( विधि संकाय अलमोडा़ ने उच्च न्यायालय उत्तराखंड के न्यायधीश आर सी खुल्बे अनेक महत्वपूर्ण पदों पर आसीन विभूतियां दी, कुमाऊं विश्वविद्यालय के अधीन‌ विधि संकाय एस एस जे परिसर की एक अलग पहचान रही। संकाय का गिरता स्तर सोचनीय व निंदनीय है, पूर्व संकायाध्यक्ष दिनेश भट्ट की मन की व्यथा)

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कभी कुमाऊं का जाना माना एक मात्र विधि संकाय अलमोडा़ आज कल निरंतर सुर्खियों में है, जिसके गिरते स्तर को देख पूर्व संकायाध्यक्ष दिनेश भट्ट काफी व्यतित और चिंतित हैं। फेस बुक के माध्यम से उन्होने अपनी मनःस्थिति व्यक्त की है, जिसे हम यथावत पेश कर रहे हैं
विधि संकाय अल्मोड़ा के विषय में पिछले कुछ समय से जैसी खबरें दैनिक समाचारपत्रों में पढ़ने को मिल रही हैं उससे मन व्यथित है। दशकों से इस संकाय में अधिकांश विद्यार्थी कुमाऊँ के विभिन्न जिलों से और अल्प संख्या में गढ़वाल और उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती जिलों से अध्ययन के लिए आते रहे हैं। पठन पाठन की उच्च गुणवत्ता के आधार पर विधि संकाय अल्मोड़ा में कार्यरत शिक्षकों और वहाँ से पढ़े विद्यार्थियों की पूर्व में एक अलग पहचान रही। एक बड़ी संख्या में यहाँ के विधि स्नातक विभिन्न राज्यों, विशेषकर उत्तराखंड राज्य, की न्यायिक, अभियोजन, इत्यादि सेवाओं में कार्यरत रहते आए हैं जिनमें श्री आर सी खुल्बे जी (सेवानिवृत्त न्यायाधीश, उत्तराखंड उच्च न्यायालय) विशेष उल्लेखनीय रहे हैं। विधि संकाय, एस एस जे परिसर, अल्मोड़ा की पहचान कुमाऊँ विश्वविद्यालय के विशिष्ट संकाय के रूप में होती थी चूंकि यह विश्वविद्यालय का अकेला ही विधि संकाय था । इस कारण कुमाऊँ विश्वविद्यालय के विभिन्न नीति-निर्धारक निकायों व समितियों में विधि के संकायाध्यक्ष एवं विभागाध्यक्ष सदा अल्मोड़ा परिसर से ही होते थे, जिससे विश्वविद्यालय में उनकी सदा ही उल्लेखनीय व प्रभावी भूमिका हुआ करती थी । मुझे भी वर्ष 2008 से 2011 तक और पुनः 2016 से 2019 तक कुमाऊँ विश्वविद्यालय के विधि संकाय के संकायाध्यक्ष के रूप में विश्वविद्यालय के अनेकों महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों और रचनात्मक कार्यों में योगदान करने हेतु दो कार्यकालों का सौभाग्य मिला जिनकी स्मृतियाँ एवं अनुभव मेरे लिए धरोहर हैं । समय के प्रवाह में कुमाऊँ विश्वविद्यालय से उसका अल्मोड़ा परिसर चार जिलों के अधिकारक्षेत्र सहित एक नए विश्वविद्यालय के मुख्यालय के रूप में पृथक हो गया। नया विश्वविद्यालय अस्तित्व में आने के फलस्वरूप अल्मोड़ा परिसर में कार्यरत और मूलतः कुमाऊँ विश्वविद्यालय द्वारा स्थायी पदों पर नियुक्त शिक्षकों व कर्मियों के नियोजक व कार्यस्थल के स्थायी निर्धारण हेतु यद्यपि उच्च न्यायालय के निर्णय के अनुपालन में गठित समितियों की कार्यवाहियाँ आगे भी बढ़ीं, किन्तु अंतिम सूची का प्रकाशन किया जाना अभी शेष है । समय के साथ वह भी देर सबेर हो ही जाना है। वर्तमान में जबकि विश्वविद्यालय का नेतृत्व अनुभवी, तेजस्वी, विद्वत और दूरदर्शी हाथों में है, तब भी कुमाऊँ की विधिक शिक्षा के इतिहास का गौरवमय वाहक अल्मोड़ा का विधि संकाय एक विवाद स्थान क्यों बन रहा है, यह सभी के लिए चिंता का विषय है।
( साभार फेसबुक दिनेश भट्ट)

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