई पत्रकार मित्रों से इस संदर्भ के वार्ता की है। शाम को अचानक उनके ब्रेन हैमरेज की दुखद सूचना मिली थी और मैं उन्हें देखने के लिए डॉ एस. एन हॉस्पिटल गया था जहां पहले से ही मोहन नेगी, गिरीश भगत, उनकी पत्नी, दोनों बेटे दामाद खड़े थे और नरेंद्र अचेत अवस्था में इमर्जेंसी वार्ड में भर्ती थे।

नरेंद्र को अगर याद करना है और समझना है तो हमें अस्सी के दशक में लौटना होगा। अस्सी के दशक का दौर उनके जीवन का प्रखर दौर था, एक पत्रकार के रूप में, एक कवि के रूप में और एक सामाजिक चेतना से लैश एक्टिविस्ट के रूप में नरेंद्र अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ रूप में हमें दिखाई पड़ता है। उस समय पहाड़ में अलग अलग सामाजिक राजनीतिक सामाजिक संगठन अपनी अपनी तरह से सामाजिक सुधार के आंदोलनों में जुटे थे।

उस समय पहाड़ में सर्वोदयी विचारधाराओं वामपंथी विचारधाराओं का गहरा प्रभाव पड़ रहा था। नरेंद्र भी सर्वोदयी और वामपंथी विचारधाराओं से अछूते नहीं थे। इसी कारण वह सर्वोदयी विचारधारा से प्रभावित लोकचेतना मंच से जुड़े और पहाड़ में पर्यावरण, महिला और बालिका शिक्षा तथा अन्य सामाजिक कुरीतियों जैसे छुआछूत, कर्मकांडी जनजीवन से मुक्ति के लिए जनजागरण अभियान में जुट गए।

1979 से ही वह मेरा अभिन्न मित्र था और सभी प्रमुख आंदोलनों का सहभागी और साथी था।1984 में पहाड़ में चले नशा नहीं, रोजगार दो आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही और रानीखेत, ताड़ीखेत , द्वाराहाट चौखुटिया, अल्मोड़ा, नैनीताल ,गरमपानी आदि स्थानों में उत्तराखंड जन संघर्ष वाहिनी के नेतृत्व में चले नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन में लोक चेतना मंच की ओर से सक्रिय भागीदारी की।इसके बाद वह अपने आर्थिक कारणों से लखनऊ में ऑक्सफैम इंडिया से जुड़ गए और पहाड़ से लखनऊ में जाकर शिफ्ट हो गए।

ऑक्सफैम इंडिया के वह फील्ड ऑफिसर भी रहे बाद में वह ऑक्सफैम को छोड़कर वापस पहाड़ आ गए और यहां आकर वधू नाम का अपना एक एनजीओ बनाया और काम करने लगे। नरेंद्र उत्तराखंड राज्य प्राप्ति आंदोलन के भी प्रमुख सिपाही रहे। राज्य प्राप्ति के बाद 2002 में उन्होंने उत्तराखंड विधान सभा के पहले चुनाव में उत्तराखंड क्रांति दल की ओर से चुनाव लड़ा और चुनाव में महत्वपूर्ण दस्तक दी।

बाद में वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए और तत्कालीन खंडूरी सरकार में दायित्वधारी भी रहे। यह एक अलग राजनीतिक यात्रा है जो यू के डी, भाजपा और फिर कांग्रेस और फिर भाजपा में शामिल होने तक निरंतर जारी रही। लेकिन जिस नरेंद्र को पहाड़ ने जाना, समझा और प्रेरित किया वह 1980 के दशक का प्रखर पत्रकार नरेंद्र था। पहाड़ या तराई में चले सभी प्रमुख मजदूर, किसान, छात्र आंदोलनों का वह सक्रिय हिस्सा रहा और उसकी कलम सत्ता प्रतिष्ठान के विरोध में आग उगलती रही।

फिर चाहे मामले बागेश्वर के कर्मी में आए भूस्खलन से गांवों के उजड़ने का हो, उत्तरकाशी के भूकंप से हुए विनाश का हो या रुद्रपुर की बंगाली बस्ती महतोष मोड़ में पुलिस के दमन का हो या फिर बिंदुखत्ता में भूमिहीनों के आंदोलन का हो वह अपने शरीर और कलम से एक सिपाही की तरह हर जगह खड़ा रहा। उनके लिखे लेख आज भी हमें प्रेरणा देते हैं। उसने लबादे तो कई पहने लेकिन कोई भी लबादा उसे फिट नहीं आया चाहे कांग्रेस हो या भाजपा या यूकेडी सभी के खोलों में उसकी आत्मा तड़पती रही और वह इन सब से बाहर निकलने के लिए छटपटाता रहा।

बुनियादी रूप से वह एक पत्रकार था, लेखक था, कवि था और उसकी आत्मा यहीं संतोष पाती थी। वह गांधी को पढ़ते हुए शुरू हुआ नेहरू कार्ल मार्क्स, लेनिन, गोर्की, लुशुन और भारत में महाश्वेता देवी, नागार्जुन आदि को पढ़ते हुए वह श्यामाप्रसाद मुखर्जी, वीर सावरकर, गुरु गोलवरकर तक जा पहुंचे। उसकी यह जीवन यात्रा अनेक उतार चढ़ावों से गुजरी है। आंतरिक द्वंद्वों संघर्षों से गुजरी है। लेकिन चूंकि वह मूलतः एक पत्रकार ही था इसलिए जीवन के अंतिम क्षणों में और अपनी चेतना के जीवित अवसर पर वह उत्तराखंड श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के गठन की मुहीम से जुड़ गया था।

उसका भेजा हुआ सदस्यता का फॉर्म मेरे व्हाट्सएप पर है और उसने अपना सदस्यता फॉर्म भरकर नैनीताल प्रयोग पांडे को भेज दिया है। बहरहाल हम उत्तराखंड श्रमजीवी यूनियन को उनके चाहे अनुसार खड़ा करेंगे शायद उसको यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी। एक बात और नरेंद्र की मौत ने उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुविधाओं के बुनियादी सवाल को एक बार फिर उजागर किया है। यदि रानीखेत में ही ब्रेन के ऑपरेशन की व्यवस्था होती तो शायद वह हमारे बीच होता। हल्द्वानी और दिल्ली पहुंचने से पहले ही उसकी जीवन यात्रा समाप्त हो गई थी। वह बेहोश पहुंचा और समय पर ईलाज न मिल पाने के कारण फिर जीवित न लौट सका। नरेंद्र तुम्हें खोने का दुख ताउम्र रहेगा। तुम्हारी मृत्यु एक सामाजिक क्षति है लेकिन तुम हमारी स्मृतियों में सदा जीवित रहोगे।
हिम शिखर पर नरेंद्र रौतेला को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

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